2122 1122 22
खुद से यूँ आप वफ़ा कर चलिये
गाह सच को न छुपा कर चलिये
मैं इबादत में करूँ सजदे आप
दैर पर शीश नवा कर चलिये
दिल में भर जाये सड़न ही न कहीं
नफ़रतें दिल से हटा कर चलिये
चलिये महका के ज़माने भर को
प्यार का फूल खिला कर चलिये
कीजिये अम्न की कोशिश यों भी
हक़ में इंसाँ के दुआ कर चलिये
क्यूँ रहे हुस्न ही पर्दे में जनाब
आप भी नज़रें झुका कर…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 26, 2014 at 8:00pm — 26 Comments
1222- 1222- 1222
मुनव्वर शाम के रंगीं नज़ारों में
नुमायाँ फूल हों जैसे बहारों में
कहीं कम हो न जाये बज़्म की रौनक
लगा दो कुछ दिये भी चाँद तारों में
फ़रोग़े शम्अ महफिल में लगे है यूँ
झलकता हुस्न हो जैसे हज़ारों में
लकीरें धूप की झाँके दरीचे से
सवेरा छुप के बैठा है दरारों में
न जाने रंग कितने रोज़ भर जाये
ये नूरे शम्स झीलों कोहसारों में
हवा के सामने शिद्दत से जलती…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 18, 2014 at 8:59am — 12 Comments
जीते जी जिन्दगी खत्म नहीं होती
सिर्फ एक अध्याय खत्म होता है
जब तक एक भी साँस है
हौसले हैं
तब तक रास्ते हैं
कहीं भी, किसी पल
किसी भी मोड़ पर
नई शुरूआत हो सकती है
मिटा देता है वक्त गुज़रते-गुज़रते
पुरानी लिखावट को
और एक कोरा पन्ना छोड़ जाता है
आते-आते
वही वक्त एक और मौका देता है
कि उसी कोरे पन्ने पर
फिर अपनी ज़िन्दगी लिखें
फिर शुरूआत करें
(मौलिक व…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 14, 2014 at 9:33pm — 12 Comments
1212 1122 1212 112/22
सफर ये राहगुज़र और ये मुकाम नया
हयात देती है अक्सर मुझे यूँ काम नया
अगर नसीब से बच पाये तो गनीमत है
यहाँ हर एक कदम पर है एक दाम नया (दाम=जाल)
न जी सके अभी तक चलिये कोई बात नहीं
करें अब के कोई जीने का एहतमाम नया
ये ज़िन्दगी हो फ़ना रोज़ और रोज़ शुरू
ग़ुरूबे शम्स हो तो चाँद निकले शाम नया
बहुत हुये गमे दौराँ की…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 12, 2014 at 10:22am — 12 Comments
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