करबटें बदलता हूँ रात भर मैं गलता हूँ
जख्म दिए औरों ने पर मैं खुद ही सिलता हूँ
मुँह मोड़ लिया हो अपनों ने तोड़ दिया हो सपनों ने
हर बार मगर हँसकर सबसे अक्सर मैं मिलता हूँ
जिन गलियों में बस शूल मिले यादों की बस कुछ धूल मिले
कभी रहे काशी काबा में हर रोज मैं पैदल चलता हूँ
वक्त के इस दौर में निकला मैं जिस भी ओर में
सदा बचा मैं शोलों से पर पानी से मैं जलता हूँ
सुबह भी देखी थी निराली पल भर में जो हुई थी…
ContinueAdded by anupam choubey on September 26, 2016 at 1:00pm — 5 Comments
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