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Khursheed khairadi's Blog – September 2014 Archive (8)

क्या माली का हो गया, बाग़ों से अनुबंध ?

१.

क्या माली का हो गया, बाग़ों से अनुबंध ?

चित्र छपा है फूल का, शीशी में है गंध |

२.

चूल्हे न्यारे हो गये, आँगन में दीवार

बूढ़ी माँ ने मौन धर, बाँट लिए त्यौहार |

३.

मुल्ला जी देते रहे, पाँचों वक़्त अजान

उस मौला को भा गई, बच्चे की मुस्कान |

 ४.

एक तमाशा फिर हुआ, इन दंगों के बाद

जिनने फूंकी बस्तियाँ, बाँट रहें इमदाद |

 ५.

शीशाघर की मीन सा, यारों अपना हाल

दीवारों में क़ैद है, सुख के ओछे ताल…

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Added by khursheed khairadi on September 29, 2014 at 8:30am — 14 Comments

ग़ज़ल

खेतों के दरके सीने पर बादल बनकर आ रामा

होठों के तपते मरुथल पर छागल बनकर आ रामा

 

बोली लगकर बिकता है अब आशीषों का रेशम भी

निर्वसना है श्रध्दा मेरी मलमल बनकर आ रामा

 

भक्ति युगों से दीवानी है राधा मीरा के जैसी

मन से मन मिल जाये अपना पागल बनकर आ रामा

 

दीप बुझे हैं आशाओं के रात घनेरी है गम की

प्राची से उजली किरनों का आँचल बनकर आ रामा

 

छप्पन भोगों के लालच में क्यूं पत्थर बन बैठा है

भूखों की रीती थाली में…

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Added by khursheed khairadi on September 27, 2014 at 12:30pm — 9 Comments

रखे मुझको भी हरदम बाख़बर कोई मेरे मौला

रखे मुझको भी हरदम बाख़बर कोई मेरे मौला 

बड़े भाई के जैसा हो बशर कोई मेरे मौला 

 

हुआ घायल बदन मेरा हुए गाफ़िल कदम मेरे

मेरे हिस्से का तय करले सफ़र कोई मेरे मौला

 

मुझे तड़पा रही है बारहा क्यूं छाँव की लज्ज़त

बचा है गाँव में शायद शजर कोई मेरे मौला

 

उदासी के बियाबाँ को जलाकर राख कर दे जो

उछाले फिर तबस्सुम का शरर कोई मेरे मौला

 

खड़ा हूं आइने के सामने हैरतज़दा होकर

इधर कोई मेरे मौला उधर कोई मेरे…

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Added by khursheed khairadi on September 20, 2014 at 6:00pm — 6 Comments

अपनेपन की रीत पुरानी अब भी है

रास पर एक प्रयास और -

अपनेपन की रीत पुरानी अब भी है

गाँवों का जीवन लासानी अब भी है

 

जिसकी गोद सुहाती थी भर जाड़े में

उस मगरी पर धूप सुहानी अब भी है

 

जिनमें अपना बचपन कूद नहाया था

उन तालाबों में कुछ पानी अब भी है

 

बाँह पसारे राह निहारे सावन में

अमुवे की इक डाल सयानी अब भी है

 

गर्मी की छुट्टी शिमला में बुक लेकिन

रस्ता तकते नाना नानी अब भी है

 

ठाकुर द्वारे में झालर संझ्या…

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Added by khursheed khairadi on September 18, 2014 at 11:00am — 8 Comments

पंख परेवों ने खोले नव भोर हुई

रास (चौपाई +अलिपद )8-8\6=22

 

पंख परेवों ने खोले नव भोर हुई

भजनों सा चहका फिर खगरव भोर हुई

 

शबनम झाड़ी ली अँगड़ाई किसलय ने

बाग बगीचों में है उत्सव भोर हुई

 

मंदिर की घंटी से और अजानों से

सुप्त धरा का टूटा नीरव भोर हुई

 

धूप गुलाबी उबटन सी कण कण पर है

निखरा फिर धरती का वैभव भोर हुई

 

अखबारों के पन्नों में जागी दुनिया

गर्म चाय का पीकर आसव भोर हुई

 

दिन भी गुजरेगा ही रात कटी…

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Added by khursheed khairadi on September 17, 2014 at 10:30am — 5 Comments

चारसू आइने लगाना भी

चारसू आइने लगाना भी

और ख़ुद से नज़र चुराना भी

बैठकर साये में मेरे रहरौ

चाहता है मुझे गिराना भी

मेरी मौजूदगी भी नादीदा

सुर्ख़ियों में तेरा न आना भी

शौक आवारगी का किसको है

हो कहीं अपना आशियाना भी

बस्तियों को उजाड़ने वालों

सीख लो बस्तियाँ बसाना भी

हो गया एक जंग के जैसा

आजकल रोटियाँ जुटाना भी

आज ‘खुरशीद’ बालता है दिल

साथ देगा कभी ज़माना भी 

मौलिक व…

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Added by khursheed khairadi on September 16, 2014 at 10:30am — 5 Comments

नफ़रतों का जवाब मैं रक्खूं

नफ़रतों का जवाब मैं रक्खूं

ख़ार तू रख गुलाब मैं रक्खूं

 

बीत जाये इसी में उम्र तमाम

ज़ख्मों का गर हिसाब मैं रक्खूं

 

मै ग़मों की रवाँ है रग रग में

होश कैसे जनाब मैं रक्खूं

 

सामने तेरे बेहिजाब हुआ

क्या बुतों से हिजाब मैं रक्खूं

 

दर्दे-उल्फ़त पलेगा क्या मुझसे

क्यूं कफ़स में उक़ाब मैं रक्खूं

 

शमा सी वो पिघलती है हर शब

कब सिरहाने किताब मैं रक्खूं

 

पेट में भूख का शरारा …

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Added by khursheed khairadi on September 13, 2014 at 10:00pm — 5 Comments

हिंदी पखवाड़े/हिंदी दिवस को समर्पित कुछ ग़ज़ले

१.

देश की शान है अपनी हिंदी

फिर भी हल्कान है अपनी हिंदी

 

एक डोरी से जुड़ जाए भारत

एक अभियान है अपनी हिंदी

 

घर में अपने ही होकर पराई

आज हैरान है  अपनी हिंदी

 

अपना सिर क्यूं झुके जग में यारों

अपना अभिमान है अपनी हिंदी

 

सारी दुनिया में फहराया परचम

हिन्द की आन है अपनी हिंदी

 

हिंदी से हैं सभी हिन्दवासी

अपनी पहचान है अपनी हिंदी

 

जितना सीधा सरल मन है…

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Added by khursheed khairadi on September 10, 2014 at 1:30pm — 6 Comments

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