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Dr T R Sukul's Blog – September 2015 Archive (3)

रेतीला पत्थर

45 
रेतीला पत्थर
========
ए पर्णपूरित लता!
तू  इतनी न इतरा, 
अपने इस रूप पर ,
लावण्य पर, सरलता पर।
मालूम नहीं शायद, 
तू जिसे सरल अवलंबन मानती है,
वह सीधा सूखा ढाक है।
लिपटकर, जिससे आलिंगन कर, 
ऊपर को बढ़कर सुख आभास करती है,
वह तेरा हितैषी तेरा ही काल है।
तेरे रूप के प्रशंसक ये मानव,
कल उन्मत्त होकर,
पलास को पत्तों सहित अग्नि…
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Added by Dr T R Sukul on September 22, 2015 at 10:53am — 2 Comments

क्यों?

50

मैं जाने क्यों कुछ सोच सोच रह जाता हॅूं,

नयनों के तिरछे तीर तीक्ष्ण सह जाता हूूॅं ।

कुछ पता नहीं बस मन से ही क्यों मन की कह जाता हॅूं,

सच है अन्तर की शब्दमाल के भावों में बह जाता हॅूं।

ए जनमन के भाव सिंधु, बढ़ते घटते ए चपल इंदु!

बतलाओ क्यों नहीं सरलता से अपनी तह पाता हॅूं?

झींगुर की झीं झीं से लगता एक मधुर रागनी बन जाऊं,

डलियों की कलियों सी महकी श्रंगार सुंगंधी बन जाऊं,

पर अबला के ए क्रंदन आत्मीयों की पल पल बिछुड़न!

तुम बतलाओ…

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Added by Dr T R Sukul on September 11, 2015 at 10:12am — No Comments

पावस

55
ए पावस!
तू पायेगी यश ,
कुछ मेरी भी सुन ले। 
भीगी, इन पलकों के मोती तू चुन ले।
भीगे वसन को सुखा लूँ,
चार पल पर्ण कुटिया सुधारूं,
तू भी तब तक कुछ आराम लेले, 
साॅंस मेरी भी कुछ चैन पाये,
नींद ये नैन पायें , 
कुछ ऐंसा तू गुन ले।
शीत भी न हुआ मीत मेरा,
ग्रीष्म ने भी न व्रत भीष्म तोड़ा,
उसने ठिठुराया तड़पाया इसने, 
पवन पावन ने कितना…
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Added by Dr T R Sukul on September 3, 2015 at 10:30am — 4 Comments

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