संशोधित
2122 1122 1122 112/22
मसअले कितने मुझे तेरे सवालों में मिले
यूँ अँधेरों की झलक दिन के उजालों में मिले
आपके ग़म से किसी को कोई निस्बत ही कहाँ
बेबसी दर्द हमेशा बुरे हालों में मिले
अब मेरे शहर में भी लोग खिलाड़ी हुए हैं
पैंतरे खूब हर इक शख़्स की चालों में मिले
चंद लम्हात मसर्रत के सुकूँ के कुछ पल
ऐसे मौके तो मुझे सिर्फ ख़यालों में मिले
दोस्ती और मुहब्बत के मनाज़िर हर…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on August 1, 2016 at 2:30pm — 15 Comments
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