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मंजूषा 'मन''s Blog – August 2017 Archive (2)

ग़ज़ल

1222 1222 1222 1222



हमारे ग़म का उसको क्या कभी अंदाज होता है।

हमारी राह में कांटे जो वो हरबार बोता है।



कभी रूठे अगर जो हम तो ये भी याद रखना तू,

न फिर पायेगा हमको तू अगर इस बार खोता है।



बता इस ग़म का तुझपर क्यों नहीं कोई असर होता,

तू हर दम मुस्कुराता है हमारा दिल जो रोता है।



झमेले ज़िन्दगी के मुश्किलों से झेलते हैं हम,

अकेले जूझते हैं हम उधर उधर वो खूब सोता है।



अजब अपनी कहानी है रहे हैं हम निथरते ही,

बरसती आँख का…

Continue

Added by मंजूषा 'मन' on August 22, 2017 at 12:00pm — 17 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल



सर पे कैसी मुसीबत बड़ी आ गई।

देखिये फैसले की घड़ी आ गई।



साँस लेना मुनासिब भी लगता नही

ये हवा किस कदर नकचढ़ी आ गई।



दिल के साँपो को हम मार पाते नहीं,

साँप आया जो घर इक छड़ी आ गई।



ईंट पत्थर लगाकर मकां जब बना

लो हिफाजत को उसके कड़ी आ गई।



अब चमन में कहीं फूल खिलते नहीं,

पतझरों की अजब सी लड़ी आ गई।



रौशनी के लिए 'मन' मचलने लगा,

उसको बहलाने को फुलझड़ी आ गई।



मंजूषा मन



मौलिक एवं… Continue

Added by मंजूषा 'मन' on August 14, 2017 at 6:28pm — 16 Comments

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