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Khursheed khairadi's Blog – July 2017 Archive (2)

ग़ज़ल --2122--1122--1122--112(22)

2122--1122--1122--112



फैसले के लिए सिक्का न उछाला जाए

जान माँगे जो वतन वक़्त न टाला जाए



हाँ मैं हूँ मुल्क़ तुम्हारा न उछालो मिट्टी

नौज़वानों मुझे गड्डे से निकाला जाए



अच्छे अच्छों के किये होश ठिकाने लेकिन

होश में हो जो उसे कैसे सँभाला जाए



आपने कह दिया झट से कि मैं, मैं हूँ ही नहीं

मेरे भीतर मुझे थोड़ा तो खँगाला जाए



ज़ह्र के दाँत उखाड़ो कि कुचल डालो फन

आस्तीनों में यूँ नागों को न पाला जाए



मुफ़लिसी ने मिरी…

Continue

Added by khursheed khairadi on July 30, 2017 at 11:00pm — 7 Comments

ग़ज़ल -- किसी का कहा मानता ही कहाँ है

122--122--122--122



किसी का कहा मानता ही कहाँ है

वो अपनी ख़ता मानता ही कहाँ है



न काफ़िर कहूँ तो उसे मैं कहूँ क्या

है बुत में ख़ुदा मानता ही कहाँ है



है छोटी बहुत सोच उसकी करें क्या

किसी को बड़ा मानता ही कहाँ है



शिकायत यही है हर इक आदमी की

मेरी दूसरा मानता ही कहाँ है



मेरे पास हल है, सभी मुश्किलों का

कोई मश् वरा मानता ही कहाँ है



लगाना पड़ा झूठ का मुँह पे ग़ाज़ा

कि सच आइना मानता ही कहाँ है



भला आदमी है… Continue

Added by khursheed khairadi on July 10, 2017 at 9:00pm — 15 Comments

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