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कल्पना रामानी's Blog – July 2013 Archive (3)

नवगीत//उत्तर यहीं अड़ा है//'कल्पना रामानी'

 

पावस का इस बार भूमि पर

प्यार बहुत उमड़ा है।

लेकिन क्या सुख संचय होगा?

संशय नाग

खड़ा है।

 

मक्कारी, गद्दारी, लालच,

शासन के कलपुर्ज़े। 

बूँद-बूँद को चट कर देंगे,

घन बरसे या गरजे।

 

भरे सकल जल-स्रोत लबालब,

सागर ज्वार चढ़ा है।  

मगर उसे नल नहलाएगा?

चिंतित मलिन

घड़ा है।

 

बन मशीन मानव ने भू के,

रोम-रोम को वेधा।

क्यों कुदरत फिर क्षुब्ध न होगी,

रुष्ट न…

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Added by कल्पना रामानी on July 26, 2013 at 7:27pm — 17 Comments

गज़ल//कल्पना रामानी//

212221222122212 

 

हक़ किसी का छीनकर, कैसे सुफल पाएँगे आप?

बीज जैसे बो रहे, वैसी फसल पाएँगे आप।

 

यूँ अगर जलते रहे, कालिख भरे मन के दिये,

बंधुवर! सच मानिए, निज अंध कल पाएँगे आप।

 

भूलकर अमृत वचन, यदि विष उगलते ही रहे,

फिर निगलने के लिए भी, घट- गरल पाएँगे आप।

 

निर्बलों की नाव गर, मझधार छोड़ी आपने,

दैव्य के इंसाफ से, बचकर न चल पाएँगे आप।

 

प्यार देकर प्यार लें, आनंद पल-पल बाँटिए,

मित्र! तय…

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Added by कल्पना रामानी on July 23, 2013 at 8:00pm — 49 Comments

स्नेह सुधा बरसाओ मेघा//नवगीत//

स्नेह सुधा बरसाओ मेघा,

व्याकुल हुआ तरसता मन।

 

रिश्तों की जो बेलें सूखीं,

कर दो फिर से हरी भरी।

मन आँगन में पड़ी दरारें,

घन बरसो, हो जाय तरी।

सिंचित हो जीवन की धरती।

ले आओ ऐसा सावन।

 

दूर दिलों से बसी बस्तियाँ,

भाव शून्यता गहराई।

सरस सुमन निष्प्राण हो गए

नागफनी ऐसी…

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Added by कल्पना रामानी on July 8, 2013 at 11:00pm — 14 Comments

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