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Sushil Thakur's Blog – June 2014 Archive (3)

ग़ज़ल

मफऊल फ़ायलात मुफ़ाईल फायलुन

आया था लुत्फ़ लेने नवाबों के शह्र में 

हैरतज़दा खड़ा हूँ नक़ाबों के शह्र में 

 

आलूदा है फज़ाए बहाराँ भी इस क़दर 

खुशबू नहीं नसीब गुलाबों के शह्र में 

 

तहज़ीबे कोहना और तमद्दुन नफासतें 

आया हूँ सीखने में नवाबों के शह्र में 

 

ऐसी हसीं वरक़ को यहाँ देखता है कौन 

हर सम्त जाहेलां है किताबों के शह्र में 

 

बेहोश होने का न गुमां हमको हो सका 

हर शख्स होश में है शराबों के…

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Added by Sushil Thakur on June 13, 2014 at 4:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल

2122   1122   1122   22

दिल में उम्मीद तो होटों पे दुआ रखता हूँ

तुम चले आना मैं दरवाज़ा खुला रखता हूँ

 

ये तेरा हुस्न अगर जलता शरारा है तो क्या  

मैं भी जज़्बात की जोशीली हवा रखता हूँ

 

राहे-उल्फ़त में तू अपने को अकेला न समझ

दिल में चाहत का दिया मैं भी सदा रखता हूँ

 

ख़ुशनुमा मंज़रो - तस्वीर न गुल बूटे से 

अपने कमरे को दुआओं से सजा रखता हूँ

 

अपनी औक़ात कहीं भूल न जाऊँ ‘साहिल’

इसलिए महल में…

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Added by Sushil Thakur on June 11, 2014 at 10:13pm — 8 Comments

ग़ज़ल

 2122   2122   2122   2122

ज़ुल्फ़ जब उसने बिखेरी बज़्मे-ख़ासो-आम में  

फ़र्क़ बेहद कम रहा उस वक़्त सुब्हो-शाम में

 

झाँककर परदे से उसने इक नज़र क्या देख ली 

जी नहीं लगता हमारा अब किसी भी काम में

 

सिर्फ़ ख़ाकी, खादी पर उठती रही हैं उंगलियाँ

मुझको तो नंगे नज़र आये हैं सब हम्माम में   

 

मान-मर्यादा, ज़रो-ज़न, इज्ज़तो, ग़ैरत तमाम

क्या नहीं गिरवी पड़ी है ख्व़ाहिशे-ईनाम में

 

एक दिन में मुफलिसों का दर्द क्या…

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Added by Sushil Thakur on June 11, 2014 at 10:07pm — 9 Comments

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