फ़ित्ने-नौ यूँ उठाने लगी ज़िंदगी |
आँख उनसे लड़ाने लगी ज़िंदगी ||
ताज़ा दम होने को आए थे बज़्म में,
सूलियों पे चढ़ाने लगी ज़िंदगी ||
होश खाने लगी मौत भी देखिये,
फिर ये क्या गुनगुनाने लगी ज़िंदगी ||
उनकी आवाज़ फिर आईना बन गई,…
Added by डॉ. नमन दत्त on June 28, 2012 at 8:52am — 2 Comments
= जीवन सन्दर्भ =
खेत की मुंडेर पर चहकते पक्षियों की ढेर सारी बातें,
गेहूँ की बालियों के आँचल की मदमाती भीनी-भीनी सुगंध,
सर्दी की धूप का मेरी पीठ पर रखा दोस्ताना हाथ,
एक लय होकर काम करते हुए अनेक जीवन,
बैलों के गले की घण्टियों का राग,
यहाँ वहाँ उछलकूद करते बछड़े,
रंभाती गायें,
इन परिदृश्यों का स्वार्गिक…
Added by डॉ. नमन दत्त on June 12, 2012 at 5:02pm — 6 Comments
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