*२१२२ २१२२ २१२*
हर जगह रहता है अपनी धाक में।
ख़ासियत देखी ये उस चालाक में।।
चीज कोई मुफ़्त में कैसे मिले।
लोग रहते आजकल इस ताक में।।
आदमी करता गुमाँ किस बात का।
एक दिन मिल जायेगा सब ख़ाक में।।
ख़ुद-ब-ख़ुद सम्मान मिलता आजकल।
आप हो जब कीमती पोशाक में।।
जब न मोबाइल किसी के पास था।
लोग लिखते हाल अपना डाक में।।
डर हमेशा उस ख़ुदा से ही लगे।
मैं नहीं रहता किसी की धाक…
Added by surender insan on March 28, 2018 at 3:00pm — 14 Comments
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इंसानियत के तंग सभी दायरे हुए।
दिखते नहीं हैं लोग जमीं से जुड़े हुए।।
जो सुर्खियों में रहते हमेशा बने हुए।
रहते है लोग वो ही ज़ियादा डरे हुए।।
आहट हुई जरा सी बुरे वक़्त की तभी।
कुछ साँप आस्तीन से निकले छुपे हुए।।
वो इस लिये खड़ा है बुलन्दी पे आज भी।
डरता नहीं है झूठ कोई बोलते हुए।।
ख्वाबों में देखता हूँ जिसे रोज रात में।
कहता हूँ अब ग़ज़ल मैं उसे सोचते…
Added by surender insan on March 11, 2018 at 4:00pm — 28 Comments
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