Added by शिज्जु "शकूर" on March 30, 2017 at 1:30pm — 13 Comments
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पत्ता था, सब्ज़, टूटके खिड़की में आ गया
हस्ती शजर की बाकी है मुझको बता गया
माना हवाएँ तेज़ हैं मेरे खिलाफ़ भी
लेकिन जुनून लड़ने का इस दिल पे छा गया
खोने को पास कुछ भी नहीं था हयात में
किसकी तलाफ़ी हो अभी तक मेरा क्या गया
शायद ये दुनिया मेरे लिए थी नहीं कभी
फिर शिकवा क्यों करुँ कि खुदा फ़ैज़ उठा गया
ख़्वाबों को ज़िन्दा करके भी क्या होता, दोस्तो!
मेरा जो वक्त था…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 17, 2017 at 2:30pm — 9 Comments
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जो अपने ख्वाब के लिए जाँ से गुज़र गए
खुद ख़्वाब बनके सबके दिलों में उतर गए
थोड़ा असर था वक्त का थोड़ी मेरी शिकस्त
जो ज़ीस्त से जु़ड़े थे वो अहसास मर गए
रिश्तों पे चढ़ गया है मुलम्मा फ़रेब का
अब जाने रंग कुदरती सारे किधर गए
ये सोच ही रहा था कि मैं क्या नया लिखूँ
फिर से वही चराग़ वरक़ पर उभर गए
बिखरे हुए थे दर्द तुम्हारी किताब में
दिल से गुज़र के वो मेरी आँखों…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2017 at 10:30am — 8 Comments
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