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Surender insan's Blog – January 2018 Archive (2)

ग़ज़ल " ग़मो का इक समंदर टूटता है।"

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ग़मो का इक समंदर टूटता है।

किसी का भी अगर घर टूटता है।।

मिले धोख़े पे धोख़ा जब किसी को।

तो वो अंदर ही अंदर टूटता है।।

सँभलता मुश्किलों से आदमी फिर।

भरोसा जब कहीं पर टूटता है।।

करो कोशिश भले तुम लाख यारो।

न आईने से पत्थर टूटता है।।

उजड़ते है परिंदों के कई घर।

कभी कोई भी खण्डहर टूटता है।।

यही तक़दीर में शायद लिखा हो।

जो देखूं ख़्वाब अक्सर टूटता है।।

ग़ज़ल…

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Added by surender insan on January 24, 2018 at 9:30am — 10 Comments

ग़ज़ल "ऐसे भी माहौल बनाया जाता है"

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रिश्ता जो इक बार बनाया जाता है।

वो फिर सारी उम्र निभाया जाता है।।

ऐसे भी माहौल बनाया जाता है।

कुछ होता कुछ और दिखाया जाता है।।

ऐसा देखा यार सियासत में अक्सर।

इक दूजे को चोर बताया जाता है।।

सच हो पाए जो न किसी भी सूरत में।

क्यों अक्सर वो ख़्वाब दिखाया जाता है।।

 रंग बदलते गिरगिट सा कुछ लोग यहाँ।

मतलब हो तो प्यार जताया जाता है।।

ये सच्चाई तो जग जाहिर है यारो।

जो…

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Added by surender insan on January 12, 2018 at 2:30pm — 11 Comments

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