For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

jagdishtapish
  • Male
  • mp
  • India
Share on Facebook MySpace

Jagdishtapish's Friends

  • shekhar jha`
  • Tarlok Singh Judge
  • Dr Nutan
  • Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह
  • vednaupadhyay
  • alka tiwari
  • Jaya Sharma
  • Manoj Kumar Jha
  • Neet Giri
  • asha pandey ojha
  • Admin
 

jagdishtapish's Page

Profile Information

City State
mp
Native Place
mp
Profession
poet writer
About me
love all

jagdishtapish's Videos

  • Add Videos
  • View All

Jagdishtapish's Blog

कुछ रुबाइयाँ....(जगदीश तपिश)

(१)

बाँटना तो चाहते हैं हम तेरे रंजो अलम पर,

वक़्त ने पाँव में जंजीर जो पहनाई है |

सो जाते हैं जब--सब--तब हम उठ के देखते हैं,

बरसों से सिरहाने में तस्वीर जो छुपाई है ||

 

(२)

उसने पूछा भी नहीं और हमने बताया भी नहीं,

बस इसी जद्दोजेहद में कट गई है ज़िन्दगी |

मेरे मालिक ये कैसा इम्तिहान ले रहे हो तुम,

वो लौट के आये हैं अब---जब बट गई है ज़िन्दगी ||

 

(३)

जिसकी थी जरुरत हमें वो तो नहीं मिली,

किसको बताते क्या मिला…

Continue

Posted on July 15, 2011 at 9:00pm

बेटी गरीब की

बेटी गरीब की



बेटी थी वो गरीब की मजबूर थी लाचार--

थी खूबसूरत यौवना लेकिन ईमानदार --

सड़कों पे सर झुकाए वो गाँव में निकलती ---

कुछ मनचले दबंगों की नीयतें मचलती --

फिकरे कोई कसे तो वो चुपचाप ही रहती --

मक्कार दबंगों की कई हरकतें सहती --

ना बाप था ना भाई ना उसकी कोई बहिन थी --

तकदीर की मारी हुई वो नेकचलन थी --

कपडे वो नदी पर ही धोती थी नहाती थी -

शाम के ढलते ही घर लौट के आती थी --

एक शाम वो दबंगों के हाथ लग गई --

अब तक बचा रखी थी वो… Continue

Posted on March 13, 2011 at 8:13pm — 1 Comment

जाने क्या हो गया है आपसे मिलकर मुझको --------

जाने क्या हो गया है आपसे मिलकर मुझको

ढूँढती रहती है दिन रात ये आंखें तुझको

मै दोस्तों से तेरी बात किया करता हूँ

तेरी यादों में सुबह शाम जिया करता हूँ |





और तू है कि मुझे गैर का समझती है

बस यही बात मेरे दिल को भी खटकती है

रोज़ मंदिर में शिवालय में सर झुकाता हूँ

तुम्हे पाने की दुआ मांग के घर आता हूँ |





सामने तुम नहीं होती तो दिल तड़पता है

मै कहीं ढूँढता हूँ ये कहीं भटकता है

फिर कहीं खो गया है इसका पता दो मुझको

छुपा के… Continue

Posted on October 12, 2010 at 10:36am — 3 Comments

क्या हुआ ? ज़िन्दगी ज़िन्दगी ना रही

क्या हुआ ? ज़िन्दगी ज़िन्दगी ना रही
खुश्क आँखों में केवल नमी रह गई --


तुझको पाने की हसरत कहीं खो गई
सब मिला बस तेरी एक कमी रह गई |


आँधियों की चरागों से थी दुश्मनी
अब कहाँ घर मेरे रौशनी रह गई |


ना वो सजदे रहे ना वो सर ही रहे
अब तो बस नाम की बन्दगी रह गई |


अय तपिश जी रहे हो तो किसके लिए ?
किसके हिस्से की अब ज़िन्दगी रह गई |

Posted on September 18, 2010 at 12:30pm — 2 Comments

Comment Wall (2 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 9:25am on March 8, 2011,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…
At 1:37pm on August 13, 2010, Admin said…
आदरणीय जगदीश "तपिश" जी,
प्रणाम ,
आप की रचना अनुमोदन हेतु प्राप्त हुई है, आप को सूचित करना है कि आप कि उस रचना को १५ अगस्त के शुभअवसर पर अनुमोदन कर प्रकाशित कर दिया जायेगा,
आपका
एडमिन
OBO
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service