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बेटी गरीब की

बेटी थी वो गरीब की मजबूर थी लाचार--
थी खूबसूरत यौवना लेकिन ईमानदार --
सड़कों पे सर झुकाए वो गाँव में निकलती ---
कुछ मनचले दबंगों की नीयतें मचलती --
फिकरे कोई कसे तो वो चुपचाप ही रहती --
मक्कार दबंगों की कई हरकतें सहती --
ना बाप था ना भाई ना उसकी कोई बहिन थी --
तकदीर की मारी हुई वो नेकचलन थी --
कपडे वो नदी पर ही धोती थी नहाती थी -
शाम के ढलते ही घर लौट के आती थी --
एक शाम वो दबंगों के हाथ लग गई --
अब तक बचा रखी थी वो आबरू गई --
लुट पिट के बदनसीब वो जब गाँव में आई -
-उस गाँव के मुखिया को आके दास्ताँ सुनाई--
मुखिया भी था चुपचाप उसे देखता रहा --
कैसे दबाये मामला ये सोचता रहा -
बस में नहीं था उसके दबंगों को रोकना --
बेकार ही था न्याय के बारे में सोचना --
की कोशिशें बहुत कि अभी चुप रहे लड़की --
समझाने लगा मुंह से कुछ न कहे लड़की --
गाँव में फैली खबर कुछ लोग आ गए
पचायती बैठक में गुनाहगार बुलाये गए
गुर्राए गुनाहगार की मुखिया तेरी ओकात बता -
तू करेगा फैसला तू कौन तेरी जात बता --
कुछ नौजवान लड़कों को बात ये नहीं भाई -
-तेवर बदलने लग गए फिर हाथ में लाठी उठाई --
मुखिया समझ गए की अब शोर शराबा होगा --
पूछा गया लड़की से तेरे साथ क्या हुआ --
लड़की ने कहा आबरू लूटी बुरा हुआ --
इन गाँव के दबंगों ने हाथ पांव बांध के
लूटी है मेरी इज्ज़त गन्ने के खेत में --
चुपचाप खड़े हिजड़े क्या बाप मर गया --
टूटी हमारी चूड़ियाँ नदिया की रेत में
घायल मेरी कलाई से ये खून रिस रहा है --
अब न्याय भी दबंगों के साथ दिख रहा है --
ओ नीच मुझे मार के दफना दिया होता --
अब तो कफ़न भी आबरू के साथ बिक रहा है --
फैसला कुछ हो नहीं सका वहां पंचायत में --
मामला चल रहा है आज भी अदालत में -
आँख में सबकी ये मुद्दा खल रहा है --
कोख में लड़की के बच्चा पल रहा है |

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 14, 2011 at 7:50pm

आदरणीय तपीश जी ह्रदय को झकझोर देने वाली रचना है, आज कमोवेश यही देखने को मिल रहा है की न्याय भी दबंगों के हाथो की कठपुतली बन गई है, पैसा है जिसके पास जमाना उसी का है, एक छोटा सा चोर पकडाता है तो सिपाही मार मार कर अधमरा कर देता है जबकि देश को लुट रहे लुटेरे पकड़ में आने के बाद भी VIP treatment पाते है | 

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बहुत बहुत साधुवाद इस कविता पर |

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