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Anand Vats
  • Male
  • India
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Profile Information

Gender
Male
City State
Delhi
Native Place
Sahibganj /Jharkhand / Bihar
Profession
Admin
About me
I am independent, down to earth, a thinker and observer, sometimes too stubborn, and I just can't shake my habit of always wearing black. Overall, my life can get pretty busy, but has a fairly simple formula when you get right down to it. I work a ton, so I like to have fun when I can. I enjoy good music, good drinks, and good food. I enjoy both staying home with a movie or going out to socialize or dance. I also enjoy live music, and I love the beach. In addition, I like Individuals who are true to themselves, and true to others. I appreciate honest, down to earth, real people who are aware and accepting of their existence

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Anand Vats's Blog

रिक्त

मैं और मेरी कृत्य के बीच एक रिक्त सदा से 

खुद से खुद को जकडे जंजीरों के शून्य हो जैसे



बंधे है एक दूसरे से बाहों में बाहें डाल कर 

फिर भी एक बड़ा घेरा जो घिर न रहा हो जैसे 



युग्म एकाकार हैं संभावनाएं भी अपरम्पार हैं 

लग रहा फिर भी…

Continue

Posted on March 2, 2012 at 12:30pm — 8 Comments

कोई सुनेगा

पाषाण समाज के सीने पे पडी नन्ही अश्रु की बूँद गाती है अनसुना गीत ,सुनाती है अजन्मी कहानी .|

उसकी गिरेबां को पकडे रोती ,बिलखती , कोसती, झकझोरती , सवाल करती , पता पूछती हैं उस भ्रूण हत्यारे का|

फिर सहसा आंसू पोछती .सोचती कहती की अच्छा हुआ जन्म  से पहले मिटा दी  गयी पैदा होती तो जाने क्या हश्र होता |…

Continue

Posted on March 5, 2011 at 10:21am — 3 Comments

चिंगारी

उष्ण आगोश था
मैं मदहोश था
ना मुझे होश था
ना मुझमे जोश था
मैं शीतस्वापन में था
ना ही मैं जगा
ना मुझे उठाया गया
ना ही मैं जला
न मुझे सुलगाया गया
मुझे तो बुझाया गया
अब राख ही राख है
और हैं एक चिंगारी


आपका :- आनंद वत्स

Posted on August 14, 2010 at 11:24am — 1 Comment

प्यार में डूबने के बाद

कुर्क हो जाती है आत्मा मेरी तुम्हारी मुस्कान से हर बार

सुर्ख मधुर अधरों से गूंजा सा मेरा नाम जब पुकारती हो तुम



स्वेक्षा से अपने आप को को मरता हुआ सा देख सकता हु

मार डालो मुझे मृत्यु तुम्हारे अधरों पे लटका देख सकता हु



नित तुम्हारा नाम लेता हु चेहरा मस्तिस्क में लिए फिरता हु

हम तुम शब्दों के पुष्प उछाल रहे हैं दिल का स्पंदन जब्त सा है



मुक्त करो तुम्हारी यादो के भरोसे से संजोकर मुझे आज

तुम में पूरा डूबा मैं अब किनारे पर सूखने की कोशिश में… Continue

Posted on July 17, 2010 at 2:30pm — 6 Comments

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At 12:17am on February 5, 2016,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें...

At 1:51pm on February 5, 2011, PREETAM TIWARY(PREET) said…
MANY MANY HAPPY RETURNS OF THE DAY ANAND BHAI
At 11:34pm on May 31, 2010,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

At 9:36pm on May 31, 2010, baban pandey said…
hello ANAND VATS I HAVE ALSO JOINED THE SAME U DO
At 7:43pm on May 31, 2010, PREETAM TIWARY(PREET) said…

At 1:37pm on May 31, 2010, Admin said…

 
 
 

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