For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Amod Kumar Srivastava
  • Male
  • Pilibhit, Uttar Pradesh
  • India
Share on Facebook MySpace

Amod Kumar Srivastava's Friends

  • amod shrivastav (bindouri)
  • Harish Upreti "Karan"
  • जितेन्द्र पस्टारिया
  • aman kumar
 

Amod Kumar Srivastava's Page

Latest Activity

Amod Kumar Srivastava posted a blog post

संबंध

"इस रात की खामोशी में, मुझे चीखने दो,फिर एक बार, मैं ठहर जाऊंगा ....चरागों का धुआं कुछ कह गया,जैसे लाचार मौसम की थम-सी गई सांसें,बहकी हुई हवाओं में खुद को खो रही हैं ...रात ने बादलों की रजाई ओढ़ ली है,जब सुबह का सूरज छत से उतर कर आंगन में बिखर जाएगा,गेंदे जल उठेंगे,लेकिन रातरानी की चमक मंद पड़ जाएगी ...तुलसी के पत्ते की ओस में, तुम धूप को ओढ़ लेना,जब मेरी याद तुम्हारी पलकों में छलक उठेगी,वह रिश्ता भी बह उठेगा,जो कभी ठहरा नहीं था तुम्हारे जीवन के तट पर ....जिसे मैं कह नहीं पाया,वह रिश्ता अब…See More
Oct 16, 2024

Profile Information

Gender
Male
City State
Bareilly, Uttar Pradesh
Native Place
Jaunpur, Uttar Pradesh
Profession
Service

Amod Kumar Srivastava's Blog

संबंध

"इस रात की खामोशी में, मुझे चीखने दो,

फिर एक बार, मैं ठहर जाऊंगा ....

चरागों का धुआं कुछ कह गया,

जैसे लाचार मौसम की थम-सी गई सांसें,

बहकी हुई हवाओं में खुद को खो रही हैं ...

रात ने बादलों की रजाई ओढ़ ली है,

जब सुबह का सूरज छत से उतर कर आंगन में बिखर जाएगा,

गेंदे जल उठेंगे,

लेकिन रातरानी की चमक मंद पड़ जाएगी ...

तुलसी के पत्ते की ओस में, तुम धूप को ओढ़ लेना,

जब मेरी याद तुम्हारी पलकों में छलक उठेगी,

वह रिश्ता भी बह उठेगा,

जो कभी ठहरा… Continue

Posted on October 10, 2024 at 2:37pm

पच्चईयाँ ( नाग पंचमी )

तीन दिन पहले से ही 

सच कहूँ तो एक हफ्ते पहले से ही 

पच्चईयाँ (नाग पंचमी) का 

इंतजार रहता था .... 

एक एक दिन किसी तरह 

से काटते हुये 

आखिर, पच्चईयाँ आ ही जाती थी 

पच्चईयाँ वाले दिन 

सुबह ही सुबह 

अम्मा पूरा घर 

धोती थी, हम सब को कपड़े 

पहनाती थी 

सुबह सुबह ही 

गली मे 

छोटे गुरु का बड़े गुरु का नाग लो भाई नाग लो 

कहते हुये बच्चे नाग बाबा 

की फोटो बेचते थे 

हम वो…

Continue

Posted on June 27, 2015 at 7:00am — 6 Comments

गर्मी बहुत है

सुनो, 

गर्मी बहुत है 

अपने अहसासों की हवा 

को जरा और बहने दो 

यादों के पसीनों को 

और सूखने दो 

सुनो, 

गर्मी बहुत है 

गुलमोहर के फूलों 

से सड़कें पटी पड़ी हैं 

ये लाल रंग 

फूल का 

सूरज का 

अच्छा लगता है 

अपने प्यार की बरसात को 

बरसने दो 

बहुत प्यासी है धरती 

बहुत प्यासा है मन 

भीग जाने दो 

डूब जाने दो 

सुनो,

गर्मी बहुत है .... 

Posted on June 25, 2015 at 7:20am — 5 Comments

खेल और उसका खेला

 शाम हो रही है 

सूरज का तेज अब 

मध्यम होता जा रहा है 

शाम और खेल 

का बड़ा अनूठा 

सायोंग है 

अब बस याद ही है 

खेल और उसका खेला की 

एक खेल था 

ऊंच-नीच 

समान्यतः यह खेल घर

के आँगन मे ही 

खेलते थे, चबूतरे पर 

नाली की पगडंडियों पर 

हम सब ऊपर रहते थे 

और चोर नीचे 

हमे अपनी जगह बदलनी होती थी

और चोर को हमे छूना होता था 

अगर छु लिया तो 

चोर हमे बनना होता था 

बड़ा…

Continue

Posted on June 19, 2015 at 8:43pm — 4 Comments

Comment Wall (1 comment)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 1:52pm on June 30, 2013, जितेन्द्र पस्टारिया said…
"तहे दिल से शुक्रिया...आदरणीय "
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह-मुकरी * प्रश्न नया नित जुड़ता जाए। एक नहीं वह हल कर पाए। थक-हार गया वह खेल जुआ। क्या सखि साजन?…"
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कभी इधर है कभी उधर है भाती कभी न एक डगर है इसने कब किसकी है मानी क्या सखि साजन? नहीं जवानी __ खींच-…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय तमाम जी, आपने भी सर्वथा उचित बातें कीं। मैं अवश्य ही साहित्य को और अच्छे ढंग से पढ़ने का…"
12 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय सौरभ जी सह सम्मान मैं यह कहना चाहूँगा की आपको साहित्य को और अच्छे से पढ़ने और समझने की…"
14 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह मुकरियाँ .... जीवन तो है अजब पहेली सपनों से ये हरदम खेली इसको कोई समझ न पाया ऐ सखि साजन? ना सखि…"
15 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"मुकरियाँ +++++++++ (१ ) जीवन में उलझन ही उलझन। दिखता नहीं कहीं अपनापन॥ गया तभी से है सूनापन। क्या…"
20 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"  कह मुकरियां :       (1) क्या बढ़िया सुकून मिलता था शायद  वो  मिजाज…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"रात दिवस केवल भरमाए। सपनों में भी खूब सताए। उसके कारण पीड़ित मन। क्या सखि साजन! नहीं उलझन। सोच समझ…"
yesterday
Aazi Tamaam posted blog posts
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service