वो शब्द
जो तुम्हें मुझसे
और मुझे तुमसे
जोड़ता था
सेतुबंध था वो
वो दरक गया है
समय की भारी
भारी शिलाओं में
दब गया है
हाँ कुछ अहसास है
जो अंतिम
साँस ले रहे हैं
पर क्या वो जीवित हो पाएंगे ??
जी भी गए तो परिपूर्ण हो पाएंगे ??
समय की काई जम
गयी है उन पर
फिसलन ही फिसलन है
रपटीले रास्ते है
नुकीले मोड़ है
बचाना जो चाहा तो
क्या मैं, मैं रह पाऊँगी ??
क्या तुम, तुम रह पाओगे ??
समझने में और कहने में
जब फरक हो जाता है
कहने में और समझने में
जब फरक बढ़ जाता है
तब सदियों से लम्बा
सहस्त्रों फन वाला सांप
लहराता है मन में
जिसके वार से
क्या तुम बच पाओगे ??
क्या मैं बच पाऊँगी ??
???????????
आभा.....
"अबे तू मुंह बन्द करके बैठेगा, देखता नहीं बड़े लोग आपस में बात कर रहे हैं"
थानेदार ने घुड़की पिलाई और पत्रकार मित्र की ओर खींसे निपोरी। बेचारा शंकरा और सिमट गया, मुलिया ने बारह वर्षीया चुन्नी के पैरों पर का कपड़ा ठीक किया और बड़बड़ाने लगी दिमाग ठिकाने नहीं था उसका जब से बेटी की ऐसी हालत देखी थी चारों तरफ लाल ही रंग दिख रहा था उसे। पत्रकार महोदय ने कहा:
"ये तो और भी अच्छा है कि शंकरा नेता जी के घर के पास वाली झुग्गियों में रहता है नहीं तो चैनल…
ContinuePosted on June 3, 2016 at 4:00pm — 24 Comments
छलछलाई आँखों से
मुस्कराई आँखों से
विदा दी देहरी ने
चल पड़ी मैं......
छलछलाई आँखों से
मुस्कराई आँखों से
स्वागत किया देहरी ने
हंस पड़ी मैं.........
रंगोली सजाने लगी
वंदनवार लगाने लगी
सज गयी देहरी
रम गयी मैं........
प्रीत ने बहका दिया
मीत ने महका दिया
लहरा गया आँचल
संवर गयी मैं........
ममता ने निखार दिया
आँचल भी संवार…
Posted on September 9, 2015 at 4:00pm — 14 Comments
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सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
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