छलछलाई आँखों से
मुस्कराई आँखों से
विदा दी देहरी ने
चल पड़ी मैं......
छलछलाई आँखों से
मुस्कराई आँखों से
स्वागत किया देहरी ने
हंस पड़ी मैं.........
रंगोली सजाने लगी
वंदनवार लगाने लगी
सज गयी देहरी
रम गयी मैं........
प्रीत ने बहका दिया
मीत ने महका दिया
लहरा गया आँचल
संवर गयी मैं........
ममता ने निखार दिया
आँचल भी संवार दिया
अंतस प्यार भर आया
चहक पड़ी मैं.......
दिनोदिन बीते घर रीते
साथी छूटा ममता व्यस्त
बिखर गया सब
अब सोचूं कौन हूँ मैं
कौन हूँ मैं ??
(मौलिक और अप्रकाशित)
आभा..
9/9/15
Comment
behad khoobsurat bhavpurn rachna Abha ji
विभिन्न अनुभवों से उतरी मानसिक स्थिति का सुंदर चित्रण।
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय नीता कसार जी आपकी स्नेहिल टिप्पणी हेतु शुक्रिया
कांता दीदी आप की स्नेहिल प्रतिक्रिया से उत्साह सौ गुना बढ़ जाता है तहेदिल से आभार दीदी
दिनोदिन बीते घर रीते
साथी छूटा ममता व्यस्त
बिखर गया सब
अब सोचूं कौन हूँ मैं
कौन हूँ मैं ??------
इस कौन होने के एहसास नें सहसा भर दिया जमाने का दर्द , अपरिचित सा संसार लगे , अपने जब पराये से लगे , तब भी पूछू स्वंय से कि " कौन हूँ मै ??" नारी मन सबकी एक सी । बहुत ही सुंदर और संवेदनशील रचना रचना हुई है आदरणीया आभा जी । मन को भावुक कर गई ये रचना आपकी । बधाई स्वीकार करें ।
आदरनीया बहुत सुन्दर कविता की रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
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