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एक पूर्व ऐतिहासिक विवेचन
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स्वच्छता है क्या और इसका भाव आया कैसे , यह मनुष्य के जीवन में इतनी आवश्यक क्यों है , यह जानने की जिज्ञासा किसी को भी हो सकती है। आइये इसके विचार से जुड़े पहलुओं पर एक नज़र डालते हैं। ऐसा माना जाता है कि पाषाण युग के आदिम मानव के सम्मुख जीवन में अचानक आने वाली दो स्थितियों ने उसे काफी प्रभावित और चिंतित किया। एक है मृत्यु और दूसरी है रुग्णावस्था अर्थात किसी भी मनुष्य का अचानक बीमार हो जाना। प्रथम , मृत्यु ने उसके विचारों को इतना उद्वेलित किया कि वह ज्ञात संसार में अदृश्य कुछ अलौकिक शक्तियों के होने को मानने के लिए विवश हुए और उन पर सतत चिंतन ने उन्हें ईश्वरीय शक्ति के होने का भाव दिया जिससे उसमें अध्यात्म और ईश्वरीय चितन के विचारों का उद्भव हुआ।
दूसरा , रोग ने भी उन्हें कम उद्वेलित नहीं किया। रोगग्रस्त अवस्था में मनुष्य का शारीरिक रूप से क्षीण हो जाना और अपने दैनिक कार्य को संपन्न कर पाने असमर्थ हो जाना और रोग के कारण मृत्यु तक का हो जाना आदि सभी कुछ सम्मलित है, ने उसे रोग से बचने की प्रेरणा दी , जिससे उनमें भोज्य और अभोज्य का ज्ञान उत्पन्न हुआ , वातावरण में किस चीज़ से बचना है , उस भाव का विकास हुआ और इसी क्रम में गन्दगी से बचने और उससे दूर रहने का भाव उनमें उत्पन्न हुआ। यह बात आज भी उतनी ही सार्थक है जितनी पुरातन काल में थी। बीमारियों का कारण सदैव गन्दगी , दूषित जल, दूषित वायु और दूषित भोजन और परिवेश को ही माना जाता है जिसमें रोग जीवाणु उत्पन्न होते हैं जो रोग-संक्रामक होते हैं। इस विषय पर एच जी वेल्स ने तो यहां तक लिखा है कि स्वच्छता की इसी अवधारणा से मनुष्य में सचरित्रता का भाव विकसित हुआ।स्वच्छता निसंदेह स्वस्थ जीवन दायिनी है और स्वच्छ जीवन दीर्घायु देता है।किसी भी हैप्पी लाइफ इंडेक्स की साइट पर जाइये और देखिये कि सामन्य रूप से किसी भी देश के मनुष्यों की सामान्य जीवन आयु क्या है ? आप देखेंगे कि स्वस्थ जलवायु के साथ स्वच्छता इसका मूल कारक है। हम सुनते हैं कि हमारे पूर्वजों , ऋषियों की औसत आयु सौ वर्षों की होती थी। वह सामान्यतः शतायु होते थे तो आज क्यों नहीं होते हैं ? यह जान कर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि विश्व में अनेक देशों में लोग आज भी सामान्यतः शतायु होते हैं , उन देशों में ड्राइविंग लाइसेंस 96 वर्ष तक की आयु तक बनते हैं। फिर हम क्यों नहीं , यह न तो असम्भव है और न ही कठिन। केवल एक विश्वास की और एक संकल्प की आवश्यकता है , बस ठान लीजिये, फिर देखिये।


मौलिक एवं अप्रकाशित

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