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चहल्लम शरीफ के मुबारक मौके पर नजर हजरत इमाम हुसैन

साक़ी भी है हुसैन के कौसर हुसैन का !
मोहताज है हर एक समंदर हुसैन का !!


दोशे मुबरिका पे बिठाते थे खुद हुज़ूर !
रखते थे कितना ध्यान पयम्बर हुसैन का !!


क्यूँ अर्जे कर्बला तेरा रुतबा न हो बुलंद !
आकर जो तुझमे ठहरा है लश्कर हुसैन का !!


दिल कांप उठा दौड़ के क़दमो पे गिर गए !
देखा जो हुर ने चेहरा-ए-अनवर हुसैन का !!

.
नेजे पे लेके चल दिए ज़ालिम सर-ए-हुसैन !
फिर भी बुलंद-ओ-बाला रहा सर हुसैन का !!


उनको रजाए हक पे कटाना था अपना सर !
कुछ कर न पाते वरना सितमगर हुसैन का !!

.

बातिल की ताक़तों का उसे खौफो गम नहीं !
जज्बा है जिसके क़ल्ब के अन्दर हुसैन का !!

.
नामे यजीद मिट गया दुनिया से ऐ हिलाल !
होता रहेगा तजकिरा घर घर हुसैन का !!

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Replies to This Discussion

हिलाल भाई, चेहल्लुम मौके पर आपकी ग़ज़ल ने ’या हुसैन’ के घोष को मुबारक स्वर दिया है जिसमें आप हम सभी का गान महसूस करें.

इन दो अश’आर ने हुसैन की शख़्सियत का परचम रखा है.

दिल कांप उठा दौड़ के क़दमो पे गिर गए !
देखा जो हुर ने चेहरा-ए-अनवर हुसैन का !!

 

उनको रजाए हक पे कटाना था अपना सर !
कुछ कर न पाते वरना सितमगर हुसैन का !!

आपने मुसल्सल ग़ज़ल की एक उम्दा बानग़ी दी है. 

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