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भोजपुरी साहित्य Discussions (247)

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रूप धूप में सुखाई मत(गजल,मनन कु.सिंह)

रूप अपन धूप में सुखाईं मत एने-ओने नजर भटकाईं मत। उछहल हियरा उछलबे करी बेशी ओकरा अब दबाईं मत। कबसे चकोर बा आँख गड़वले चंदनिया अबहुँ चोराईं मत…

Started by Manan Kumar singh

0 May 29, 2015

सदस्य टीम प्रबंधन

भोजपुरी ग़ज़ल // -सौरभ

२१२२ १२१२ २२ साफ़ बोले में बा हिनाई का ? काहें बूझीं पहाड़-राई का ? चाँद-सूरज में दोस्ती कइसे ? धंधा-पानी में ’भाई-भाई’ का ? सब इहाँ जी र…

Started by Saurabh Pandey

2 May 26, 2015
Reply by Saurabh Pandey

गजल

भोजपुरी गजल(07/05/2015) रूप अपन धूप में सुखाईं मत एने-ओने नजर भटकाईं मत। उछहल हियरा उछलबे करी बेशी ओकरा अब दबाईं मत। कबसे चकोर बा आँख गड़वले…

Started by Manan Kumar singh

0 May 7, 2015

मुख्य प्रबंधक

भोजपुरी लघुकथा : माई किरिया (गणेश जी बागी)

           लफुअन के संगत में पड़ कमे उमिर में गुड्डूआ के जुआ क लत लाग गईल. एक महीना बाद संघतिहन के निहोरा प उ डेरात-डेरात फेनु जुआ खेले बईठ…

Started by Er. Ganesh Jee "Bagi"

2 May 1, 2015
Reply by Er. Ganesh Jee "Bagi"

मुख्य प्रबंधक

भोजपुरी लघुकथा : असर (गणेश जी बागी)

                         पचीस बरिस पहिले राजेश्वर सिंह गाँव छोड़ बम्बई के एगो उद्योगपति के दमाद बनि ओहिजे बस गइले. हाइ-फाइ माहौल में जनमल आ…

Started by Er. Ganesh Jee "Bagi"

8 May 1, 2015
Reply by Er. Ganesh Jee "Bagi"

गजल(मनब कि ना मनब)

गजल मनब कि ना मनब, बेशी अगरइब तू? आइल बुढ़ापा,अब आउर पछतइब तू। खोज तार फूल अब कहाँ लेकेे जइब? नजर धुंधला गइल,सुँघब कि सटइब तू? बेरी-बेरी ह…

Started by Manan Kumar singh

1 May 1, 2015
Reply by Er. Ganesh Jee "Bagi"

मुख्य प्रबंधक

भोजपुरी लघुकथा : कुक्कुरजात (गणेश जी बागी)

"मुखियाजी, ई स्साला रॉकिया ’कुक्कुरजात’ के इज्जत खराब करे प तुलल बा." "अरे का भइल रे शेरुआ..... तनिका सोझ-सोझ बताउ.." "मुखियाजी, ई ससुरा का…

Started by Er. Ganesh Jee "Bagi"

7 Mar 14, 2015
Reply by maharshi tripathi

एह साल गढ़ईबो गोरी तोहके झूलनिया |

मुँहवा फूलवले बाड़ू काहें मोर धनिया |   एह साल गढ़ईबो गोरी तोहके झूलनिया | देख गोरी खेतवा में रहर फूलायल ,मुँगवा के डलिया में मस्ती आयल | तिल…

Started by Shyam Narain Verma

2 Jan 30, 2015
Reply by Hari Prakash Dubey

सदस्य टीम प्रबंधन

आपन गाँव-जवार के नाँवें (दुर्मिलसवैया) // - सौरभ

परतंत्र रहे तब देस भले, अब गीत सुराज क गावत बा  सगरे सुकलान अँजोर बड़ा, तबहूँ मन झोंझ मचावत बा दमदार कमासुत पूत जहाँ तकरो प विकास रिगावत बा…

Started by Saurabh Pandey

2 Jan 11, 2015
Reply by Saurabh Pandey

चउखट लँघाई क प्रण ह|

पथरे पर सुतल दुधमुहवा, छोटकी डोलावेले बेना बड़का पथावेला ईटा मिली तबे सांझ क चबेना| लरिकन के भेजिती सकूल इहे समईया क माँग कवनो सनेसनाही पा…

Started by PRAMOD SRIVASTAVA

3 Jan 11, 2015
Reply by Er. Ganesh Jee "Bagi"

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"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
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"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
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"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
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