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जब आदरणीय श्री अरुण कुमार निगम जी का नाम लिया जाये तो एक हँसमुख छबि जेह्न में उभरती है। एक अरुणाभ सी मुस्कान लिये अनुभवी रचनाकार श्री अरुण कुमार निगम जी ऐसे व्यक्ति हैं जो छोटी से छोटी चीज़ों में भी वृहद् संसार ढूँढ लेते हैं। साहित्य उनके लिये सिर्फ रचनाकर्म नहीं बल्कि उपासना है इस बात के कई उदाहरण उनकी किताब शब्द गठरिया बाँध में देखने को मिल जायेंगे। यथा,

मान और सम्मान की, नहीं कलम को भूख।
महक मिटे न पुष्प की, चाहे जाये सूख।।

अक्षर-अक्षर चुन सदा, शब्द गठरिया बाँध।
राह दिखाये व्याकरण, भाव लकुठिया काँध।।

इसी तरह अलग अलग छंदो से सुसज्जित किताब आश्वस्ति का कारण है। आज जहाँ न केवल पाठक बल्कि रचनाकार भी सनातनी छंद से विमुख होते जा रहे हैं इस तरह का संकलन सनातनी छंद को लेकर उत्सुकता बढ़ाता है। रचनाओॆ के भाव बेमिसाल हैं और ये हर आम इंसान के जीवन से जुड़ी घटनाओं से परिलक्षित होते हैं जैसा कि उन्होने अपनी इस कुण्डलिया में कहा है

जीवन शैली छल रही, खत्म हुये सम्वाद।
आपाधापी यूँ बढ़ी, रही न खुद की याद।।
रही न खुद की याद, मेल से न्यौते मिलते।
उजड़ गये सब बाग, फूल नकली खिलते।।
पॉलिथिन के बैग, खा गये झोला थैली।
खत्म हुये सम्वाद, छल रही जीवन शैली।।

रचनाओं की भाषा सरस एवं सरल है जो न केवल आसानी से पाठकों के समझ में आ जाती है बल्कि गुदगुदाती भी है ये कुण्डलिया देखिये-

मैं-मैं तू करके हुआ, भौतिक सुख में लीन
अहम भाव अरु देह की, रहा बजाता बीन
रहा बजाता बीन, नहीं मैं को पहचाना
परम तत्व को भूल, जोड़ता रहा खजाना
क्या दिखलाकर दाँत, करेगा केवल हैं हैं
जब पूछे यमराज, कहाँ बतला तेरा मैं

चाहे दोहे हों या कुण्डलिया या फिर कह मुकरियाँ, सवैया, आल्हा छंद सभी में आदरणीय अरुण सर की विशेषता दिख ही जाती है। स्त्रियों को लेकर पुरूषवादी सोच उनकी तकलीफ़ों को कुशलता के साथ शब्दों में पिरोया गया है। वहीं लोग एवं लोकाचार के तथाकथित आधुनिक रूप पर भी कई छंद कटाक्ष करते हुये से प्रतीत होते हैं। चाहे पारिवारिक पृष्ठ भूमि हो या सामाजिक, समस्या वैयक्तिक हो या सामूहिक हर तरह की परिस्थितियों का रचना में समावेश इनकी सोच के विस्तार को, इनके अनुभव एवं परिस्थिति को देखने एवं समझने की काबिलियत को दर्शाता है। इस किताब मे आदरणीय अरुण सर के अनुभव एवं छंद के विधान का बेहतरीन समावेश है।
यदि संक्षेप में कहूँ तो अंजुमन प्रकाशन द्वारा प्रकाशित शब्द गठरिया बाँध मौजूदा भारतीय परिवेश का आईना है। लोगों से सच्चाई बयान करती हुई अनेक छंदबद्ध रचनायें इस किताब की खासियत है।

-शिज्जु शकूर
रायपुर

मौलिक व अप्रकाशित

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