For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'इकडियाँ जेबी से' - लोकधर्मी सुवास का शब्दांकन

समीक्षा

--जगदीश पंकज

'इकडियाँ जेबी से' सौरभ पाण्डेय का प्रथम काव्य-संग्रह है । शीर्षक पहली नज़र में चौंकाता है जो संग्रह की इसी नाम से एक कविता भी है । हिंदी भाषी क्षेत्र में आमतौर पर यह शब्द प्रयोग नहीं होता । संग्रह के पृष्ठ पलटने पर पता चलता है कि सौरभजी ने इसी प्रकार के बहुत से शब्दों का प्रयोग अपनी रचनाओं में किया है जो अपनी आंचलिकता की छाप छोड़ते हुए यत्र-तत्र उपस्थित हैं । कवि ने हिंदी क्षेत्र की विविधता को ध्यान में रखकर आंचलिक शब्दों के अर्थ भी पाद-टिप्पणी के रूपमें दिए हैं जिससे रचनाके मूल को समझने में सुविधा होती है । 'इकडियाँ' छोटी-छोटी कंकड़ियाँ हैं जिन्हें बच्चे इकठ्ठा कर खेलते हैं और जिन्हें प्राप्त कर प्रसन्न होते हैं । और, अपनी छोटी सी 'जेबी' अर्थात जेब में रख कर आनंदित होते हैं । अपनी छोटी-छोटी नगण्य-सी उपलब्धियां यदि यत्न से सम्भाली जायें तो बच्चे ही नहीं बड़े मनुष्य को भी आल्हादित करती रहती हैं । इसी तरह की इकडियों जैसी रचनाओं से संग्रह को सजाया है सौरभ पाण्डेय ने । संग्रह की मुख्य भूमिका प्रसिद्ध साहित्यकार एहतराम इस्लाम द्वारा लिखी गयी है जिसे आगे बढ़ाया है ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम के प्रधान सम्पादक योगराज प्रभाकरने और स्वयं कवि ने अपने आत्म-कथ्य के द्वारा ।

 

प्रत्येक रचनाकार के अपनी प्रथम कृति को प्रस्तुत करते हुए कुछ मनोवैज्ञानिक व भावुक दृष्टिकोण भी होते हैं जिससे बहुत-सी आशा-आकांक्षाएं जुडी होती हैं । निःसंदेह सौरभ पाण्डेय भी इससे अलग नहीं हैं तथा आत्म-कथ्य में कहा भी है, "मेरी प्रस्तुतियां मूल रूप से मेरे अंदर के बच्चे के द्वारा मेरे मन-व्योम के पाठकों और उनके समाज से हुए संवाद हैं । संवाद उनसे जिनके होने से यह बच्चा सहज महसूस करता है । संयोगवश, भौतिक रूप से परिचित लोग भी आत्मीयता के उन्नत पलों में मेरे अंदर के इस बच्चे की प्रासंगिकता को प्रति स्थापित करते दीखे हैं ।"

 

'इकडियाँ जेबी से' संग्रह की रचनाओं को कवि ने कथ्य और शिल्प के विभाजन के अनुसार पांच खण्डों में प्रस्तुत किया है, जिन्हें 'भाव-भावना-शब्द', 'शब्द-चित्र', 'यथार्थ चर्चा', 'गीत-नवगीत' तथा 'छंदप्रभा' नाम से शीर्षक दिए हैं। 'भाव-भावना-शब्द' खंड में छंदमुक्त कविताओं के द्वारा अनुभूतियों को अभिव्यक्त किया गया है। इन कविताओं में छान्दसिक गेयता न हो कर भी एकलयात्मकता है जो समकालीन कविता के शब्दाडम्बर से इन्हें अलग करती है। 'एक जीवन ऐसा भी' कविता की पंक्तियाँ हैं :

 

'तुम मुग्ध थे

विभोर थे

तुम 'भक्क' थे, कठोर थे

कि, उस अजीब दौर में

बेहिसाब शोर थे

हरेक आँख़ में चमक, हरेक बात में खनक

माहौल ये अजीब सा

बेबाक थे, भौचक्क थे

आँख-आँख थी फटी

बस कौतुहल था बह रहा

तो, तालियाँ पे तालियाँ पे तालियाँ बजती रहीं । ....

 

'इकडियाँ जेबी से' कविता निश्चय ही एक उत्कृष्ट रचना है जिसमें कवि एक फंतासीनुमा प्रयोग करते हुए अपनी वर्त्तमान स्थिति से अतीत का पुनरावलोकन करता हुआ फिर वर्त्तमान पर लौटता है । जिसमें 'स्मृति की चींटियाँ' बचपन की छोटी-छोटी खुशियों में सुख प्राप्त करती हैं और जेब में इकट्ठी की गयी इकडियों को निकाल कर आनंदित होती हैं । इस कविता में कविमन में जो स्वाभाविक आंचलिक शब्द प्रयुक्त किये हैं जिनके स्थानापन्न तो हो सकते हैं किन्तु उतनी अर्थवत्ता नहीं दे सकते जो स्वतः और अनायास उभरती है । पाद टिप्पणी में इन देशज आंचलिक शब्दों के अर्थ देकर रचना को समझने में आसानी हो सकी है । इसी खंड में 'अनुभूति : एक भूमिका' तथा 'अनुभूति : एक भूमिका के आगे’ शीर्षक की कवितायें लम्बी होने के बावजूद कवि के रचनाकर्म की उत्कृष्टता प्रकट कर रही हैं ।

 

'शब्द-चित्र' खंड के अंतर्गत पांच कवितायेँ हैं जिनमें विभिन्न स्थितियों के बिम्बों का सफल शब्दांकन कवि के अध्ययन और गहनता का परिचय है । 'गाँव चर्चा' के एक परिदृश्य में :

 

"गट्ठर उठाती इकहरी औरत

अनुचर दो-तीन बच्चे

गेहूं के अधउगे गंजे खेत

जूझता हरवाहा

टिमटिमाती साँझ

बिफरा बबूल

बलुआहा पाट

या फिर.. कोई फूसहा ओसारा

सबकुछ कितना अच्छा लगता है

काग़ज़ पर"

 

'जीवन के कुछ धूसर रंग' कविता में एक दृश्य :

 

"बजबजाई गटर से लगी नीम अँधेरी खोली में

भन्नायी सुबह

चीखती दोपहर

और दबिश पड़ती स्याह रातों से पिराती देह को

रोटी नहीं

उसे जीमना भारी पड़ता है."

 

'मद्यपान : कुछ भाव' कविता में एक चित्र -

आदमी के भीतर

हिंस्र ही नहीं

अत्यंत शातिर पशु होता है

ओट चाहे जो हो

छिपने की फितरत जीता है.... तभी तो पीता है

 

'यथार्थ चर्चा' खंड के अंतर्गत छः कवितायेँ हैं जिनमें कविने अपनी समकालीनता को व्यक्त किया है । अपनी प्रतिक्रिया में, 'चीख सिलवटों की', 'मुखौटे', 'परिचय', पाखण्ड', ’मतिमूढ़' और 'हम ठगे जाते रहे हैं' कविताओं के माध्यम से समयगत यथार्थ और मोहभंग को रेखांकित किया गया है । कवि की अपनी सीमायें हो सकती हैं जब वह किसी स्थिति की ओर इंगित तो कर देता है किन्तु उसके समाधान के बारे में चुप रहता है । इस खंड की कविताओं में कवि के समाधान व्यक्त नहीं हैं जो विचार के स्तर पर अधूरापन है जिससे थोडा प्रयासकर के बचा जा सकता था और कवि की परिपक्व दृष्टि को और पुष्ट कर सकता था ।

 

'हम ठगे जाते रहे हैं' कविता में निकट अतीत में ठगाए जाने के अनुभवों की प्रतिक्रियावादी दृष्टि है :

 

'हम लुटे हैं

हम ठगे हैं

और ये होता रहा है पुरातन-काल से' …

 

या

 

'हम ठगाते रहे हैं

उस समय भी जब

तथा कथित दूसरी आज़ादी का उद्भट-उन्माद था'…

 

…… 'हम फिर ठगे गये

जब एक सामंत बहुरूप ले फ़क़ीर बना था'  .......

 

और फिर अंत तक आते-आते - 

 

'एक बार फिर

भोली चिकनी सूरतों पर

माटी की ज़िन्दा मूरतों पर

बलि-बलि जा रहे हैं.…

इन सूरतों के कई पालित-पोषुओं ने

ठगी को विद्या का दर्जा दे रखा है

हमने न चेतने की कसम-सी खा रखी है

हम ठगी-दंश के पुरातन अपाहिज हैं

हमें न बताना, उठाना न जगाना

हम निश्चिन्त हैं

दिवा-स्वप्नों में खोये-से

लापरवाह सोये-से ……'

 

'गीत-नवगीत' खंड में कवि के सोलह गीत और नवगीत हैं । गीतों में सौरभ पाण्डेय ने शिल्पगत प्रयोग करते हुए कथ्य की सम्प्रेषणीयता का ध्यान रखने की पूरी कोशिश की है । पूरे संग्रह की रचनाओं का आकलन करें तो 'गीत-नवगीत' खंड ही कवि की शैलीगत पकड़, वैचारिक परिपक्वता, शब्द सौन्दर्य और बिम्बात्मक अभिव्यक्ति का सफल संयोजन है । गीतों में जहाँ आंचलिकता है वहीँ गहन अनुभूतियों का चित्रण भी । साधारण बोलचाल के आंचलिक शब्दभाव-अनुभाव को ऐसे प्रकट करते हैं कि उनका स्थानापन्न शब्द स्वाभाविक प्रभाव नहीं बना सकता । अनेक उदाहरण हैं इस खंड में जिन्हें उद्धृत किया जा सकता है ।

जैसे कि :

'थिर निश्छल, निरुपाय शिथिल सी

बिना कर्मचारी की मिल-सी' ……   (चाहना गीत की पंक्तियाँ)

 

'शोर भरी

ख्वाहिश की बस्ती की चीखों से

क्या घबराना

कहाँ बदलती दुनिया कोई

उठना, गिरना फिर जुट जाना'……… (आओ साथी बात करें हम)

 

चुप-चुप दिखती-सी

पलकों में

कब से एक

पता बसता है

जाने क्यों

हर आने वाला

राह बताता-सा लगता है.…… (बारिश की धूप)

 

एक व्यंजना 'अपना खेल अजूबा' गीत की पंक्तियाँ ---

 

'झूम-झूम कर

खूब बजाया

उन्नति की बज रही पिपिहिरी

पीट नगाड़ा

मचा ढिंढोरा

लेकिन उन्नति रही टिटिहिरी ' .......

 

'मैं उजाले भरूँ' गीत में एक चित्र -

 

'क्या हुआ

शाम से आज बिजली नहीं

दोपहर से लगे टैप बिसुखा इधर

सूख बरतन रहे हैं न मांजे हुए

जान खाती दिवाली अलग से, मगर--'

 

'परम्परा और परिवार' रचना में सामान्य जन की दैनिक असहाय स्थिति का आंचलिकता से सना बिम्ब --

'लटके पर्दे से लाचारी

आँगन-चूल्हा

दोनों भारी

कठवत सूखा बिन पानी के

पर उम्मीदें

लेती परथन !

कैसे रिश्ते, कैसे बन्धन  ....

 

अन्य अनेक उदाहरण हैं जो कवि की गीतात्मक परिपक्वता को प्रदर्शित करते हैं।

 

'छंदप्रभा' संग्रह का अंतिम खंड है जिसमें कवि की छान्दसिक प्रतिभा को दर्शाता है। पारम्परिक छंदों में दोहे, उल्लाला छंद, मत्तगयन्द सवैया छंद, कुण्डलिया, हरिगीतिका, घनाक्षरी, भुजंगप्रयात आदि छंदों का प्रयोग किया गया है । जहाँ छंदों की शैली में विषय को सफलता से व्यक्त किया गया है वहीँ कुछ स्थानों पर छंद का सायास प्रयोग किया हुआ है । जिससे बचा जा सकता था ।

'इकड़ियाँ जेबी से' संग्रह यद्यपि सौरभ पाण्डेय का प्रथम प्रयास है, किन्तु लोकधर्मी सुवास का सफल शब्दांकन है जो तरह-तरह की सुन्दर इकड़ियाँ एक साथ प्रस्तुत कर भविष्य की ओर आशान्वित करता है । अपनी समग्रता में संग्रह आकर्षक तथा पठनीय है । मूल्य की दृष्टि से भी सस्ता और सहज सुलभ है ।

--------------------------------------------------------------------------

'इकड़ियाँ जेबी से' -  काव्य-संग्रह

कवि - सौरभ पाण्डेय

प्रकाशक - अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद।

मूल्य : व्यक्तिगत- रु.20.00,

संस्थागत - रु.120.00 

e-mail : saurabh 312@gmail.com

 

Views: 629

Replies to This Discussion

आदरणीय जगदीशजी, आपने जिस मनोयोग से मेरी अकिंचन प्रस्तुति को अपना आशीर्वाद दिया है और इसकी नीर-क्षीर की है उसके लिए मैं आपका सादर आभारी हूँ. आप जैसे उच्च स्तर के रचनाकार की संवेदनापूरित समीक्षा हम जैसे अन्यान्य रचनाकारों के लिए मार्गदर्शन का काम करती है. संग्रह में सम्मिलित रचनाओं के भाषायी प्रयोग को आपने जिन शब्दो में अनुमोदित किया है वह उन्नत उदाहरण भी है. इनके सापेक्ष हम रचनाकार के तौर पर कई विन्दुओं पर सहज और संयत हो सकते हैं. कहना न होगा कि शब्दों का प्रयोग ही शब्दों का जीवन है अन्यथा हमारे देखते-देखते कई सार्थक सबल शब्द हाशिये पर चले गये जिनका होना कई मानवीय भावनाओं को सटीक ढंग से शब्दबद्ध होने का कारण हुआ करता था.
आपने इस मेरे अकिंचन प्रयास पर समय और उद्बोधन दोनों दिया इसके लिए आपका पुनः आभारी हूँ.
सादर
 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय गिरीराज जी नमस्कार  बहुत शुक्रिया आपका  सादर "
11 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय अमित जी  बहुत शुक्रिया आपका समझाने के लिए कोशिश करती हूँ फिर से सुधार…"
12 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय अजय भाई, //निगाह डाल दे अपनी नशे को है ये बहुत ए साक़ी जाम में मेरे शराब भी न मिला// नज़र…"
24 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . .तकदीर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । मुझे तो कलों के हिसाब से सही लग…"
50 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी"
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय नीलेश भाई, आप हमेशा से इस मंच के चुनिंदा उत्तम रचनाकारों में रहें हैं। आप की प्रतिभा, समझ,…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. गिरिराज जी लम्बे अंतराल के बाद आपकी उपस्थिति मंच को नई उर्जा दे रही है.अमित जी के सुझाव…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. गिरिराज सर,आपको यहाँ देख कर अत्यंत हर्ष हो रहा है. शायद अब OBO के पुराने दिन लौट आएं..बहुत बहुत…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"धन्यवाद आ. मयंक जी "
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"धन्यवाद आ. ऋचा जी "
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"धन्यवाद आ. अमित जी मुहब्बत को मैं मुहब्बत हो लिखूँगा क्यूँ कि देवनागरी में ऐसे ही लिखा जाता…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service