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बाल साहित्य Discussions (213)

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शिशु गीत

शिशु गीत बन्दर मामा बन्दर मामा पेड़ पे बैठे, खाते मटर के दाने, छिलका छिलका खाते जाते, नीचे गिरते दाने। नीचे बैठी थी गौरैया, मन ही मन मुसकाती…

Started by Abha saxena Doonwi

3 Sep 20, 2016
Reply by KALPANA BHATT ('रौनक़')

गणपति बाप्पा मोर्या

गणपति बाप्पा मौर्या गज मुख है जिनका लम्बे कान लम्बी सूंड लम्बोदर नाम शंकर पार्वती के पुत्र मूषक राज वाहन जिनका लड्डू भोग जिनको है भाता गणप…

Started by KALPANA BHATT ('रौनक़')

1 Sep 2, 2016
Reply by KALPANA BHATT ('रौनक़')

राखी एक बनाऊँ मैं

राखी एक बनाऊँ मैं ------------------ सामान कहाँ से लाऊँ मैं तब राखी एक बनाऊँ मैं इक धागा हो प्यारा-प्यारा जो जग में हो सबसे न्यारा फिर ले…

Started by सतविन्द्र कुमार राणा

0 Jul 25, 2016

बाढ के समय

हम सब चले घूमने शाम को पहुंवे नदी के पास देखा पानी भरा हुआ था आस पास चहुूंपास देखकर पानी को मेरा मुन्ना गया डर हम चाहे स्नान करने को वह ख…

Started by indravidyavachaspatitiwari

0 Jul 13, 2016

बारिश-मस्ती (बाल कविता)/सतविंदर कुमार

गरमी ने है ख़ूब रुलाया आठों पहर पसीना छाया बरखा देवी मन को भाती पानी की भी याद दिलाती। हम पानी को तरस रहे हैं गड़-गड़-गड़-गड़ गरज रहे हैं…

Started by सतविन्द्र कुमार राणा

2 Jul 1, 2016
Reply by सतविन्द्र कुमार राणा

चिड़िया रानी/सतविंदर कुमार

चिड़िया रानी चिड़िया रानी,हमको ख़ूब सुहाती हो निकल सवेरे खुले गगन में,उड़ती-उड़ती जाती हो। चहक-चहक कर जब बोलो तो,हम को भी तुम भाती हो उछल-क…

Started by सतविन्द्र कुमार राणा

4 Jun 19, 2016
Reply by सतविन्द्र कुमार राणा

गीत : ज़मीं भी चले, आस्मान भी चले-जहां मैं चलूँ, हिंदुस्तान भी चले

ज़मीं भी चले, आस्मान भी चले। जहां मैं चलूँ, हिंदुस्तान भी चले॥   ये वादियाँ हिमालय की औ बांसुरी की धुन, खनकती फिज़ाओं में धीमे-धीमे सुन. थामे…

Started by SudhenduOjha

0 Jun 11, 2016

ये वतन हमारा है : आंखों का तारा है.

ये वतन हमारा है, आंखों का तारा है. आहुतियों से लाखों इसे हमने संवारा है. काश्मीर अपना, ज़न्नत पर भारी है, किरणों पर सूरज की, अरुणाचल की सवा…

Started by SudhenduOjha

0 Jun 11, 2016

ना ही भारत, ना ही इंडिया : यह ना ही हिंदुस्तान है.

ना ही भारत, ना ही इंडिया, यह ना ही हिंदुस्तान है. अहले-आलम की तहजीबों का, यह पाक-मुक़द्दस स्थान है. उड़ें परिंदे, नील गगन में, दरिया बहे रवा…

Started by SudhenduOjha

0 Jun 11, 2016

यह मेरा छोटा मिट्ठू है : सच-मुच बहुत निखट्टू है

यह मेरा छोटा मिट्ठू है। सच-मुच बहुत निखट्टू है॥ नक़ल उतारता मेरी हरदम, फल-सब्जी खाता यम-यम। पंख फैला कर आड़े-तिरछे दिन भर नाचता है छम-छम॥…

Started by SudhenduOjha

2 Jun 10, 2016
Reply by SudhenduOjha

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"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
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सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

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Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

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मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
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मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
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मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
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Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

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