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एक रोज छह साल का नन्हा अंकुश अपनी माँ के गले लिपट कर बोला "माँ आप मुझे सॉरी बोलो",

माँ ने पूछा "क्यों"?
अंकुश बोला "अरे बोलो तो "
माँ बोली "पहले बताओ क्यों?"
अंकुश ने कहा "आप बोलो सॉरी, फिर मैं भी बोलूँगा"
माँ ने कहा "अच्छा बाबा सॉरी "
अंकुश बोला "सॉरी मम्मा , आज तक जितनी बार आपने मुझे डाँटा, मारा और रुलाया उसके लिए आप सॉरी , और जितनी भी बार मैंने आपको गुस्सा दिलाया उसके लिए मैं भी सॉरी"
यह सुन माँ स्तब्ध रह गयी, और ग्लानि और गर्व मिश्रित अश्रुपूरित आँखों से झट अंकुश को अपने सीने से लगा लिया

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नन्हे अंकुश की उम्दा समझ  और चंचलता को दाद देनी पड़ेगी  | अच्छी बाल कहानी, बधाई 

नन्हा अंकुश लघु-कथा पसंद करने हेतु आभार आ. लक्ष्मण प्रसाद लाडिवाला जी 

बच्चों का ह्रदय सच कितना निर्मल होता है, और धीरे धीरे सामाजिक प्रदुषण कैसे अपने नियंत्रण में ले लेते हैं, काश यह बचपन वाला ह्रदय बड़े होने तक प्रदूषित नहीं होता |बहुत ही सुन्दर लघु बाल कथा | बधाई हो डॉ प्राची सिंह जी |

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