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OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक ११ में सम्मिलित सभी ग़ज़लें एक ही जगह

 
 OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक ११
तिथि :
२८-०५-२०११ से ३०-०५-११  
आयोजन स्थल : ओपन बुक्स ऑनलाइन
संचालक : श्री राणा प्रताप सिंह
तरही मिसरा :
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है (जनाब मुनव्वर साहब)
वजन:
(मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन १२२२ १२२२ १२२२ १२२२)
बहर : "बहर-ए-हज़ज़"
रदीफ :
कराया है 
काफिया : आ की मात्रा (रुसवा, फाका, ज़िंदा, तनहा, मंदा .....आदि आदि)
कलाम पेश करने वाले शायर = १२
कुल ग़ज़लें : १६
कुल कमेंट्स = २२४
टोटल एंट्रीज़ = २४०
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मुशायरे में सम्मिलित सभी ग़ज़लें 

 

//श्री तिलक राज कपूर जी //


शिकायत कीजिये क्‍यूँकर, अगर ऐसा कराया है
खुदा ने तो हमेशा काम कुछ अच्‍छा कराया है।

कभी ऐसा कराया है, कभी वैसा कराया है
मुहब्‍बत ने हमें बाज़ार में रुस्‍वा कराया है।

जिसे कल बन्‍द कमरे में सुना था साजि़शें रचते
वही पूछा किया किसने यहॉं दंगा कराया है।

तलाशे गैर घर की बेटियों में गोश्‍त के टुकड़े
खुदा का शुक्र घर में आपने पर्दा कराया है।

वकालत कर रहा है आज, बच्‍चों की न शादी हो
इसी ने एक नाबालिग का कल गौना कराया है।

सियासत में कदम तो आपने भी रख दिया लेकिन
मिटाकर बस्तियॉं, सोचें, भला किसका कराया है।

खुदा तू साथ है मेरे, मुझे तो है यकीं, लेकिन
पड़ोसी ने यही कहने को इक जलसा कराया है।

अमानत है यही ईमां, खुदा से क्‍यूँ शिकायत हो
अगर इसने मेरे परिवार को फ़ाक़ा कराया है।


कभी हम तुम न बिछड़ेंगे, हमारी जि़द यही थी पर
ज़रा सी जि़द ने इस ऑंगन का बँटवारा कराया है।

हुआ है क्‍या नया ऐसा मुझे बतलाय कोई तो
किसी ने आज अरसा बाद मुँह मीठा कराया है।

सुना था आप हैं ज्ञानी, समझकर काम करते हैं
ज़रा बतलायें किसने आपसे ऐसा कराया है।

मेरे ही एक बाज़ू को, उठा कॉंधे पे चलता है
मेरी बढ़ती हुई ताकत को यूं ठंडा कराया है।

मदारी सा नचाता है, सदा बाज़ार को 'राही'
कभी उँचा उठाया है, कभी मंदा कराया है।
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//श्री राजेन्द्र स्वर्णकार जी/

ख़ुदा जाने कॅ बंदों ने किया क्या ; क्या कराया है
तिजारत की वफ़ा की , मज़हबी सौदा कराया है

बड़ी साज़िश थी ; पर्दा डालिए मत सच पे ये कह कर-
’ज़रा-सी जिद ने इस आंगन का बंटवारा कराया है’

ज़रा तारीख़ के पन्ने पलट कर पूछिए दिल से
कॅ किसने नामे-मज़हब पर यहां दंगा कराया है

वो जब हिस्से का अपने ले चुका , फिर पैंतरा बदला
मेरे हिस्से से उसने फिर नया टुकड़ा कराया है

वफ़ा इंसानियत ग़ैरत भला उस ख़ूं में क्या होगी
बहन-बेटी से जिस बेशर्म ने मुजरा कराया है

अरे ओ दुश्मनों इंसानियत के ! डूब’ मर जाओ
मिला जिससे जनम उस मां से भी धंधा कराया है

जिसे सच नागवारा हो , कोई कर के भी क्या कर ले
हज़ारों बार आगे उसके आईना कराया है

ज़ुबां राजेन्द्र की लगने को सबको सख़्त लगती है
वही जाने कॅ ठंडा किस तरह लावा कराया है
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//श्री पल्लव पंचोली "मासूम" जी //

ग़रीबी ने ग़रीबों से यहाँ क्या क्या कराया है
कभी भूखा सुलाया है कभी रोज़ा कराया है

मज़ा आता है अब आँखों के आँसू को भी पीने मे
इसे भी सच की शक्कर से थोडा मीठा कराया है

कोई तो ये बता दे हमको जिंदा क्यों है अफ़ज़ल भी
अरे संसद पे उसने ही तो वो हमला कराया है

ये जो पानी मेरी आँखों से गिरता है मेरे यारों
भरी महफ़िल मे इसने भी तो शर्मिंदा कराया है

खुदा ही जाने क्या होगा मेरे इस देश का अब तो
वहाँ दिल्ली मे कुछ चोरों से ही पहरा कराया है

महल वालों से उम्मीदें रखी हमने नहीं यारों
कराया जब भी इन्होने धोखा ही तो कराया है

बहुत झाँका है गैरों के तोशीशों मे मज़े लेकर
उसी ने मुँह अपना इस दफ़ा काला कराया है

कभी चाहा नही हमने बिछड़ना पर मेरे यारों
ज़रा सी ज़िद ने इस आंगन का बंटवारा कराया है,
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//डॉ संजय दानी जी//

ज़रा सी ज़िद ने इस आंगन का बंटवारा कराया है,
लहू के रिश्तों के चौपाल को गूंगा कराया है।

वो ख़ुद तो बेवफ़ाई के मज़ारों में भटकती है,
मगर मुझसे वफ़ा के महलों का वादा कराया है।

किनारों ने सितम तो ढाये,अहसां भी किया लेकिन,
समन्दर की शराफ़त से मेरा रिश्ता कराया है।

उन्हें मैं भूलना तो चाहता पर,वस्ल को आतुर
इरादों ने कफ़न की याद को ताज़ा कराया है।

सुनों इस मुल्क से मेरी सियासत हिल नहीं सकती,
यहां हर साल मैंने इक न इक दंगा काराया है।

वफ़ा के सख़्त ईटों से बना घर भी ढहेगा कल,
सितमगर बेवफ़ा ने नींव में गढ्ढा कराया है।

कि जग को सब्र के गुल महंगे लगते इसलिये यारो,
हवस के गुल मिला सामाने-दिल सस्ता कराया है।

मुहब्बत भी इबादत की ज़मीं से कम नहीं ये कह
हमेशा उसने अपने पैरों का सजदा कराया है।

चराग़ों की ज़मानत दानी ने ली ,ऐसा कह तुमने,
हवाओं की अदालत से मेरा झगड़ा कराया है।
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/श्री नेमीचंद पूनिया "चन्दन" जी//

जरा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया हैं।
जमीं जोरु ने रिश्तों में बिछोडा ही कराया हैं ।

हमारी शौहरत उनसे, कभी भी पच नहीं पायी,
करीबी गैर से मिलकर हमें रुस्वा कराया है ,

भरोसा जिन्दगी का क्या न जाने कब चली जाये,
यही अब सोच कर चर्चा वसीयत का कराया है,

नक़ल के दौर में अब तो असल पहचानना मुश्किल
नकलची मिल के सबका काम अब मंदा कराया है,
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//श्री रवि कुमार गुरु जी//

(१)
चाहा जी भर के इस उमीद में वो समझा पराया हैं ,
ज़रा सी जिद ही इस दीवाने से लफडा कराया हैं ,

सोचा था इस के बाद उनसे न मिलूँगा कसम से ,
दिल का क्या ये जिद करके बे परदा कराया हैं ,

हम ने किया था प्यार ठुकराए दौलते ठोकर से ,
आज भी दिल उनके राहों में दौडा कराया हैं ,

उनके पापा को नजाने क्या बुराई दिखा मुझमे ,
छोटी सी जिद ने दो दिलो का बंटवारा कराया हैं ,

कभी गजल को उतारा नहीं हुं अपने कलम से ,
सच गुरु को शायर भाई राणा का कराया हैं ,

वो उसे अपनी मुहब्बत समझ सौपा था खुद को ,
उसी ने कोठे पे बेच कर अब धंधा कराया हैं ,

कोई किसी पे अब कैसे विस्वास यहा करे ,
पड़ोसी ही पडोसी को अब फांका कराया हैं ,

नजर ही नजर में वो नापता था हर पल ,
आज बिच सड़क पर खीच पल्लू रुसवा कराया हैं ,

पैतीस सालो तक राज किया बाम दल ने ,
आज बदला हैं रुख ये ममता का कराया हैं ,

तेरह सालो से तृणमूल कभी उठता औ गिरता था ,
तेरह तारीख ममता केलिए खाली सभा कराया हैं ,
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(२)

राजा दशरथ चौथेपन में पुत्र हेतु पूजा कराया हैं ,
प्रसाद को तीन रानियों में चार बंटवारा कराया हैं,

गूंज उठी किलकारियां मिला जीवन का सहारा हैं ,
चारो राज कुमारों का जलसा नाम का कराया हैं ,

राम लक्ष्मण को संग लिए विस्वामित्र जनकपुर आये ,
जहा देखा राजा जनक जग धनुष का कराया हैं ,

नहीं टूट रहा था किसी से राजा जनक घबडा गए ,
राम ने तोड़ा धनुष निर्बल शंका का कराया है ,

रानी की हठ से बेटे को चौदह साल का वनवास दिए ,
राम लक्ष्मण सीता को पिता से जुदा कराया हैं ,


धोखे से हर के सीता को रावण लंका में लाया हैं ,
ढूढता सीता को हनुमत दहन लंका का कराया हैं ,

समझा रहा था बिभीषन भाई रावण दुत्कारा हैं ,
ज़रा सी जिद ने इन भाइयो का बंटवारा कराया है ,

बहुत कुछ हैं रामायण में गुरु कुछ पल को चुराया हैं ,
राम आये सारा अयोध्या जलसा दीप का कराया हैं ,
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(३)

चाह भी जिद भी इस प्यार को रुसवा कराया है ,
लोग कहते हैं अब जीवन नाम उसका कराया हैं ,

कसम से वो जो बात कही वो सत्य नहीं है ,
मगर दो घूँट हर पल उसके नाम का कराया हैं ,

दिल में बैठे थे वो कसम से मालिक बन कर ,
और छोड़ गए मुझको अब ये जीवन तन्हा कराया है ,

उन्हें पता हैं की मैं क्यों पिए जा रहा हूँ ,
वो आयेंगे ये सोच बस मेरे दिल का कराया हैं ,

वो मिले ना मिले मगर ये दिल चाहता है उन्हें ,
अब संभल जा वो तुम्हे ना कही का कराया हैं ,

बंट गई दो दिलें हम अलग -अलग रास्ते पे चले ,
जरा सी भूल ने इस दिल में बटवारा कराया हैं ,

 

//आचार्य संजीव सलिल जी//


(१)

ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है.
समझदारों की बेकदरी ने सिर नीचा कराया है..

ज़माने ने न जाने किससे कब-कब क्या कराया है.
दिया लालच, सिखा धोखा, दगा-दंगा कराया है..

उसूलों की लगा बोली, करा नीलाम ईमां भी.
न सच खुल जाये सबके सामने, परदा कराया है..

तिलकधारी था, योगीराज बागी दानी भी राणा.
हरा दुश्मन को, नीचा शत्रु का झंडा कराया है..

सधा मतलब तो अपना बन गले से था लिया लिपटा.
नहीं मतलब तो बिन मतलब झगड़ पंगा कराया है..

वो पछताते है लेकिन भूल कैसे मिट सके बोलो-
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है..

न सपने और नपने कभी अपने होते सच मानो.
डुबा सूरज को चंदा ने ही अँधियारा कराया है..

सियासत में वफ़ा का कुछ नहीं मानी 'सलिल' होता-
मिली कुर्सी तो पद-मद ने नयन अंधा कराया है..

बही बारिश में निज मर्याद लज्जा शर्म तज नदिया.
'सलिल' पर्वत पिता ने तजा, जल मैला कराया है..


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(२)

ये भारत है, महाभारत समय ने ही कराया है.
लड़ा सत से असत सिर असत का नीचा कराया है..

निशा का पाश तोड़ा, साथ ऊषा के लिये फेरे..
तिमिर हर सूर्य ने दुनिया को उजयारा कराया है.

रचें सदभावमय दुनिया, विनत लेकिन सुदृढ़ हों हम.
लदेंगे दुश्मनों के दिन, तिलक सच का कराया है..

मिली संजय की दृष्टि, पर रहा धृतराष्ट्र अंधा ही.
न सच माना, असत ने नाश सब कुल का कराया है.

बनेगी प्रीत जीवन रीत, होगी स्वर्ग यह धरती.
मिटा मतभेद, श्रम-सहयोग ने दावा कराया है..

रहे रागी बनें बागी, विरागी हों न कर मेहनत.
अँगुलियों से बनें मुट्ठी, अहद पूरा कराया है..

जरा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया हैं।
हुए हैं एक फिर से नेक, अँकवारा कराया है..

बने धर्मेन्द्र जब सिंह तो, मने जंगल में भी मंगल.
हरी हो फिर से यह धरती, 'सलिल' वादा कराया है..


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(३).

ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बटवारा कराया है.
बना घर को मकां, मालिक को बंजारा कराया है..

नहीं अब मेघदूतों या कबूतर का ज़माना है.
कलम-कासिद को मोबाइल ने नाकारा कराया है..

न खूँटे से बँधे हैं, ना बँधेंगे, लाख हो कोशिश.
कलमकारों ने हर ज़ज्बे को आवारा कराया है..

छिपाकर अपनी गलती, गैर की पगड़ी उछालो रे.
न तूती सच की सुन, झूठों का नक्कारा कराया है..

चढ़े जो देश की खातिर, विहँस फाँसी के तख्ते पर
समय ने उनके बलिदानों का जयकारा कराया है..

हुआ मधुमेह जबसे डॉक्टर ने लगाई बंदिश
मधुर मिष्ठान्न का भी स्वाद अब खारा कराया है..

सुबह उठकर महलवाले टपरियों को नमन करिए.
इन्हीं ने पसीना-माटी मिला गारा कराया है..

निरंतर सेठ, नेता, अफसरों ने देश को लूटा.
बढ़ा मँहगाई इस जनगण को बेचारा कराया है..

न जनगण और प्रतिनिधि में रहा विश्वास का नाता.
लड़ाया 'सलिल' आपस में, न निबटारा कराया है..

कटे जंगल, खुदे पर्वत, सरोवर पूर डाले हैं.
'सलिल' बिन तप रही धरती को अंगारा कराया है..


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//श्री शेषधर तिवारी जी//

समंदर ने बड़प्पन का गुमां बेजा कराया है
नदी का लेके सब जल खुद उसे सूखा कराया है

अदब, तहजीब यकसाँ है, अयाँ है, पर सितम देखो
जरा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है

करोगे क्या जुटाकर तुम जखीरे सा ये सरमाया
इसीने तो घरों में बेवजह झगडा कराया है

घनी बस्ती में सड़कें तंग, दिल होते बड़े, बेशक
इन्ही ने देश की तहजीब का दीदा कराया है

कभी हम जीभ अपनी काटते हैं अंध श्रद्धा में
कभी नन्हे फरिश्तों को डपट रोजा कराया है


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//श्री मोईन शम्सी जी//

इक हंसते-खेलते गुलशन को वीराना कराया है
ज़रा-सी ज़िद ने इस आंगन का बंटवारा कराया है

सियासत नाम है इसका, ज़रा मालूम तो कर लो
कि गुज़रे वक़्त में इसने तमाशा क्या कराया है

ख़ुदा ग़ारत करे उसको कि माल-ओ-ज़र के लालच में
सगे भाई का जिसने भाई से झगड़ा कराया है

बड़ा कम्बख़्त है, लोगो, न उसकी चाल में आना
लड़ाएगा वही फिर, जिसने समझौता कराया है

क़सीदे लाख जो पढ़ता है अपने पाक दामन के
उसी मरदूद ने इस शहर में दंगा कराया है

उसे मैं कोसता हूं पर उसी से प्यार करता हूं
न जाने उसने मुझ पे सहर ये कैसा कराया है

बज़ाहिर तो बनाई है इबादतगाह ’शमसी’ ने
हुकूमत की ज़मीं पर अस्ल में क़ब्ज़ा कराया है


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//श्री हिलाल अहमद हिलाल जी//

ये कब कहता हूँ की तूने मुझे रुसवा कराया है !
मेरी मसरूफियत ने ही मुझे तनहा कराया है !!

उधर उसने मेरी खातिर रची है मौत की साज़िश !
इधर मैंने उसी की जान का सदका कराया है !!

मेरी बस इतनी ख्वाहिश थी तेरे हाथो से मर जाता !
बड़ा ज़ालिम है तूने ग़ैर से हमला कराया है !!

अगर कोई शिकायत थी तो मुझसे कह लिया होता !
ज़माने को बताकर क्यों मुझे रुसवा कराया है !!

''उसे माँ बाप से ग़फलत मुझे माँ बाप से उल्फत ''
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बटवारा कराया है !!

अहिंसा का पुजारी कह रहे हो तुम जिसे लोगो
तुम्हे मालुम है उसने यहाँ बलवा कराया है !!

जो शौके दीद देना था तो ताबे दीद भी देता !
की दीदावर को तेरी दीद ने अँधा कराया है !!

वो जिसकी मैंने करवाई मसर्रत से शनासाई !
हिलाल उसने ही मेरा दर्द से रिश्ता कराया है !!


-----------------------------------------------------------

 

//श्री देवेन्द्र गौतम जी//

समंदर और सुनामी का कभी रिश्ता कराया है?
कभी सहरा ने गहराई का अंदाज़ा कराया है?

न जाने कौन है जिसने यहां बलवा कराया है.
हमारी मौत का खुद हमसे ही सौदा कराया है.

फकत इंसान का इंसान से झगड़ा कराया है.
बता देते हैं हम कि आपने क्या-क्या कराया है.

अभी मुमकिन नहीं था पाओं को लंबा करा पाना
हरेक रस्ते को हमने इसलिए छोटा कराया है.

मिली जब कामयाबी तो ख़ुशी अपने लिए रक्खी
मगर रुसवा हुए तो शह्र को रुसवा कराया है.

उसे शहनाइयों की गूंज में मदहोश रहने दो
अभी तो हाल में उस शख्स ने गौना कराया है.

तुम अपने दोस्तों और दुश्मनों को तौलकर देखो
हवाओं ने कभी आंधी से समझौता कराया है?

समझ से काम लेते तो सभी मिल-जुलके रह लेते
जरा सी जिद ने इस आंगन का बंटवारा कराया है.


----------------------------------------------------------

//श्री राणा प्रताप सिंह जी//

उन्होंने इक न इक मुद्दा सदा पैदा कराया है
कभी हड़ताल और धरना, कभी बलवा कराया है

ख़याल उसको हमेशा ही रहा है अपने कुनबे का
इसी खातिर तो अपनी जान का बीमा कराया है

अगर समझे नहीं तो अब समझ लें कायदे आज़म
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है

हमेशा ही चमकता रहता उन माँ बाप का चेहरा
वो जिनका लाडलों ने सर सदा ऊँचा कराया है

तुम्हारी चंद बातें गर लगा करती हैं मिसरी सी
तो कुछ बातों ने मुंह का ज़ायका फीका कराया है

सितम की इन्तिहाँ है किस तरह उनको ये बतलायें
उन्होंने इक झलक देकर सदा पर्दा कराया है

ये बच्चा घर से जब भागा था तो बिलकुल सलामत था
इसे तो चंद सिक्कों के लिए लंगड़ा कराया है

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Replies to This Discussion

एकजाई ग़ज़ल प्रस्‍तुत कर छूट गयी ग़ज़लें भी उपलब्‍ध करा दी हैं। आभार।

उर्दू शायरी में उस्‍ताद परंपरा का पालन किस गंभीरता से किया जाता है और उसके परिणाम क्‍या होते हैं यह मोईन शम्‍सी जी और हिलाल अहमद 'हिलाल' की ग़ज़लों में स्‍पष्‍टत: देखा जा सकता है। मेरा आशय यह कदापि नहीं कि अन्‍य ग़ज़लें कमज़ोर हैं, लेकिन इन दो ग़ज़लों की शेरियत देखने काबिल है।

 

 

kapoor saahab, aapki zarra-nawaazi hai. aapka aur deegar sabhi baa-zauq dosto ka shukria ada karta hu ki aap sabne meri ghazal pasand farma kar meri ek bar phir hausla-afzaai ki hai.

OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक ११ 

में सम्मिलित सभी प्रतिक्रियाएं अब कैसे देखी जा सकती हैं … बताने का कष्ट करें ।

क्या जिन ग़ज़लों पर मैं टिप्पणी नहीं कर पाया उन पर अब भी टिप्पणी की जा सकती है ? कैसे ?  

 

राजेन्द्र स्वर्णकार 

आदरणीय राजेंद्र स्वर्णकार जी, आप मन्दर्जा ज़ैल लिंक पर क्लिक कर के सारा मुशायरा (मय कमेंट्स) दोबारा देख सकते हैं : 

http://www.openbooksonline.com/forum/topics/obo-11now-close

क्योंकि, यह आयोजन अब बंद हो चुका है, अत: आप इस पर टिप्पणी नहीं दे पाएंगे ! सादर ! 
यहाँ अपना गजल पाकर मैं बहुत खुस हु सच कहू तो मुझे गजल लिखने आता नहीं हैं लेकिन देख कर रेखा खीचने की कोशिस किया हु  और जो कुछ भी लिखा हु उसका पूरा श्रेह बागी जी को जाता हैं
waah sari rachanaye bahut achchi hai........

शुक्रिया  तिलक  राज  जी  और  सभी  ओ  बी  ओ  मेम्बेर्स  का  

जिन्होंने  मुझ  नाचीज़  का  हौंसला  बदाय  और  मुहब्बत  दी 

ऐसे  कलाम  एक  माहौल  में  लिखे  जा  सकते  है  और  ये  माहौल  मुझे  ओ  बी  ओ  से  मिला  मै  इसका  सारा  श्रेय  इस  ओ  बी  ओ  परिवार  को  देता  हूँ 

जो अपनी प्रतिकिर्याओं से हम जैसे नौजवानों का हौंसला बढ़ाते है

शुक्रिया

 

क्षमा चाहूँगा मित्रों ! इन्टरनेट कनेक्शन ख़राब होने के कारण मैं इस मुशायरे में भाग न के सका ! आदरणीय प्रधान संपादक जी को एक साथ सभी गज़लें पढवाने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया ......

तरही मुशायरे हेतु मैंने भी एक ग़ज़ल तैयार किया था किन्तु नेट समस्या के कारण पोस्ट नहीं कर सका, जो यहाँ पर प्रस्तुत है

 

बिना सोंचे बिना जाने जो मनमाना कराया है

जरा अंजाम तो देखो हमें रुस्वा कराया है. (१)


कटारी पीठ पीछे है जुबां मीठी शहद घोले,

दगा दे वक्त पर सबको सही धंधा कराया है. (२)


नजर है ढूंढती उनको जो छिपते थे निगाहों से,

मिला बेबाक जब साकी तो छुटकारा कराया है. (३)


तुम्हारी दोस्ती से तो है अपनी दुश्मनी अच्छी,

इन्हीं नादानियों से हारकर सौदा कराया है. (४)


हजारों दर्द सहकर भी जुबां खामोश थी लेकिन ,

ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है. (५)


गले मिलते थे आपस में रही अब याद ही बाकी,

बिगाड़ा क्या तुम्हारा था जो बेगाना कराया है. (६)


मोहब्बत है दफ़न दिल में कलेजा अब हुआ पत्थर,

लहू रिसता है घावों से तो शुक्राना कराया है. (७)

 

आदरणीया शारदा जी
आपका बहुत-बहुत आभार|

अम्बरीश सर बहुत खूब 

 

हजारों दर्द सहकर भी जुबां खामोश थी लेकिन ,

ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है......लाजवाब गिरह बांधी है| अन्य शेर भी बहुत पसंद आये|

 

आदरणीय भाई राणा जी, इस शेर के साथ साथ आपको यह ग़ज़ल पसंद आयी इसके लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया दोस्त ..........:))
अच्छी ग़ज़ल है अम्बरीश जी
हौंसला हमेशा बुलंद रखना चाहिए इस बार लेट हुए कोई बात नहीं
आपके जज्बातों की हम सभी लोग कद्र करते है
यु ही सभी ओ बी ओ मेम्बेर्स अपनी भागीदारी और अपना शौक़ बरक़रार रखें
बहुत जल्द ये ओ बी ओ एक बहुत बड़ी साहित्यक संस्था में गिना जाएगा
और मुझे बहुत ख़ुशी हुई के हमारे ओ बी ओ का पेपर में इस तरह से सूचना निकली इसका मतलब है हम लोगो की मेहनत बेकार नहीं जा रही और मुझे उम्मीद है इस मंच से भी बहुत से लोगो को नयी बुलंदियां मिलेंगी
शुक्रिया

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"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद।"
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अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ेफ जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
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अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"//जिस्म जलने पर राख रह जाती है// शुक्रिया अमित जी, मुझे ये जानकारी नहीं थी। "
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी, आपकी टिप्पणी से सीखने को मिला। इसके लिए हार्दिक आभार। भविष्य में भी मार्ग दर्शन…"
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अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"शुक्रिया ज़ैफ़ जी, टिप्पणी में गिरह का शे'र भी डाल देंगे तो उम्मीद करता हूँ कि ग़ज़ल मान्य हो…"
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Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। आ. अमित जी की इस्लाह महत्वपूर्ण है।"
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