For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २५ (Now Closed With 1190 Replies)

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के शानदार चौबीस अंक सीखते सिखाते संपन्न हो चुके हैं, इन मुशायरों से हम सबने बहुत कुछ सीखा और जाना है, इसी क्रम में "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २५ मे आप सबका दिल से स्वागत है | इस बार का मिसरा हिंदुस्तान के उस अज़ीम शायर की ग़ज़ल से लिया गया है जिन्होंने ग़ज़ल विधा को हिंदी में लोकप्रियता की बुलंदियों पर पहुँचाया.  जी हां आपने ठीक समझा मैं बात कर रहा हूँ विजनौर उत्तर प्रदेश में १९३३ में जन्मे मशहूर शायर जनाब दुष्यंत कुमार का। इस बार का मिसरा -ए- तरह है :

 .

"यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है"
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाएलुन

(रदीफ़ : है)
(क़ाफ़िया   : आन, बान, शान, तूफ़ान, मेहमान, आसान इत्यादि) 

.

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 जुलाई 2012 दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० जुलाई 2012 दिन सोमवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २५ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी | मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है:
 


( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 28 जुलाई 2012 दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा )

यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह

(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन

Views: 19632

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

------------वाह वाह सफत खैराबादी जी.....बहुत ख़ूब !

___एक से बढ़ कर  एक शे'र.......

राह्ते केसे मिलेंगी हादसों की भीड़ में ,
रात दिन अब ज़िन्दगी मेरी वाबले जान है ..____ये क्या है ...मैंने ये शब्द पहली बार पढ़ा है

जो समझ पाया नहीं यारो पराये दर्द को ,
साडी दुनिया में बड़ा बेरहम वो इन्सान है ..____मेरे ख्याल से सारी होना था 

झूठ आसाँ हो गया है झूठ वालों के लिये ,
सच वही बोलेगा जो भी साहिबे ईमान है ...___भी जगह  शायद  कि या के नहीं चलेगा ?

___बहुत ही शानदार  और  उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई जी........
 

ऐ वतन की सर ज़मी मैं हूँ तेरी आगोश में ,
इसलिये प्यारा मुझे ये सारा हिंदुस्तान है ...

ये वफ़ा दारी है मेरी तुझसे गद्दारी नही ,
तुझपे ऐ खाके वतन ये ज़िन्दगी कुर्बान है ..

हुस्नो अखलास अखुवत है अगर किरदार में ,
ऐ साफत तेरी दुनिया में यही पहचान है ..     साफत खैराबादी जी सादर बधाई ये तीनों शेरो नें  सच कहूँ दिल ले लिया

बहुत बहुत बधाई

भाई सफ़त खैराबादी, आपकी आमद मुबारक हो. मंच पर बने रहें, कहते रहें, सुनते-सुनाते रहें.

सधन्यवाद

राह्ते केसे मिलेंगी हादसों की भीड़ में ,
रात दिन अब ज़िन्दगी मेरी वाबले जान है....शायद बवाले लिखना चाह रहे हो, जो वजन में भी होगा |

जो समझ पाया नहीं यारो पराये दर्द को ,
सारी दुनिया में बड़ा बेरहम वो इन्सान है ..

पता नहीं क्यों मैं मिसरा सानी को वजन में नहीं पढ़ पा रहा हूँ 

अमन का पैगाम देता है जहाँ को आज भी ,
तुम उठा कर देखलो ये नुस्खए कुरआन है..........वाह वाह, सवा शेर , बहुत ही प्यारा शेर,

ऐ वतन की सर ज़मी मैं हूँ तेरी आगोश में ,
इसलिये प्यारा मुझे ये सारा हिंदुस्तान है .....आय हाय , क्या जज्बा है,

बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल, शायर को इस कामयाब शायरी के लिए तहे दिल से मुबारकवाद |

 ग़ज़ल कहने जा बहुत सुन्दर प्रयास है सफत खैराबादी साहिब, दाद कबूल फरमाएं.  

जो समझ पाया नहीं यारो पराये दर्द को ,
सारी दुनिया में बड़ा बेरहम वो इन्सान है ..

अमन का पैगाम देता है जहाँ को आज भी ,
तुम उठा कर देखलो ये नुस्खए कुरआन है ..

ऐ वतन की सर ज़मी मैं हूँ तेरी आगोश में ,
इसलिये प्यारा मुझे ये सारा हिंदुस्तान है ...

ये वफ़ा दारी है मेरी तुझसे गद्दारी नही ,
तुझपे ऐ खाके वतन ये ज़िन्दगी कुर्बान है ..

वाह वाह सफत खैराबादी जी..वाह

सफ़त भाई नमस्कार !बहुत उम्दा ग़ज़ल । एक एक शेर अपने आप में जादू गरी कर रहे हैं। इस बेहतरीन ग़ज़ल के ल्ये दाद कुबूल करें !!

ओबीओ लाईव तरही मुशायरा रजत जयंती अंक में
मेरी दूसरी गज़ल..................................

हर गज़ल दुष्यंत की , इक शब्द भेद बाण है
कह रही आवाम से “मत चूकिये चौहान” है |1 |


कमल मुरझाने लगे, है मलिन जल तालाब का
अब बदल डालो इसे,उनका यही आव्हान है |2|


वह हँसी है बाँटता,सबको खुले मन से सदा
लोग "अलबेला" कहें, सचमुच गुणों की खान है |3|


"तिलक", "सौरभ" गुरूजी, जब जब उमेठे कान है
ओबिओ पर शिष्य को, चोखा मिला तब ज्ञान है |4|


बिन " रफी "के गीत की, दुनियाँ बड़ी वीरान है
यह हमारे वक़्त की, सबसे बड़ी पहचान है |5|

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

जय हो अरुण भाई आप आये बहार आई  आपने आदरणीय दुष्यंत जी के साथ पूरे मंच एवं परिजन को लेकर सुन्दर गज़ल का  तीर चलाया है साथ ही मोहम्मद रफ़ी साहब को याद किया कल का दिन ३१ जुलाई मोहम्मद रफ़ी की पुन्य तिथि है साथ ही मुंशी  प्रेम चंद जी  की जयंती भी है

बहुत बहुत बधाई सर जी

सादर सादर सादर सादर ..........     :-))))

31जुलाई को हृदय से याद करने के लिये आपका सादर धन्यवाद, अरुणभाईजी. यह आपकी संवेदनशीलता की पहचान है.

//हर गज़ल दुष्यंत की , इक शब्द भेद बाण है
कह रही आवाम से “मत चूकिये चौहान” है//

शायद आप शब्द भेदी बाण कहना चाह रहे है, क्योंकि बहर पर "भेदी" ही बैठता है |

फूल मुरझाने लगे, है जल मलिन तालाब का
अब बदल डालो इसे,उनका यही आव्हान है

यदि ऐसे पढ़े तो ......

"तिलक", "सौरभ" गुरूजी, जब जब उमेठे कान है
ओबिओ पर शिष्य को, चोखा मिला तब ज्ञान है

यह शेर बहर में नहीं आ रहा, मेरे ख्याल से तिलक १२ वजन पर होगा २१ पर नहीं | इसका क्रम दुसरे क्रम पर हो तो ऐब से बचा जा सकता है |

इस प्रयास पर बधाई आपको |

1. शब्द भेदी ही सही है, टंकण त्रुटि की ओर ध्यानाकर्षण हेतु शुक्रिया.......

2. अब तो इस तालाब का पानी बदल दो, इसमें कमल के फूल मुरझाने लगे हैं......दुष्यंत कुमार के शेर को अपने अंदाज़ में कहने का प्रयास किया था था अत: फूल की जगह क्या कमल ठीक नहीं होगा ?

3. 12-14 में लिखा था यह गणित कैसे गलत हो गया, समझ में नहीं आया. गज़ल का शिल्प ठीक से नहीं समझ पाया हूँ. कृपया इसे फिर से समझायें..................

शुक्रिया........................

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
3 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
19 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
19 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service