For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"चित्र से काव्य तक अंक -9 " : सभी रचनाएँ एक साथ :

 

आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर

प्रतियोगिता से अलग
(
छन्न पकैया)

छन्न पकैया-छन्न पकैया , हैरत में है क़स्बा,
धन्य धन्य है धन्य धन्य है, इन वीरों जा जज्बा. (१)   
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, सब तकलीफें झेलो
छीन लिए गर पाँव समय ने, तुम हिम्मत से खेलो ! (२)
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, छन्न के बीच परिंदा
रुक न जाना चलते रहना, जब तक हिम्मत जिंदा  (३)
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, छन्न के ऊपर गहना
फ़र्ज़-ए-अव्वल है इन्सां का, कोशिश करते रहना.  (४) 
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, छन्न के नीचे काठी,
हिम्मत से जब काम लिया तो, पाँव बनी है लाठी. (५)
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, छन्न के ऊपर धागे
आशायों की चले सबा जो, हरेक निराशा भागे. (६)   
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, छन्न बंधे हैं फीते
जिंदादिल इन्सान हमेशा, हर मैदान में जीते (७)

छन्न पकय्या-छन्न पकय्या, उम्र कटे न रो कर
हर मुश्किल का उत्तर होती, जिंदादिल की ठोकर. (८)

छन्न पकैया-छन्न पकैया, शक न रत्ती-माशा
आशा की पुस्तक हो जीवन, हिम्मत हो गर भाषा. (९)

छन्न पकैया-छन्न पकैया, बोलें चाँद सितारे,
जिसने मन के डर को जीता, कैसे फिर वो हारे ? (१०)

___________________________________________________________

अम्बरीष श्रीवास्तव.

 

(प्रतियोगिता से अलग)

(1)

"दोहे"

कंदुक क्रीड़ा देखिये, लक्ष्य नहीं अब दूर. 

अंगहीन तो क्या हुआ, साहस है भरपूर..

 

बैसाखी से संतुलन, नहीं कठिन कुछ काम.

जोश भरी परवाज़ हो, जीतें हर संग्राम..

 

दुनिया में विकलांग को, मत समझो बेहाल.

संग हमारे आइये, खेलें मिल फ़ुटबाल.. 

 

हो अदम्य उत्साह जब, क्यों न मिले सम्मान

ईश कृपा हो साथ में, लें भरपूर उड़ान.. 

 

इनसे लेकर प्रेरणा, सदा किये जा कर्म. 

उठकर अब तो हों खड़े,छोड़ दीजिये शर्म..

 

(2)

कुण्डलिया:
(
प्रतियोगिता से अलग)
इनकी हिम्मत है गज़ब, देखो मचा धमाल.
कुर्बानी दी देश को, अब भी करें कमाल.
अब भी करें कमाल, हाथ बैसाखी वाले.
एक पाँव से खेल, रहे देखो दिलवाले.
अम्बरीष कविराय, गा रहे महिमा जिनकी.
ठहरे ये जाबांज, जीत जज्बे की इनकी ..

___________________________________________________

 

आदरणीय श्री दिनेश मिश्र 'राही'

 

दुर्मिल सवैया

अभिमान कभी न भरैं उर मा अरमान सदा उत्साह भरैं.

विकलांग हूँ तो कोई बात नहीं बस ईश हमार सहाय करैं.

परवाज भरूं बिनु पंख यहाँ कुविचार भगें व कुछांह जरैं.

फ़ुटबाल उडै नभ बीच सदा खुशियाँ धरि दीप प्रकाश झरैं..

 

उत्साह  में कोइ  कमी न रहै नित नीति के संग उड़ान भरूं .

विकलांग हूँ जो अभिशाप नहीं चहुँ ओर अदम्य उड़ान भरूं.  

फ़ुटबाल ही लक्ष्य जो साध सदा अब राष्ट्र निमित्त उड़ान भरूं.

बइसाखि ही पांव हमार लगें न थकैं, हुलसाय उड़ान भरूं..  

 

____________________________________________________

 

आदरणीया श्रीमती मोहिनी चोरड़िया

 

नियति से मिला है

इन्हें ये रूप

बनाकर असमर्थ असहाय

कर दिया कुरूप,

जिंदगी बेबस हुई

कोई गीत

कोई प्रीत

कोई मीत नहीं

माता -पिता तक मारने की

सोचते हैं इन्हें

जन्मते ही  

समझते हैं बोझ इन्हें ,

लेकिन कुछ  

इन्हें जीने देने की कसम

खाते हैं

सिर्फ जीने देने की ही नहीं

इज्जत से जीने की

शायद वे समझते हैं कि 

ये  बच्चे असहाय , अपूर्ण

हो सकते हैं

अयोग्य नहीं

इन्हें दया की भीख की नही

जरुरत है प्रेम की

प्रेम जो योग्यता को निखारता है

प्रेम जो जीने का  ज़ज्बा देता है

प्रेम मिलने पर देखें

कैसे उड़ान भरते हैं सपने इनके

और इसी समय

कई संभावनाएं जन्म लेती हैं

कुछ असंभव नहीं रहता

प्रेम बन जाता है  प्रेरणा

प्रेम बन जाता है हौसला

और उड़ान सिर्फ परों से नहीं

हौसलों से होती है

जैसा कि चित्र में दर्शाया है

बैसाखी ,चेहरे की चमक

चेहरे की चमक हौसला है

सिर्फ बैसाखी ही नहीं

हौसला फुटबाल खिलाता है

ओलंपिक तक में मेडल दिलाता है

उस समय ये जांबाज़ बन जाते हैं

विजेता

विजेता जिंदगी के खेल के

प्रेम के साथ सम्मान  पाकर

गुनगुना उठती है ज़िंदगी

हाथ उठ जाते हैं सम्मान में उसके

जिसने गिराया उठाया भी उसी ने |

______________________________________________________

 

आदरणीय श्री संजय मिश्र 'हबीब'

(1)

एक कुण्डलिया (प्रतियोगिता से पृथक)

आगे हम हैं वक्त से, हम ना माने हार   

वक्त हार कर डालता, कंठ हमारे हार  

कंठ हमारे हार, हरे सब कंटक पथ के

साधें अपना भाग, धरा धूरी हम मथ के

डिगा सके ना कष्ट, डिगे वह खुद ही भागे

हम खायें ना मात, रहें हम हरदम आगे 

 

(2)

एक ठोकर और पर्वत खण्ड खण्ड बिखर गया।         

ज्यों उठाये पाँव हमने आसमान पसर गया।।

 

हम दिखाते हैं नहीं अपनी कभी दुश्वारियां,

हम दिखाते हर्ष कैसे भर चले किलकारियाँ।

हम धरा पर छाप साहस का अमिट छोड़े चलें,

हम धरा को यूँ सजाते ज्यों अदन की क्यारियां।

देख हमको हर दिलों में जोश झर-झर भर गया।

ज्यों उठाये पाँव हमने आसमान पसर गया।।

 

मंजिलों को जीतने की जिद्द कम हम में नहीं,

पर्वतों को तोड़ जैसे धार दरिया की बही।

हम हवाओं को भला कोई सकेगा बाँध क्या,

बादलों को कब जला पाई कडकती दामिनी।

जब चले सूरज उठा हम तमस देख सिहर गया।

ज्यों उठाये पाँव हमने आसमान पसर गया।।

 

नेमतें हैं उस खुदा की बख्शता जो दो जहाँ,

खासियत तो, कुछ कमी भी इंस को मिलती यहाँ।

हम कमी को हौसलों में ही बदल आगे बढ़े,

हम लिखे तारीख अपने हाथ से अपनी यहाँ।            

जब उड़े बिन पांख हम तो चकित काल ठहर गया।

ज्यों उठाये पाँव हमने आसमान पसर गया।।

__________________________________

अदन = स्वर्ग. इंस = मनुष्य

 

(3)

धनाक्षरी छंद (८/८/८/७)

हौसले का यह गान, तोड़ लाये आसमान

निसहाय नहीं जान, हम बड़े ख़ास हैं

बैशाखी की पाँव लिए, हँसते ही हम जियें

परीक्षाएं जो भी दिये, सब में ही पास हैं

खेल के मैदान जाएँ, सब के ही भांति धायें

रोम रोम खिला पायें, मन में उजास है

हम तो  हैं मतवाले, साहस के हैं उजाले

हर पल हंस गा लें, जीवन तो आस है.

_________________________________________________

 

आदरणीय श्री दिलबाग विर्क

(1)

अपाहिज कोई 

जिस्म से नहीं होता 

सोच से होता है 

जो सोच से अपाहिज है

वह स्वस्थ होते हुए भी 

हार जाता है ज़िन्दगी से 

और जो 

सोच से अपाहिज नहीं 

वह अपाहिज होते हुए भी 

धत्ता बता देता है 

हर मुश्किल को 

और सफलता 

कदम चूमती है उसके । 

(2)

हिम्मत इनकी देखना, देखो जरा कमाल 

न हारें, एक टांग से, खेल रहे फुटबाल  ।

खेल रहे फुटबाल, बुलंद इरादे इनके 

देते सबको मात, बुलंद इरादे जिनके ।

लो इनसे तुम सबक, न कोसो अपनी किस्मत 

कहे विर्क कविराय , जीत लेती जग  हिम्मत ।


(3)

          तांका                       

 

1. पास जिसके

    हिम्मत की बैसाखी 

    अपंग नहीं 

    अपंगता तो होती 

    हिम्मत का न होना ।

 

2. अपाहिजता 

    तय होती सोच से 

    न हिम्मत है 

    न बुलंद इरादा 

    अपाहिज है वही ।

 

3. सोच पंगु तो

    अपंग है आदमी 

    सोच दृढ तो 

    सुदृढ़ है आदमी 

    न देखना शरीर ।

 

4. कुछ भी यहाँ

    असंभव नहीं है 

    असंभव को 

    संभव बना देते 

    मजबूत इरादे ।

 

5. आँखों में स्वप्न 

    हो दिल में हौंसला 

    तो संभव है 

    प्रत्येक वह कृत्य 

    जो लगे असंभव ।

_____________________________________________________

 

आदरणीय श्री अतेन्द्र कुमार सिंह 'रवि' 

 

कुण्डलियाँ

 

ताको देखि क्या कहै , मुख से निकरे वाह 

बिना पग ये दौड़ रहे , है अदभुत उत्साह 

 है अदभुत उत्साह , सभी रंग में ये ढले 

पैर काठ का बना , मैदान पर दौड़ चले 

कहे 'रवि' तो सुनाय, अपने मनहि में झांको 

पथ में बाधा नहीं , हिम्मत रहे जो ताको ll

दौड़ रहे संग गेंद कि , ले बैसाखी हाथ 

दृग जमा बस गोल पर , आशा इनके साथ 

आशा इनके साथ , हर खेल अपना होई 

पाँव नहीं तो क्या , है धैर्य बनीं गोई 

रण में कूदी पड़े , लेकर हृदय में हौड़

कहत 'रवि' कविराय , ये निरखे अपनीं दौड़ ll

जहाँ खेल के मैदान में , कि बरबस ही लुभाय

अधपग के बांकुरों की , खेल यही उक्साय

खेल यही उक्साय , इ कैसी बेदना झरै

हिम्मत है 'रवि' देखि , यहाँ तो हार भी डरै

दिखते दृश्य अदभुत , है आज धरा पर यहाँ 

है जोश उर में जो , अधपग में नापे जहाँ ll

______________________________________________________         

 

आदरणीय श्री आलोक सीतापुरी

(प्रतियोगिता से अलग)

(1)

छंद 'हरिगीतिका'

 

लहरा गयी नभ में पताका साहसिक अभियान की
जन का मनोबल है जताती भंगिमा मुस्कान की
सकलांग जन सीखें सफलता क्रांतिमय उत्थान की
देखें महा विकलांगता पर यह विजय इंसान की||

विकलांग कंदुक ले भिड़े हैं खेल के मैदान में
अत्यंत अदभुत हौसला है पंगुजन अभियान में
पग एक ही जब नभ छुआ दे गेंद हिन्दुस्तान में
आलोक इनको दें बधाई साहसिक अभियान में ||

(2)

घनाक्षरी:

(प्रतियोगिता से अलग)
(१)
हाथ पाँव बेमिसाल, दंडियाँ करें कमाल,
खेल रहे फ़ुटबाल, भारत के लाल हैं.
चूक जांय क्या मजाल, गेंद को रहे उछाल,
कौन सकता सम्हाल भारत के लाल हैं.
मानस के ये मराल, काल के भी महाकाल,
यौवन भरे उछाल, भारत के लाल हैं.
मन से जो विकलांग, उनका है बुरा हाल,
तन के लिए मशाल, भारत के लाल हैं 
(यति : ८, ८,८,७ वर्ण पर )
(२)
ये भी लाल भारत, विशाल के हैं कंठमाल,
पाल-पाल इनको, न आप पछताइए.
गिरि के शिखर चढ़, जायेंगें ये पंगु बन्धु,
आप जरा हौसला तो इनका बढ़ाइए.
अंग-भंग हो गया तो, रंग-भंग कीजिये ना,
साथ-साथ इनको पढ़ाइये  लिखाइये.
कर्णधार यह भी बनेंगें भावी भारत के,
विकलांग-सकलांग भेद भूल जाइये..
(यति : १६-१५ वर्ण पर )
(३)
विकलांग लोग आपके ही परिवार के हैं,
शिक्षा और दीक्षा का सुयोग इन्हें दीजिये.
इनको कदापि ना समझिये दया का पात्र,
कुंठा व निराशा से वियोग इन्हें दीजिये.
रोजी-रोटी खुद ही कमा लें काम करके ये,
ज्ञान व विज्ञान के प्रयोग इन्हें दीजिये.
भार ये उठायेंगें बनेंगें खुद भार नहीं,
अपना सनेह सहयोग इन्हें दीजिये..
(यति : १६-१५ वर्ण पर )
(४)
तन से भले अपंग, मन में लिए उमंग,
लड़ते व्यथा से जंग, इनको नमन है.
बिन हाथ काम करें, बिन पाँव राह चलें,
बिन कान सुनें सब, उनको नमन है.
समझे गलत आप, इनको दया का पात्र,
कौशल कला के छात्र, फन को नमन है.
पंगु अंध मूक और, बघिर समेत सभी,
एक एक विकलांग, जन को नमन है..
(यति : ८, ८,८,७ वर्ण पर )

(3)

प्रतियोगिता से अलग

"विकलांगों के प्रति"
(१)

ये भी कभी थे वैसे जैसे हो मर्द तुम
इंसान हो तो बांटों इनका भी दर्द तुम


कुछ जन्म से ही मूक बधिर पंगु अंध होते
कुछ रोग हादसों में सकलांग, अंग खोते
भरते हो देख उनको क्यों सर्द आह तुम
इंसान हो तो बांटों .........

कहिये न लूला लंगड़ा अँधा न गूंगा बहरा
ये शब्द गालियों से करते हैं घाव गहरा
मजबूरियों पे हँस के बनते हो मर्द तुम
इंसान हो तो बांटों .........

भिक्षा नहीं दया की यह लोग मांगते हैं
बढ़ जायेंगे खुद आगे सहयोग मांगते हैं
गिरने के बाद हरगिज़ झाड़ो न गर्द तुम
इंसान हो तो बांटों .........

(१)
दुनिया इन्हें समझती इंसान क्यों नहीं
विकलांग हो गये हैं हैवान तो नहीं

मेहनत के ये पुजारी हर काम कर रहे हैं
जीवन सफ़र में प्रतिपल संग्राम कर रहे हैं
लेकिन समाज में वो स्थान क्यों नहीं
दुनिया इन्हें समझती........

बेहाथ काम अपने पैरों से साधते हैं
हो करके पंगु भी यह पर्वत को लांघते हैं
हैं दृष्टिहीन वंचित पहचान तो नहीं
दुनिया इन्हें समझती........

ऐलान सहूलत के सरकार कर रही है
रूलिंग है इस तरह के बेकार कर रही है
मिलता है सिर्फ धोखा अनुदान तो नहीं
दुनिया इन्हें समझती........

_________________________________________________

आदरणीय श्री एन० बी० नज़ील

 

हाथों में बैसाखिया हैं और सर  पे खुदा है  ,
हम में भी कुछ कर गुजरने का  ज़ज्बा है ,

.

पाना है मंजिल को हर हाल में हमने ,
होगा अचूक निशाना जो हमसे सधा है,

.

लड़ना होगा आखिरी दम तक  मैदां में ,
ग़र   कायम रखना हमको दबदबा है.

.

जीतना ही है जब ,हर हाल में  हमको,
तो हार के  बारे में अब  सोचना क्या है

.

सरफरोशी  की तमन्ना है जिसके दिल में ,
तो "नज़ील" वो भला पीछे कब हटा है

__________________________________________________

 

आदरणीय श्री सतीश मापतपुरी

 

( प्रतियोगिता से अलग )

देख लो किस्मत हमें, मोहताज ना  किसी दौड़ में.

देख लो ऐ वक़्त, हम जांबाज़ हैं हर  दौर में .

.

क्या हुआ हमको अधूरी ही, मिली है ज़िन्दगी.

क्या हुआ गर ना हुई कुबूल, अपनी बंदगी.

फिर भी हम ना हैं किसी से कम, कहीं इस ठौर में.

देख लो ऐ वक़्त, हम जांबाज़ हैं हर दौर में .

.

और  कुछ छोड़ो उठाओ गेंद, अजमाओ हमें.

गर समझते हो बेचारा, जीत दिखलाओ हमें.

देंगे हम टक्कर बराबर, दोपहर या भोर में.

देख लो ऐ वक़्त, हम जांबाज़ हैं हर दौर में .

.

ना समझ बैसाखी इसको,ये हमारे पाँव है.

वक़्त की मझधार में, ये  हमारी नाव है.

हम पे मत खाओ तरस, हम भी तो हैं सिरमौर में.

देख लो ऐ वक़्त, हम जांबाज़ हैं हर दौर में .

______________________________________________________ 

.

आदरणीया श्रीमती शन्नो अग्रवाल   

प्रतियोगिता के बाहर 

जिंदगी को जश्न बनाना कोई सीखे

फूलों सी खुशबू फैलाना कोई सीखे

लाचार हैं अंग से पर कम नहीं हसरत

परिंदों जैसे उड़ने की रखते हैं हिम्मत l  

 

दाता ने एक पैर से लाचार कर दिया  

पर जल रहा दिल में अरमान का दिया 

मन में हो चाह, उत्साह और लगन

तो झुक जाता उनके सामने गगन l

 

ये बैठकर अफ़सोस करना जानते नहीं

किसी हार-जीत को ये पहचानते नहीं  

जिंदगी की दौड़ में बहुत हैं मुश्किलें  

पर दिल इनके फूल से हैं खिले-खिले l

 

बैसाखी के सहारे पर नहीं है कोई गम     

ना ही माँगना सीखा किसी से है रहम

रोज ही दुनिया इन्हें कहती अपंग है  

पर जिंदगी उमंग की उड़ती पतंग है l

 

आँखों में लिये सपने जीने की तमन्ना

बेकार है इंसान किसी हौसले बिना    

पथरीली सी राह इनसे मात खाती है

ये देख इन पर जिंदगी मुस्कुराती है l

_________________________________________________

 

आदरणीय श्री अविनाश बागडे.

मुठ्ठी में आकाश!

-----------------------

अरमानों के पंख लगाकर

भरना है परवाज़.

नए सफ़र का नए जोश से

करना है आगाज़.

कितनी भी बाधाएँ आये

 करना है सब पार.

कदमो में मंजिल होगी

और मुट्ठी में आकाश.

-------------------------

___________________________________________________

आदरणीय श्री लाल बिहारी लाल

मन में हो संकल्प कुछ कर गुजर जाने का।

प्रकृति बन नहीं सकती बाधा दुश्मन को हराने का।।

__________________________________________________

आदरणीया श्रीमती वंदना गुप्ता

प्रतियोगिता से अलग 

विकलांगता तन की नहीं मन की होती है

यूँ ही नहीं हौसलों में परवाज़ होती है

घुट्टी में घोट कर पिलाया नहीं था माँ ने दूध

उसने तो हर बूँद में पिलाई थी हौसलों की गूँज

ये उड़ान नहीं किसी दर्द की पहचान है

ये तो आज हमारी बैसाखियों की पहचान है

बैसाखियाँ तन को बेशक देती हों सहारा

मन ने तो नहीं कभी हिम्मत को हारा

बेशक छूट जाएँ राह में बैसाखियाँ

बेशक टूट जाए कोई भी सुहाना स्वप्न

पर ना छूटेगा कभी ये मन में बैठा 

हौसलों  का लहराता परचम 

हमने यूँ ही नहीं पाई है ये सफलता

ठोकरों ने ही दी है हमें ये सफलता 

अब कोशिश में हैं आसमान छूने की

गर कर सकते हो तो इतना करो

मत राह की हमारी रुकावट बनो

मत अपंगता का अहसास कराओ

एक बार हम पर भी अपना विश्वास दिखाओ

फिर देखोगे तुम आसमाँ में 

चमकते सितारों में बढ़ते सितारे

एक नाम हमारा भी बुलंद होगा

चाँद की रौशनी में दमकता 

सितारों का एक नया घर होगा 

___________________________________________

 

आदरणीय  श्री सुरेंदर रत्ती

 

दिमाग की परवाज़ का, किसे है अंदाज़ा 

परिंदों से भी तेज़, उड़ने का है इरादा 

 

दबंग हैं दबंग, कुदरत के ये फूल भी,

ठान लें दिल में तो, बजा दें बैंड-बाजा   

 

अपंग, डिसेबल जैसे, अल्फाज़ चोट करें,

जड़ दिया तमाचा, मन  रोवन लागा

 

हौसला, जज़्बा, जोश, ज़रा भी कम नहीं,

 दो पैर वालों से भी, ये काम करें ज़्यादा   

 

एक चुस्त सोच तो, आसमां को चीर दे,

राजा हो या रंक, भले हो छोटा प्यादा 

 

बैसाखियाँ ये काठ की, हमसफ़र बनी हैं,

तक़दीर के खेल से, बन्दा न डर के भागा

 

"रत्ती" जिस्म है, जां है, वजूद हरा-भरा,

 हरियाली दिल में, कोई न कहे अभागा   

________________________________________

 

आदरणीय श्री नीरज

 

बिना कलम के कविता लिखते है दादा आलोक जी ,

बिना पैर फ़ुटबाल खेलते हिम्मतवाले लोग जी.

सोनू सिंह के पैर नहीं पर्वत पर चढ़ना ठाना है,

है हौसले बुलंद के जिससे विस्मृत हुआ जमाना है .                                                        अदित्तीय प्रकरण है ओ बी ओ पर हमको नाज है 

हिम्मतवालो के चरणों में झुकता  सदा समाज है .

चित्र विचित्र दिखाया रचनाकार भी रचना भूल गए,

हिम्मतवाले हंस हंस कर फाँसी के फंदे झूल गए ..

________________________________________________

आदरणीय श्री संजय पराशर 

हौसला तुमसा न पाया उन विश्व विजेताओं में !
ऊर्जा का संचार है तुमसे महकती हुई फिजाओं में !!

देवदूत सा तेज तुम्हारा हो प्रेरणा के पुंज !
मृत मन में भी खनक पड़ी अब संकल्पों की गुंज !!

नैराश्य के थपेड़ों से छुपकर बैठे थे हम गुफाओं में !
दर्शन जो तुम्हारा पाया उड़ चले हवाओं में !!

संघर्षों की गठरी थामे उतरे हो तुम धरा पर !
जन-मन में इक दीप जलाकर पहुचाया है नभ पर !!

कलयुग में कर्मशीलता का तुमने अद्भूत चक्र चलाया !
सतयुग में हर चक्र जगाकर परम ज्ञानी अष्टावक्र कहलाया !!

धरती पर तुम्हें बहुमान मिले , सुखमय हो जीवन का मेला !
आसमां गुणगान करे , शुभाशीष बिखेरे नीत नव बेला !!

_______________________________________________________

आदरणीय श्री महेंद्र आर्य

जिंदगी के खेल में हम सब फ़ुटबाल हैं
समय खेलता हमें दे देकर ताल है

लात इक करारी जब सीने पर पड़ती है
कष्ट थोडा होता है , कसक थोड़ी गड़ती है
लेकिन ये लात हमें उड़ा ले जायेगी
जीवन का गोल जहाँ वहां ले जायेगी
उन्नति का रास्ता - बस यही उछाल है
जिंदगी के खेल में .............................

इन से ही सीखिए, जिंदगी का फलसफा
इतना कुछ खोकर भी , जीवन से न खफा
मुश्किलें फ़ुटबाल है , लात खा के भागेगी
ऐसे ही खेल से किस्मत फिर जागेगी
खेलते हैं बाँकुरे , क्या बेमिसाल हैं
जिंदगी के खेल में .............................

_________________________________________________

 

आदरणीय श्री पल्लव पंचोली (मासूम)
उस काली अंधेरी रात मे
वो चल रहा था लेकर बोतल हाथ मे

कदम उसके हर बार डगमगा रहे थे
लोग देखकर उसे हँसे जा रहे थे

तभी गिरा वो ज़मीन पर हाथ की बोतल छोड़कर
इक आदमी पहुँचा उसके पास बैसाखी पर दौड़कर

बैसाखी के सहारे ही उसने अपना हाथ बढ़ाया
ज़मीन पर गिरे हुए की फिर से उसने उठाया

शराबी बोला ए लंगड़े तू क्या मुझे उठाएगा
मुझसे पहले तू ही यहाँ गिर जाएगा

वो बोला मैं रोज़ लंगड़े नाम के ताने सुनता हूँ
मगर मैं बैसाखी के सहारे भी फुटबाल खेलता हूँ

सुन सिर्फ पाँव ना होने से जिंदगी बदतर नहीं होती
चलने की काबिलियत सिरफ पाँव पर निर्भर नही होती

तू दो टांगों पर भी सीधा चल नहीं सकता
जैसा इक दिया जो कभी चल नही सकता

सुनकर शराबी का गुमान पल मे बिखर गया
शराब का सरा नशा इक ही पल मे उतर गया

उस दिन उसने इक बात जान ली
उसके दिल ने भी उसकी बात मान ली

कुछ ज़िंदगियाँ सच मे ईश्वर की सच्ची मूरत होती हैं
जिंदगी की दौड़ को पाँवों की नही हौसलों की जरूरत होती है
हौसलों  की जरूरत होती है................
_____________________________________________________

आदरणीया श्रीमती लता आर ओझा

बैसाखी ने भी अजब जमाया रंग ,

जिसने देखा खेल ये वोही रह गया दंग..

.

वोही रह गया दंग की जिसने जोश ये जाना ,

अच्छे अच्छों ने भी इनका लोहा माना. 

.

बैसाखी की टेक भी नहीं किसी से कम ,

हरा सके इनको कोई नहीं किसी में दम ..

.

नहीं किसी पे आश्रित ,ये इतने सक्षम 

आसमां इनकी उड़ान के आगे पड़ता कम ..

__________________________________________________

 

आदरणीय श्री मुकेश कुमार सक्सेना

 

देख लो मन में भरी उमंग.
देख लो जीने का भी ढंग.
की जैसे उड़ती हुई पतंग.
नस नस में उठती नयी तरंग.
फिर ही कहते हो हमे अपंग.
कभी देखा है ऐसा रंग.
कभी पाया है ऐसा संग.
कभी है मन में बजी मृदंग
कही क्या खा आए हो भंग.
कहो फिर कैसे कहा अपंग.
माना है हम शरीर से तंग.
मगर हैं दिल से बड़े दबंग.
भरा है मन में जोश उचंग
लो पहले खेल हमारे संग.
हार जाओ तो कहो तड़ंग.
जीत पाओ तो कहोअपंग.
भले ही घुमओ नंग धड़ंग.
मगर ना हमको कहो अपंग.

_________________________________________________________

_______________________

Views: 2759

Reply to This

Replies to This Discussion

आयोजन की रचनाएँ नव शिल्प विधान - नव छंद गढ़न -  नव शब्द चयन में ओ बी ओ सदस्यों की दक्षता की  द्योतक हैं ! विशेषकर नवागंतुक रचनाकारों की सक्रियता प्रशंसनीय है | आप सहित सभी साथियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !!

आदरणीय अम्बरीष भाई जी, इस बार के आयोजन में मैं भाग नहीं ले पाया इसका अत्यंत ही अफ़सोस है. लेकिन लम्बे समय के लिये दौरे पर होना और उस पर से हेक्टिक श्केड्युल ! इसी बीच हिसार प्रवास के दौरान तीन दिनों के लिये डाटाकार्ड का काम न करना भी मुझ हेतु नेट से दूर होने का कारण बन गया.  सो, चाह कर भी आयोजन में शिरकत नहीं कर पाया.  लेकिन एक बात साझा करूँ,  पटियाला प्रवास के दौरान आदरणीय योगराजभाईजी के साथ आयोजन के पन्ने-दर-पन्ने समवेत पढ़ना अपने आप में सुखद ही नहीं अद्वितीय अनुभव रहा.  हम रचना-दर-रचना और प्रतिक्रिया-दर-प्रतिक्रिया पढ़ते गये और प्रविष्टियों के स्तर और उठान से मुग्ध होते गये. आपकी आशु रचनाएँ कमाल रही हैं.

तकनीकी रूप से संकलन कार्य इतना आसान नहीं होता.  आपकी संलग्नता और संचालन कार्य पर सादर बधाइयाँ.

आदरणीय अम्बरीश भाई जी, सभी रचनायों को एक साथ संकलित करके बहुत ही महती कार्य किया है. आदरणीय सौरभ पाण्डे जी एवं भाई गणेश बागी जी की तरह मैं भी पूरी तरह इस आयोजन में शिरकत नहीं कर पाया, जिसका मुझे बेहद अफ़सोस है. लेकिन सभी रचनायों को एक साथ पढ़ कर उस क्षति की काफी हद तक पूर्ति हो गई है. इस संकलन के लिए आपको हार्दिक साधुवाद.    

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई सर"
12 hours ago
Admin posted discussions
15 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
yesterday
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
yesterday
AMAN SINHA posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
Wednesday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service