For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भारत के राजनैतिक प्रपंच में चुनाव की आहट ढेर सारे शगूफों और पाखण्डों को जन्म दे देती है। जैसे जैसे लोकसमा चुनाव करीब आते जाएंगे भारतीय लोकतंत्र के छद्म रखवाले झक सफेद चादर ओढ़े नित नए नए ढोंग गढ़ते नजर आएंगे। पिछले लगभग एक साल से जो कुछ घटनाक्रम राजनैतिक परिदृश्य पर चल रहा है वह बस इस नाटक की बानगी भर है। लोकपाल से लेकर घोटालों तक की आंधियां झेल चुके भारतीय लोकतंत्र के मूक दर्शक के लिए कुछ भी नया नहीं है। वह यह तमाशे लगातार देखता ही रहा है और अपने छले जाने का अहसास लिए बस इस थाती को जिंदा रखने भर के लिए चुप है।

इस देश की आम जनता जानती है कि यह लोकतंत्र सिर्फ नाम का लोकतंत्र है। वास्तविकता में इस तंत्र का लोक कब का हाशिए पर पड़ा आहें भर रहा है और वंशवाद और बाजारवाद की संस्कृति अब फल फूलकर अमरबेल की तरह इस देश की व्यवस्था के वृक्ष को चट कर जाने को आतुर है। जिस तरह से बाजारवाद का मिथक फैलाकर घरेलू उद्योगों और कलाओं को ध्वस्त किया गया, उसी तरह अब वंशवाद की बेल इस तंत्र को पूरी तरह अपनी जकड़न में लेकर इसका गला मरोड़ने को आतुर है।

राहुल को युवराज स्वीकार कर चुके लोकतंत्र के नकाबपोश रक्षकों को आजकल मोदी का भय सता रहा है और दंगों की कालिख से घिरे नरेन्द्र मोदी अपनी सफलताओं की सुंदर पैकेजिंग के साथ किसी डीठ की तरह मुस्कुराते खड़े हैं। बिहार में अपनी नाकामियों से दिग्भ्रमित नितीश कुमार का चिल्ला चिल्लाकर गला दर्द करने लगा। उनकी तरह तमाम नेता अपनी बेचारगी में मोदी के खौफ से ग्रस्त हैं और समझ नहीं पा रहे कि इस बाढ़ को कैसे रोका जाए। उन्हें एक डर सता रहा है कि कहीं ये बाढ़ आगे चलकर सुरसा की तरह उन्हें ही निगल न जाए।

भारतीय जनता पार्टी में भी विरोध मुखर है। सबके अपने अपने निहितार्थ हैं। उससे करना क्या? राजनीति में स्वार्थ और लोभ की थाती ही चलती है। उसके चलते किसी का भी विरोध जायज है। सबसे मजेदार बात यह कि भारतीय लोकतंत्र के दंगल में कसरत कर रही किसी भी पार्टी में अंदरूनी लोकतंत्र मौजूद नहीं। बस कण्डे थोपकर ही काम चल रहा है सभी चूल्हों का।

अब कांग्रेस को ही लें। यहां तो जीवन ही एक वंश की सांसों पर चल रहा है। कितनी रूचिकर स्थिति है कि एक की सांस पर कितने जीवित हैं। वंशवाद और दरबारवाद की जो विष बेल कांग्रेस ने बोई है वह अब इस देश के साथ खुद कांग्रेस को निगल जाने को तैयार है। किसी गरीब के घर रात बिताने और हाथ मिलाने की राजनीति करने वाले राहुल मुस्कुराहट का चोंगा पहने एक रेसकोर्स के दर्शक भर लगते हैं। अब घोड़े की नकेल उनके हाथ में दे दी गयी है। देखना रूचिकर होगा कि वे कितना उछलते हैं और कितनी बार गिरते हैं। 

ऐसे में 2014 की धींगा कुश्ती कम मजेदार नहीं होने वाली। मोदी और राहुल के द्वंद की खींची जा रही लकीरें क्या रूप लेती हैं यह तो देखने वाली बात होगी लेकिन इतना तय है कि इन सबसे भारतीय लोकतंत्र और इस देश के आम जन का कोई भला नहीं होने वाला। महंगाई की मार और गैस, डीजल के दामों के नीचे दबा कराह रहा आम जन कहीं दम न तोड़ दे, ईश्वर से यही प्रार्थना करनी होगी। वरना उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं।

                     - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 2594

Reply to This

Replies to This Discussion

भारत भाग्य विधाता सारे भारत में ...... उगते हैं 
मोदी है अडवानी है तोगडिया है ............ बढ़िया है 

और अभी नीतीश शरद और लालू,..... बिहारिया है!... ये भी .... बढ़िया है!

लौह पुरुष की प्रतिमा लोहे की हो 

और उसमे लगे कुदाल खुरपी हंसिया हो ... ये भी कल्पना ...क्या बढ़िया है!

सादर !

हाहाहा....सुन्दर!

हाहाहा....
वीनस भाई, सच बात, वह भी इतने सुन्दर शब्दों में।

आपकी बात एकदम सही है ब्रृजेश जी , सच ही है अब तो ईश्वर ही आम आदमी का कुछ भला कर सकता  है .

आदरणीया अन्नपूर्णा जी अनुमोदन हेतु आपका हार्दिक आभार!

आदरणीय बृजेश जी अब क्या कहा जाए राज नीति के बारे में।। यहाँ जिस के हाथ में सत्ता आती है वही भ्रष्ट हो जाता है .....
इस लिए तो महा कवि तुलसी दास जी कहते हैं ...
"अस को जन्मा यहि जग माही । प्रभुता पाइ जाहि मद नाही । । "
भ्रष्ट तो देखा जाए तो हर कोई है हाँ ये कहो सबको मौका नही मिलता भ्रष्टाचार का ....और जो भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी बड़ी
बातें करते रहते हैं अगर उन्हें भी मौका मिल जाए तो वो भी भ्रष्टाचारी हो जाएँ ...सरकारी दफ्तरों में मैंने देखा है वहाँ बाबू
लोग जो पैसे लिए बिना कोई काम नही करते ...वो उसको भ्रष्टाचार मानते ही नही ..वो तो कहते हैं हमने मुफ्त में पैसे थोड़े ही
लिए हैं ..हमने तो आपका काम किया है ...अब ऐसी तो मानसिकता है ...इसलिए मै तो कहूँगा हमे इसकी जड़ तलाश करनी
चाहिए पत्तियों और डालों को काट भी दिया तो क्या होगा ...भ्रष्टाचार हमारी मानसिकता में है और वही से काम शुरू करना
पड़ेगा ...और इसका सबसे ज्यादा जिम्मा माता पिता और शिक्षकों पर रहेगा ....हमने बच्चों को प्रतियोगी होना सिखाया
हमने सिखाया आगे निकलो ..जगह न मिले तो दूसरों को धक्का दे दो ...काश हम सिखाएं बच्चों को प्रेम .....दूसरों को अपनी
जगह दे देना काश हम नयी पीढ़ी को प्रतियोगिता के बजाय प्रेम सिखा पायें .....तो आने वाले समय को हम सुन्दर और
स्वर्णिम बना सकते हैं ....सिर्फ प्रेम में ही नही होती है राजनीति ... प्रेम तो देना जानता है और राजनीति छीन ना ....
बस यही समाप्त करता हूँ बात ....
प्रणाम ।

आदरणीय नीरज जी,
वैसे मैंने यह लेख भ्रष्टाचार को आधार बनाकर नहीं लिखा था। मेरा उद्देश्य लोकतांत्रिक व्यवस्था पर चर्चा करना था। आपने जो बिन्दु उठाए हैं वह सही हैं। बच्चों को प्रेम सिखाना ही होगा। रही बात प्रतियोगिता की तो यह तो प्रकृति का नियम है। सारी सृष्टि के विकास की अंतर्कथा ही प्रतियोगिता पर है। लैमार्कवाद और डार्विनवाद उसी प्रतियोगिता के तो सिद्धान्त हैं। तो, हमें प्रतियोगी तो बनना ही होगा परन्तु इंसानियत के साथ।
सादर!

प्रश्न: ओशो, इस देश के राजनेता देश को कहां लिए जा रहे हैं? समाजवाद का क्या हुआ?

भोलेराम! भोले ही रहे। राजनेताओं से, और अपेक्षा। और आश्वासनों पर भरोसा! मगर तुम ही भोले नहीं हो, सारी जनता भोली है। इस देश में तो भोलेराम, भोलेराम ही हैं। इसीलिए तो आयाराम-गयाराम उनको धोखा देते रहते हैं। तुम किसी के भी आश्वासनों पर भरोसा कर लेते हो।

यह देश सरल है। लोग सीधे-सादे हैं। राजनेता कुटिल हैं। राजनेता लोगों को उलझाए रखते हैं। बड़े-बड़े भरोसे, बड़े-बड़े नारे और लोग नारों और शब्दों के प्रभाव में आ जाते हैं। इस देश को थोड़ा सीखना पड़ेगा, इस देश को थोड़ा राजनीतिक चालबाजियों के प्रति सजग होना पड़ेगा। नहीं तो इस देश का भाग्योदय होनेवाला नहीं है।

तीस साल से ऊपर हो चुके देश को आजाद हुए, बस कोल्हू की तरह हम चक्कर लगा रहे हैं। देश की तकलीफें रोज बढ़ती ही चली गयी हैं, कम नहीं हुई हैं। और देश की तकलीफें रोज बढ़ती जा रही हैं। राजनेता को देश की तकलीफों से चिंता भी नहीं उसकी अपनी तकलीफें हैं। वह अपनी फिक्र करे कि तुम्हारी? जब तक वह पद पर नहीं होता तब तक उसकी फिक्र है कि पद पर कैसे हो? सो तुम जो भी कहो वह आश्वासन देता है। वह बात ही तुम्हारी तोड़ नहीं सकता। तुम जो कहो वह हां भरता है। उसे ‘मत’ चाहिए। जब तक वह सत्ता में नहीं पहुंचता तब तक उसकी चिंता एक है कि सत्ता में कैसे पहुंचे? और जब वह सत्ता में पहुंचता तब दूसरी चिंता, और बड़ी चिंता पैदा होती है कि अब सत्ता में बना कैसे रहे? क्योंकि चारों तरफ उसकी टांगे लोग खींच रहे हैं; कोई हाथ खींच रहा है, कोई कुर्सी का एक पैर ही ले भागा। कुर्सी को कैसे जोर से पकड़े रहे; क्योंकि कोई अकेला ही नहीं है, और भी बहुत हैं जो जद्दोजहद कर रहे हैं। धक्कम-धुक्की कुर्सियों पर इतनी ज्यादा है कि किस तरह राजनेता थोड़े दिन भी कुर्सियों पर बने रहते हैं, यह आश्चर्य की बात है।

एक ही तरकीब जानता है राजनेता कुर्सी पर बने रहने की, कि जो उसकी कुर्सी को छीनना चाह रहे हैं, उनको लड़ाता रहे। वे आपस में लड़ते रहें, उतनी देर वह कुर्सी पर बैठा रहता है। वे अगर आपस में लड़ना बंद कर दें, उसकी मुसीबत हुई। जब तक पद पर नहीं है, कैसे पद पर पहुंचे? और पहुंचना कोई आसान नहीं है; बड़ा संघर्ष है, बड़ी प्रतियोगिता है। और पद पर पहुंचते समय तुम जो कहो वह कहता है, हां; तुम्हें ना तो कह ही नहीं सकता। ना कर के क्या नाराज करेगा? उसकी भाषा में ना होता ही नहीं जब तक पद पर नहीं पहुंचता। और जब पद पर पहुंच जाता है तब उसकी मुसीबतें हैं--पद पर कैसे बना रहे? और फिर तुम उसे याद दिलाओ अपने आश्वासनों की, उसने न तो कभी सुने थे। उसने तो हां भर दी थी, तुमने क्या कहा था इसकी चिंता ही नहीं की थी। अब तुम उसे याद दिलाओ अपने आश्वासनों की, उसे याद ही नहीं आएगा। उसे तुम्हारा चेहरा भी याद नहीं आएगा। तुमसे उसे लेना-देना क्या है? जो लेना था, तुम्हारा वोट, तुम्हारा मत, वह तो ले चुका, बात खत्म हो गयी। तुमसे उतना नाता था। पांच साल के लिए अब वह सत्ता में है और तुम कुछ भी नहीं हो। पांच साल के बाद फिर तुम्हारे द्वार आएगा और वह जानता है कि तुम भोलेराम हो।

पांच साल के बाद फिर तुम्हारे आश्वासनों को, नारों को फिर पुनरुज्जीवित करेगा। फिर ऊंची बातें करेगा। फिर भविष्य के सपने तुम्हें दिखाएगा। फिर रामराज्य लाने का आश्वासन देगा। और मजा तो ऐसा है कि फिर तुम धोखा खाओगे। सदियों-सदियों से आदमी ऐसा धोखा खा रहा है।

मनौवैज्ञानिक कहते है: मनुष्य की स्मृति बहुत कमजोर है। पांच साल में भूल-भाल जाता है। और अगर बहुत याद भी रखा तो हर देश में दो पार्टियां हो जाती हैं। वे सब चचेरे-मौसरे भाई उनमें कुछ भेद नहीं। वे सब एक ही थैली के चट्टे-पट्टे हैं। मगर दो पार्टियां हो जाती हैं। दो पार्टियां जनता पर राज करने की कला है, तरकीब है। पांच साल में एक पार्टी की प्रतिष्ठा गिर जाती है। जो भी सत्ता में होगा उसकी प्रतिष्ठा गिरेगी; क्योंकि वचन पूरे नहीं होंगे, लोगों की तकलीफ बढ़ती रहेगी, उसकी प्रतिष्ठा गिर जाएगी। लेकिन पांच साल में दूसरे जो सत्ता में नहीं हैं वे अपनी प्रतिष्ठा बढ़ा लेंगे; क्योंकि पांच साल पहले उन्होंने जो किया था वह तो जनता भूल-भाल चुकी। पांच साल बाद जनता बदल देगी, एक पार्टी को हटाकर दूसरे को बिठा देगी।

तुम सोचते हो ये पार्टियां दुश्मन हैं तो तुम गलती में हो। ये पार्टियां दोस्त हैं, ये एक-दूसरे के सहारे राज्य करते हैं। एक राज्य करता है, तब तक दूसरा जनता में प्रतिष्ठा कमाता है। फिर दूसरा राज्य करता है, फिर पहला जनता में प्रतिष्ठा कमाता है। इन दोनों में ज़रा भी भेद नहीं है। ये एक ही सौदे में, एक ही धंधें में साझीदार हैं।

भोलेराम, तुम भी क्या पूछते हो--इस देश के राजनेता देश को कहां लिए जा रहें हैं? कहीं नहीं लिए जा रहे हैं, यहीं, यहीं घुमा रहे हैं। उनको फुर्सत भी कहां इस देश को कहीं ले जाने की!

उत्तर दो आखिर कब तक तुम अपने ही वचनों से फिर कर
लोकतंत्र की पुनः प्रतिष्ठा का यों जय-जयकार करोगे।

कौन उलट चश्मा पहने जो दिखती नहीं तुम्हें बदहाली
नव-निर्माण नजर आती है चौतरफा फैली पामाली।
खुले मंच से केवल भाषण नारों का व्यापार करोगे।

कानों की लौ तक को क्यों छू पाती नहीं करुण चीत्कारें
प्रतिध्वनियां बन लौट-लौट आती हैं सब की सब मनुहारें।
जनजीवन का बस आकर्षण वादों से सत्कार करोगे।
क्या होगी खामोशी न कुर्सी, पद, सत्ता की घृणित लड़ाई

मानव को बौना कर बढ़ती जाएगी यों ही परछाई
देश व्यथा पर अखबारों में झूठा हाहाकार करोगे!

भोलेराम! अब अपने नेताओं से कहो: कब तक यह बकवास? अब जब तुम्हारे द्वार पर कोई ‘मत’ मांगने आए तो आसानी से हां मत भर देना। बहुत हो चुका। अब पूछना उससे कि यह कब तक चलेगा?

लोक-मानस थोड़ा सजग होना चाहिए। लोक-मानस थोड़ा जागरूक होना चाहिए। और यह मत सोचना कि एक से तुम थक गए तो दूसरे को पकड़ लोगे तो हल हो जाएगा। कुछ हल होने वाला नहीं।

-गुरु परताप साध की संगति, Osho

सच बात है!

आदरणीय बृजेश जी:

 

राजनीति के बारे में आपके विचारों से मैं सहमत हूँ।  राष्ट्र स्तर पर वही हो रहा है जो

प्रदेशों के स्तर पर हो रहा है। कोई भी मानो exception नहीं है। अगले चुनाव पर भरोसा लिए...

 

सादर,

विजय निकोर

आदरणीय विजय जी अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार!

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
16 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
16 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
21 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
23 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service