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दादा दादी ही संस्कार की नींव को दुरुस्त करते हैं. अच्छी प्रस्तुति!
धन्यवाद ,आदरणीय जवाहर लाल जी .
आदरणीया रीता गुप्ता जी सकारात्मक सन्देश के साथ सयुंक्त परिवार की अवधारणा को पुष्ट करती इस बेहतरीन लघुकथा की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश जी ,आपके मुख से "बेहतरीन लघुकथा " ने मेरे हौसले को बल दिया है .
आदरणीया रीता जी मेरे कहे के अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार.
बहुत बहुत आभार कांता जी ,आपने कथा के मर्म को समझा और सटीक विश्लेषण किया .
सही कहा रीता गुप्ता जी, बुज़ुर्गों की छत्र छाया में भविष्य की बुनियाद मज़बूत ही हुआ करती है , लघुकथा अपना सन्देश देने और प्रदत्त विषय को परिभाषित करने में सफल है I हार्दिक बधाई स्वीकारें I
धन्यवाद आदरणीय योगराज जी , यदि आपके अनुसार रचना प्रदत्त विषय को परिभाषित करने में सफल रही है तो ये मेरे लिए हर्ष की बात है .इस मंच पर पोस्ट करने के बाद भी लगता है कि शायद और बढ़िया रचना चाहिए .इसी फेरे में एक ही विषय पर मैं कई कथाएं लिख देती हूँ .
धन्य है आपकी उर्वरा कलम आ० रीता गुप्ता जी, मैं तो एक महीने से सोच रहा हूँ आजतक कुछ नहीं सूझा I
आदरणीय सर जी आभार .पर बात वही है "सौ सुनार की एक लुहार की " quantity नहीं quality होनी चाहिए लेखन में .आपकी रचना का इन्तेजार है .
घर में बुजुर्गों की उपस्थिति घर की नींव मजबूत करने के लिए बहुत ज़रूरी है। सुन्दर सकारात्मक संदेश देती लघुकथा आ. रीता गुप्ता जी।
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