For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 
पिछले 43 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-44

विषय - "समाज और बेटियाँ " 

आयोजन की अवधि-   13 जून 2014, शुक्रवार से 14 जून 2014, शनिवार की समाप्ति तक  

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)


तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दिए हुए विषय को दे डालें एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति. बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए.आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक ही दे सकेंगे, ध्यान रहे प्रति दिन एक, न कि एक ही दिन में दो. 
  •  रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.


सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो  13 जून 2014 दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तोwww.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालिका 
डॉo प्राची सिंह 
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 12784

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

सारा कथासार है इन तीन पंक्तियों में......बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है.सौरभ जी,  हार्दिक बधाई.सादर.

आदरणीया कुन्तीजी,  अभी-अभी मेरी आदरणीय शरदिन्दुजी से बातें हो रही थीं ! इधर आप मेरी रचना पर समय दे रही थीं.

रचना आप जैसी अत्यंत भावुक और संवेदनशील रचनाकार को प्रभावित कर पायी यह इस रचना का भी सौभाग्य है.

सादर धन्यवाद.आपने तीन पंक्तियों की बात की है, कौन सी तीन पंक्तियाँ आदरणीया ?

कांटे तो गुलाब में भी होते हैं ,
काँटों के बिना गुलाब कहाँ होते हैं ,
गर कांटे खुद गुलाब के , छोड़ ,
दूसरों को , चुभने लगे खुद गुलाब को
तो कुदरत की नीयत पर ही
शक जायेगा , शक गहराएगा
गुलाब ऐसे कैसे रह पायेगा ,
कहाँ रह पायेगा ,कैसे रह पायेगा ,
कब तक रह पायेगा ?
जब पहरे दार ही
चुभन बन जाएगा
चुभन बन जाएगा
.
.
.
इस समाज को क्या कोई जगायेगा
कोई, कैसे जगायेगा ?
सोते को तो जगाया जाता है पर
जो जाग रहा है खुद ,
चुभन झेल रहा है खुद ,
उसे तो खुद ही जागना होगा
सोने के भ्रम से निकलना होगा
पहरेदार बनना होगा
पहरे पर बैठना होगा
होश में आना होगा
होश में आना होगा .
आदरणीय सौरभ जी ,
बहुत अच्छी पंक्तियों के लिए बहुत बहुत बधाई .

मेरी किसी कोशिश ने आपको प्रभावित किया यह मेरे लिए भी अत्यंत संतोष का कारण है आदरणीय विजय शंकरजी.

सादर धन्यवाद.

आदरणीय सौरभ जी ,
क्या कहूँ , कैसे कहूँ ? आपकी इस रचना या ऐसे ही लिखी किसी रचना की तारीफ करूँ तो कैसे करूँ ? इस दर्द को , जो वर्णित है उसे किन शब्दों में अच्छा कहूँ , बस मैं स्वीकार करूँ , लोग स्वीकार करें , बहुत बहुत लोग स्वीकार करें , जागें , चेते आपकी रचना को सम्मान दें , साकार करे . एक कवि या लेखक का यही वास्तविक सम्मान होता है। आपको यह सम्मान मिले , जरूर मिले।
सादर।

सादर धन्यवाद आदरणीय विजय शंकरजी.

वो
सबकुछ जानता-बूझता भी
तुम्हें खुल के कुछ भी नहीं बता पाया.. कुछ भी नहीं... . .. .

बाप है न वो.. !.....ये अंतिम बंद खासकर ...... 'बाप है न वो' ......यह बहुत ही गहराई तक अंतर्रात्मा को छूने वाले शब्द हैं. बहुत लोग यह समझते हैं कि एक पिता एक बेटी के दर्द को नहीं समझता....जिस प्रकार सब उँगलियाँ एक से नहीं होते उसी प्रकार सब पिता एक समान नहीं होते. जनक और पिता में बड़ा अंतर होता है....यह सच है जब आप उनसे (मेरे स्वामी) से बातें कर रहे थे तब मैं आपकी रचना बड़ी ध्यान पूर्वक पढ़ रही थी..... एक एक शब्द में कितनी सच्चाई और दर्द छुपा हुआ है....... ऐसी तमाम बातें होती है जो एक पिता चाहकर भी अपनी बेटी से नहीं कह पाता है........ऐसे न जाने कितने अधम लोग है जो पिता-पुत्री के रिश्ते को कलंकित किये हुए है.......

सादर

आदरणीया कुन्तीजी, आपकी भावनाप्रधान बातें सीधे हृदय तक आती हैं. आपने जिस आत्मीयता से अभिव्यक्ति को समझने का प्रयास किया है, वह किसी रचनाकार को अभिभूत कर सकता है.
आपने रचना के मूल विन्दुओं को साझा कर रचना की संप्रेषणीयता को मान दिया है. सादर आभार.

नमस्कार आदरणीय सौरभ सर , एक पिता के बेटी के लिए अनगिन भावों को उसके  छोटे से बड़े होने तक का सफ़र और उसके हर कदम  से उपजी संवेदनाओं की गठरी को बहुत ही सुंदर से खोला .. हार्दिक बधाईयाँ स्वीकार करें सादर

अरे वाह ! महिमा श्री अरसे बाद आयी ! .. :-))
अच्छा लगा कि आप आयोजन में दिखी, भले ही बीच-बीच में कार्याधिकता की वज़ह से आप गायब हो जाती हो, लेकिन आना बना रहे, न !

प्रस्तुत रचना में मात्र-पिता पुत्री के विशिष्ट सम्बन्ध पर ही चर्चा नहीं हुई है बल्कि इस सम्बन्ध के परिप्रेक्ष्य में समाज की विसंगतियों पर दृष्टि डालने की कोशिश हुई है. इस नज़रिये से इस रचना को देखो तो, संभव है, कुछ और आयाम विस्तार पाते दिखें.
पुनः, मंच पर उपस्थिति बनाते रहना अच्छी आदत है, इस आदत को बनाये रखो. सर्वोपरि आयोजन के इस विषय पर आपसे रचना अपेक्षित है.
शुभ-शुभ

जी आदरणीय मैंने भी यही कहना चाहा की बेटियों के लिए पिता समाज में फैले विसंगतियों से उदिग्न होकर कैसे कैसे भावों से गुजरता है .पर शायद मैंने बहुत स्पष्ट होकर टिपण्णी नहीं की सादर

लेकिन अब तो पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है जो आप कहना चाह रही हो..   :-))

और यह मेरी रचना को मिला अनुमोदन ही है. सो, पुनः धन्यवाद. कह रहा हूँ.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
12 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
22 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
31 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
44 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service