आदरणीय साथिओ,
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सर्वप्रथम गोष्ठी का श्रीगणेश करने हेतु आपको मुबारक । लघुकथा की शुरूआत का संवाद है- " मॉम ,क्या मैं अपना निर्णय खुद नहीं ले सकती । पोस्ट ग्रेज्युएट हूँ , बालिग हूँ ।" इस पर ग़ौर फरमाएं समीक्षा पोस्ट ग्रेज्युएट है तो ज़ाहिर है कि वो बालिग होगी तो यहां पर बालिग हूं बिल्कुल अनावश्यक है। लघुकथा सरीखी कोमलांगी विधा में अनावश्यकता की कोई जगह नहीं है। कहा जाता है कि 'ब्यूटी इज़ रिमूवल ऑफ़ एक्सैस' । आगे चलकर संवाद है - समीक्षा-"क्यों नहीं ।" यहां पर यह एकांगी जैसे लिखा संवाद बिल्कुल भी उचित नहीं लग रहा। लघुकथा का कथानक व संदेश बढ़ीया है जिस हेतु हार्दिक शुभकामनाएं । सादर
अच्छा निर्णय लिया समीक्षा नें। इस हेतु समीक्षा और साथ-साथ लेखक को भी बधाई
बहुत सुंदर, मानवीय, पारिवारिक मूल्यों को सहेजती प्रेरक कथा।बधाई
आदरणीय आरिफ जी, एक प्रेरक लघुकथा जिसमें संवेदनात्मक, सामजिक सन्देश भी हो, के लिए हार्दिक बधाई!
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