परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 156 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |
इस बार का मिसरा परवीन शाकिर साहिब: की ग़ज़ल से लिया गया है |
"उसने मगर बिछड़ते वक़्त और सवाल कर दिया'
मुफ़तइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़तइलुन मुफ़ाइलुन
2112 1212 2112 1212
बह्र-ए-रजज़ मुसम्मन मतव्वी मख़्बून
नोट:-इस बह्र के दूसरे और चौथे रुक्न में एक साकिन(यानी अतिरिक्त लघु) लेने की इजाज़त है ।
रदीफ़ : कर दिया
काफिया : आल की तुक कमाल,मुहाल,निढाल,हाल,हलाल,बहाल आदि...
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 23 जून दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 24 जून दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
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मंच संचालक
जनाब समर कबीर
(वरिष्ठ सदस्य)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय निलेश जी, हौसला अफ़ज़ाई और बहुमूल्य राय के लिये बहुत धन्यवाद। 3 के बारे में आप से सहमत हूँ। लगता है मुझसे बेख़याली में भूल हो गई है। 4, 5, 6 से तक़ाबुल हटाने की कोशिश की थी लेकिन बेहतर विकल्प नहीं हो पाया।
आदरणीय Sanjay Shukla जी आदाब,
अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।
मतला ख़ूब हुआ और छटा शेर काफ़ी पसंद आया।
वो ही नगर वही सफ़र सब है वही रहा मगर
हम ने मुग़लसराय को दीनदयाल कर दिया /2
//सब है वही रहा मगर//
उला का यह हिस्सा थोड़ा अटपटा लगा।
// सादर//
आदरणीय अमित जी, हौसला अफ़ज़ाई और बहुमूल्य राय के लिये बहुत धन्यवाद। 2 ऊला सुधारने की कोशिश करूँगा।
आदरणीय संजय जी नमस्कार
बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार कीजिए
गिरह भी ख़ूब, दूसरे पे अमित जी से सहमत
सादर
आदरणीया ऋचा जी, हौसला अफ़ज़ाई और बहुमूल्य राय के लिये बहुत धन्यवाद।
सादर नमन आदरणीय संजय जी। दूसरा शे'र अच्छा लगा। ग़ज़ल हेतु बधाई।
आदरणीय दिनेश जी हौसला अफ़ज़ाई और बहुमूल्य राय का बहुत शुक्रिया।
2112 1212 // 2112 1212
हमने तो इंतज़ार में आधा ये साल कर दिया
यादों ने तेरी अब मेरा जीना मुहाल कर दिया 1
सबके सवाल का हमें देना जवाब था मगर
हमने जो बात की ज़रा सबने वबाल कर दिया 2
रोते रहे तमाम रात चाँद सितारे और हम
देखा जो चाँदनी ने तो बोला कमाल कर दिया 3
खा के कसम हैं कह रहे करते नहीं किसी से हम
कर ली जो बात आपसे इतना ख़याल कर दिया 4
खाते रहे हैं ठोकरें पीते रहे हैं ग़म सनम
आरज़ू-ए-विसाल ने कैसा ये हाल कर दिया 5
कब से तरस रहे थे हम नज़र-ए-करम को दोस्तो
उनकी नज़र जो पड़ गई ख़त्म मलाल कर दिया 6
बरसों में फिर मिला है वो जिसका "रिया" था इंतज़ार
शिक़वा गिला नहीं किया रिश्ता बहाल कर दिया 7
गिरह-
सोचा था रुख़सती के वक़्त मिल के गले वो जाएगा
"उसने मगर बिछड़ते वक़्त और सवाल कर दिया"
"मौलिक व अप्रकाशित"
आ. ऋचा जी ..
.
हमने तो इंतज़ार में आधा ये साल कर दिया
यादों ने तेरी अब मेरा जीना मुहाल कर दिया 1... शुतुरगुरबा हो रहा है ऊला में हम और सानी में मेरा के चलते
.
खा के कसम हैं कह रहे करते नहीं किसी से हम
कर ली जो बात आपसे इतना ख़याल कर दिया 4 इसे और बेहतर तरीके से कहा जा सकता है
.
मिसरे मुहावरों से इतर हों तो ख़लल होता है
उनकी नज़र जो पड़ गई ख़त्म मलाल कर दिया... यहाँ मिसरा ख़त्म मलाल हो गया कह रहा है
उनकी नज़र ने मिलते ही ख़त्म मलाल कर दिया ...जैसा कुछ किया जा सकता है .. वैसे ख़त्म और मलाल में म की तक़रार है जो स्वीकार्य दोष की श्रेणी में आता है
.
ग़ज़ल के लिए बधाई ... अब आपको बारीक़ियों पर काम शुरुअ करना चाहिए
सादर
.
आदरणीय नीलेश जी नमस्कार
बहुत बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए और
बारीकियाँ समझाने के लिए पूरी कोशिश करुँगी बेहतरी के लिए, कुछ बदलाव किए आपके कहे अनुसार कृपया देखियेगा
4th शेर कुछ बदला है--
2112 1212 // 2112 1212
तेरे ही इंतज़ार में आधा ये साल कर दिया
यादों ने तेरी अब मेरा जीना मुहाल कर दिया 1
कब से तरस रहे थे हम नज़र-ए-करम को दोस्तो
उनकी नज़र ने ख़त्म सब दिल का मलाल कर दिया 6
होते नहीं वो मेहबाँ यूँ ही किसी पे दोस्तो
ज़ुल्फ़ों से अपनी फूल एक उसको निकाल कर दिया 4
आ. ऋचा जी.
कब से तरस रहे थे हम नज़र-ए-करम को दोस्तो
उनकी नज़र ने ख़त्म सब दिल का मलाल कर दिया 6 ... ये तो बेहतर हो गया
.
यूँ ही किसी पे मेहरबा होते नहीं हैं हम तो फिर
ज़ुल्फ़ से अपनी फूल यूँ उनको निकाल कर दिया... ऐसा कुछ
सादर
संज्ञान लेने के लिए बहुत धन्यवाद आदरणीय
जी बहतर है,,बहुत शुक्रिया आपका
सादर
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