आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीय जानकी जी बेहतरीन तरीके से कथा प्रस्तुत की है आपने बधाई। मेरे बिचार से प्रतीक गल्त चुना है आपने,ज्ञान कायर? ज्ञान प्रप्रकाश ही फैलाया चाहे गहन अंधकार हो या गूंगे तमाशबीन ।कृत्य ज्ञान के मंदिर में हुआ ,पर ज्ञान दोषी नहीं,दोषी की पहचान की जानी चाहिये।सादर।
हार्दिक बधाई आदरणीय जानकी वाही जी!बेहतरीन शैली और लेखन शिल्प से सज्जित सुंदर प्रस्तुति!
“तमाशबीन”
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“त्राहिमाम त्राहिमाम गजराज जी, आस पास का सब पानी सूख गया है नदी कितनी दूर है कमजोर वर्ग वहाँ तक कैसे जायेंगे कुछ कीजिये महाराज, कितनी बार कहने पर भी सिंह राज के कान पर जूँ तक नहीं रेंगी क्यूंकि उनके खुद के ताल में तो बहुत सा पानी है जहाँ हमे पीने की इजाज़त नहीं हमारे लिए कुछ कीजिये”
जंगली जानवरों की सभा में मुखिया गजराज के सम्मुख कुछ जानवरों ने गिडगिडाते हुए कहा| गजराज जी सोच में सिर खुजलाने लगे कि इसका कैसे निवारण हो सिंह राज का ध्यान इस समस्या की ओर कैसे आकर्षित किया जाए|
“आप सब में से कौन इस समस्या के निवारण की युक्ति सुझाएगा”? गजराज ने पूछा |
तभी दूर खड़ा वानर पास आकर बोला “महाराज क्यूंकि मैं ही इंसानों को सबसे नजदीक से देखता हूँ तो मैं ही बता सकता हूँ कि वो अपनी आवाज़ सरकार के कानों तक कैसे पँहुचाते हैं हमे भी कुछ वैसा ही करना चाहिए”
फिर वो गज़राज के कान में कुछ देर तक फुसफुसाता रहा | गजराज को युक्ति समझ आई तो उसकी आँखों में चमक आ गई|
वो बोले “हमे अभी जतन करना होगा आप सब में से कुछ को ड्यूटी दी जायेगी उसका पालन करना होगा”
सब ने हामी में सिर हिला दिया|
सबसे पहले भालू को बोला गया कि पूरे जंगल से कुछ घास फूंस इकठ्ठा कर सिंह राज का पुतला बना कर लाए |
भेड़िये को घासलेट लाने को कहा गया | फिर लोमड़ी को एक कबूतर को फुसला कर लाने को कहा गया| क्यूँ पूछने पर जो गज़राज ने जो उत्तर दिया उससे उसके रोंगटे खड़े हो गए | “कल की आत्मदाह की हेडलाइन बनने के लिए”|
थोड़ी दूर पर खड़ी चीटियाँ और चूहे हँसने लगे उन्हें देख कर गजराज बोला “आप क्यूँ हँस रहे हो आप सब को क्या काम दिया जाए’?
वो बोले “हम तो आम जनता में ही ठीक रहेंगे सरकार पर एक ख़ास बात तो आप भूल ही गए”|
“वो क्या”? गजराज ने गरज कर पूछा’
“‘तमाशबीन’ भी तो होने चाहिए महाराज”
“अरे उनकी चिंता नहीं वो तो खुद ही आ जायेंगे कुत्ते,कव्वे और गधे” कम हैं क्या”?
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मौलिक एवं अप्रकाशित
/अरे उनकी चिंता नहीं वो तो खुद ही आ जायेंगे कुत्ते,कव्वे और गधे” कम हैं क्या”/ वाह क्या सार्थकता से 'तमाशबीनों' को परिभाषित करने का सद्प्रयास किया है। सादर बधाई
आ० रवि प्रभाकर जी,लघु कथा के मर्म को पकड़कर की गई आपकी सराहना युक्त प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार
आप जैसे कथाकार की प्रतिक्रिया आश्वस्त करती है |
आ० डॉ.विय शंकर जी आपको लघु कथा पसंद आई आपका दिल से आभार |
आ० समर भाई जी ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सफल हो गया आपका दिल से बहुत बहुत आभार
आ० नीता जी,लघु कथा के मर्म के अनुमोदन हेतु दिल से बहुत बहुत आभार |
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