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आदरणीय Rita Gupta जी आप के इस समर्थन के लिए शुक्रिया.
आदरणीय shashi bansal जी आप का शुक्रिया . आप को लघुकथा बढ़िया लगी .
आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani जी आभार आप का. आप ने लघुकथा पर अमूल्य समय व विचार दिए. मगर गलती से नाम आदरणीय पकंज जी जोशी जी का टाइप कर दिया. सादर,
आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani जी केवल सूचनार्थ ही लिखा था. अन्यथा न ले .
आदरणीय ओमप्रकाश जी बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने हार्दिक बधाई
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आप ने लघुकथा को बढ़िया कह दिया. मेरी मेहनत सफल हो गई. सादर, आभार आप का .
नारीत्व को सरे आम अपमानित करती हुई एक नारी ने ये कैसा धर्म निभाया ? पुरुष प्रकृति में निहित विकृतता को संरक्षण देकर , उसको पोषित करके , वो ना एक अच्छी इंसान रही ना ही एक अच्छी पत्नी। इस सोच को बदलने की बेहद जरुरत है समाज में। न्यायार्थ अपने बंधू को भी दंड देने का प्रावधान रहा है हमारे इतिहास में। इस मनोदशा से सभी स्त्रियों को बाहर निकलने की बेहद जरुरत है।मन को उद्वेलित करती हुई ये कथा ,दूसरों का तो नहीं मालूम ,लेकिन मुझे झंझोड़कर रख दिया है एकदम से । मन वितृष्णा से भर गया पढ़ते ही। हाँ , आदरणीय ओमप्रकाश जी आज आपका ये पंच तो हमारे सर जी के अनुसार ततैये के डंक जैसा ही लगा है। ह्रदय से बधाई आपको इस सार्थक लघुकथा के लिए।
आदरणीय kanta roy जी आप की समीक्षात्मक टिप्पणी ने मुझे उपकृत कर दिया. यह बात दूसरी है कि इस लघुकथा से आप के मन वितृष्णा से भर गया. जिस का मुझे खेद है. वैसे इस लघुकथा में दो नरियो का जिक्र आया. एक आजकल की भोग्य्वादी और दूसरी पतिव्रता. एक व्यक्ति की छलने वाली और दूसरी रक्षा करने वाली. मगर , जो भी हो, आप को लघुकथा सार्थक लगी. यह पढ़ा का अच्छा लगा. शुक्रिया आप का .
अपना फर्ज बखूबी निभाती पत्नी .आखिर कब तक ये चलेगा अभी भी प्रश्न ही है. ।बहुत बहुत बधाई
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