For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या माह फरवरी 2019 – एक प्रतिवेदन

रविवार, दिनांक 24 फरवरी 2019 को मनोज शुक्ल ‘मनुज के सौजन्य से इंजीनियरिंग कालेज. लखनऊ के समीप स्थित स्टेट बैंक की बिल्डिंग में आगमन संस्था और ओबीओ लखनऊ-चैप्टर की एक संयुक्त काव्य गोष्ठी हुयी I इस गोष्ठी की अध्यक्षता दिल्ली से आयी  सुविख्यात कवयित्री सीमा अग्रवाल ने की I सञ्चालन का दायित्व  आकास्वनी , लखनऊ  की उद्घोषिका सुश्री शालिनी सिंह ने उठाया I

कार्यक्रम का समारंभ हास्य के उर्वर प्रस्तोता मृगांक श्रीवास्तव के काव्य पाठ से हुआ I  हास्य की सफलता तब है जब श्रोता सब कुछ भूलकर उन्मुक्त होकर ठहाके लगायें I यह कला श्री श्रीवास्तव को सिद्ध है I उन्होंने एक कविता में मोदी जी के एक घोटाले का चित्र खींचा I मोदी जी ने शौचालय के निर्माण में अरबों रूपये ईंटों की खरीद में खर्च किये I यह धन का दुरूपयोग था क्योंकि कांग्रेस के जमाने में तो केवल दो ईंटों से ही काम चल जाता था I मृगांक केवल हास्य के ही कवि नही है, उनके पास अपना एक चिंतन भी है जो उनके गाम्भीर्य को भी दर्शाता है  I इस सत्य का निदर्शन निम्नांकित पक्तियों में अवलोकनीय है -

कोई जब कहता उसे मृत्यु का भय नहीं है,

यकीन नहीं होता उसका ये कहना सही है,

उसके पहचान की जब परतें खोलीं,

था देश का सिपाही उसकी वीरता यही

 डॉ. शरदिंदु मुकर्जी ने पहले गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की कविता “बैर्थो” का अपने द्वारा किया गया भावानुवाद प्रस्तुत किया I यह अनुवाद गुरुदेव के दार्शनिक चिंतन को रूपायित करने में सफल रहा है जैसे-

क्यों आकाश ऐसे

देखता है, मेरे मुख की ओर

और, पल-पल क्यों

मेरा हृदय पागल सम –

उस सागर में खेता है नाव

जिसका ओर न छोर,

यदि प्रेम नहीं दिया मन में---!

उक्त भावानुवाद के बाद उन्होंने एक स्वरचित काव्य-रचना भी पढ़ी i इस कविता में अद्वैतवाद के स्वर स्पष्ट है I जब मानव जन्म लेता है, तब शैशव में वह अबोध और निर्विकार होता है पर ज्यो-ज्यो वह बड़ा होता जाता है उसमे विकार स्वत: आते जाते हैं , तब वह भूल जाता है कि ईश्वर और उसमे विभेद है और सच्चाई यह है कि दोनो एक दूसरे में समाविष्ट हैं I काव्य का एक अंश यहाँ प्रस्तुत है - 

तुमने मुझको दी ज़िंदगी

मैंने प्रश्न-चिह्न उगाये

जीवन तट के घाट-घाट पर

सपनों के झूले टकराये.

कहीं मिला सुख चैन, कहीं तो

दुख के साज़ लगे बजने

कहीं कलुष था, अंधकार था

कहीं लगे तारे सजने.

क्या पाया, क्या खोया की

आपाधापी में भूल गया

तुम मुझमें हो, मैं तुममें हूँ

 मानव की जीवन यात्रा में अक्सर ऐसे क्षण आते हैं, जब उसे भरोसे की या सहारे की आवश्यकता होती है I अपना दर्द और आँसू छिपाने के लिए उसे एक सच्चे हमदर्द की तलाश होती है I हर आदमी को जीवन के किसी न किसी मोड़ पर कथाकार डॉ. अशोक कुमार शर्मा की भाँति यह कहना ही पड़ता है कि –

तुम !

अपना कांधा दे देना

मैं सिर रखकर

कुछ रो लूंगा I 

 डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने उन स्थितियों और परिस्थितियों की पड़ताल अपनी कविता में की जहाँ अनुराग सदैव शोभित होता है I ‘वंशस्थ विलं’ छंद में कविता की बानगी इस प्रकार है -

वियोग में भी हिय की समीपता

नितांत तोषी मनसा समर्पिता

जहाँ शुभांगी पुरुषार्थ रक्षिता

वहां सदा है अनुराग राजता

 इसके बाद उन्होंने कुछ सवैये भी सुनाये I उनके द्वारा रचित अरसात सवैया जिसमे उन्होंने गर्मी की ऋतु का एक गुदगुदाता चित्र खींचा है, इस प्रकार है -

तात न वात न गात सुखात न चैन इहाँ कछु भी तुम पाइयो

भोजन पाय  सनेह सु नाथ  कछू गुन ईश्वर के  तब गाइयो

बिस्तर आज  लगा घर बाहर  शंक नहीं मन में तुम लाइयो

ग्रीष्म प्रचंड  दहावत  है तुम  और दहावन  रात न आइयो

 ‘प्रेम’ जिससे इस सृष्टि में संभवतः जीवन आया है और जिसे अनादिकाल से मनुष्य अपने अनुभव के अनुसार परिभाषित करता रहा है, किन्तु जिसका वास्तव में कोई  पारावार नही है, उस प्रेम को कवयित्री आभा खरे ने अपने शब्द चित्र में इस प्रकार रूपायित किया –

प्रेम !

एहसासों की मद्धिम आँच में

क़तरा-क़तरा

पिघले लम्हों की

अनगिनत कड़ियाँ है..!!

मनोज शुक्ल ‘मनुज‘ युवा कवि है और निस्संदेह ओज के कवि है I उनकी कविता आक्रोश और आवेश राष्ट्र कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की याद दिलाती है I उनकी शब्द-योजना में जितना आवेग है उतना ही आवेग उनकी वाणी में भी है I मरने से पहली उनकी क्य-क्या शर्तें हैं, इसका बड़ा ही ओजस्वी उद्घाटन प्रस्तुत गीत में हुआ है –

सच कहता तब मर जाऊँगा................

इन  ओछे अज्ञानी लोगों को पहले कुछ पाठ पढ़ा लूँ,

झूठे  आडंबरधारी  लोगों   से   अपना  बैर  बढ़ा लूँ।

पत्थर  पर  चलने वाले घोड़ों के खुर में नाल ठोंक दूँ,

अपनी सारी त्याग तपस्या को समिधा कर उसे झोंक दूँ।

कुछ अद्भुत मैँ कर जाऊँगा,

सच कहता तब मर जाऊँगा

 कवयित्री संध्या सिंह बिंब और प्रतीकों से ही अपनी बात कविताओं में कहती हैं और बड़े प्रभावपूर्ण ढंग से कहती हैं I ज़रा उनका असमंजस तो देखिये -  

ऊबे दिन बासी रातों से

कैसे नई कहानी लिख दें

पांव तले पिघला लावा है

तुम कहते हो पानी लिख दें    

इसके बाद अध्यक्ष के पाठ से पूर्व  कवयित्री नमिता सुन्दर, सचिन मेहरोत्रा , शालिनी सिंह, सौरभ अवस्थी , वर्षा श्रीवास्तव ने भी अपनी रचनाएं  पढी I अं  में  कार्यक्रम की अध्यक्ष सीमा अग्रवाल ने नदी के माध्यम से एक लडकी की मायके से ससुराल तक की यात्रा का बड़ा ही सुन्दर रूपक बाँधा I इस कविता की आरम्भिक पक्तियाँ इस प्रकार है –

सखी नदी तुम कलकल करके बहती रहना

दूर तुम्हारे तट से मेरे गाव का पीपल

दोस्त मेरी बचपन की संचित खुशियों का दल

धाराओं पर संदेशे रख भिजवाता है

पत्तों पर लिख-लिख मुझ तक पहुंचाता है

मगर मेरे अपनों की यूँ ही कहती रहना II सखी नदी -------

तदुपरांत आयोजक  मनोज शुक्ल ‘मनुज ने उपस्थित कवियों को धन्यवाद देते हुए, कार्यक्रम के समापन की औपचारिक घोषणा की I मनुज का आतिथ्य सराहनीय था I  कोकिलकंठी सुश्री सीमा अग्रवाल के स्वर का मार्दव वातावरण को देर तक मथता रहा और मैं सोचा -

सागर है विश्राम,  नदी है जीवन-धारा I

इसमें तो पीयूष, किंतु सागर है खारा I

सागर ने भवपार किया बोलो कब किसका ?

मिल नदियों ने किंतु अहो लाखों को तारा II [रोला विन्यास पर मुक्तक ,सद्यरचित]

[मौलिक/अप्रकाशित ]

 

Views: 707

Reply to This

Replies to This Discussion

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी,फरवरी 2019 की गोष्ठी का प्रतिवेदन आने में देर हुई है जिसका सीधा असर प्रतिवेदन पर पड़ा है. कम से कम तीन रचनाकारों की प्रस्तुति को आप भूल गये जिनमें आदरणीया नमिता सुन्दर जी की रचना भी है. नमिता जी सुश्री संध्या सिंह जी के साथ आयोजन की विशिष्ट अतिथि भी थीं. अन्य दो रचनाकारों में एक के सौजन्य से आयोजन स्थल हम लोगों को मिला था. मैं समझता हूँ कि हम सभी को किसी भी आयोजन का प्रतिवेदन बनाते समय चौकन्ना रहना पड़ेगा.
उपरोक्त के अतिरिक्त एक और बहुत बड़ी त्रुटि हुई है. आयोजन के दौरान संचालन मनोज शुक्ल 'मनुज' जी ने नहीं, आकाशवाणी,लखनऊ की उद्घोषिका सुश्री शालिनी सिंह ने किया था. शालिनी जी ने भी अपनी रचना पढ़ी थी.
इस प्रतिवेदन के पाठकगण से ओबीओ लखनऊ चैप्टर उपरोक्त त्रुटिओं के लिए क्षमाप्रार्थी है.

आ० दादा शरदिंदु जी का कथन स्वीकार्य है i इस गडबडी का मुख्य कारण  है कार्यक्रम की आडियो रिकार्डिंग का किन्ही कारणों से डिलीट हो जाना  सदस्यों ने भी अपनी पढ़ी  रचनाओं को दोबारा देने में आलस्य किया और कुछ के फोन न०  भी उपलब्ध नही थे I  निवेदक इस  त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी है  I

रिपोर्ट को एडिट कर संशोधित कर दिया गया है  I अब इसमें कोइ त्रुटी नही रह गयी है i 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service