आदरणीय साथिओ,
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उम्मीद को जागृत करती अच्छी लघुकथा. मगर बीच में कही ऐसा लगा कि प्रवाह कही टूट सा गया है. ( यह मेरा भ्रम भी हो सकता है. अन्यथा न ले.) हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिएगा.
जनाब ओमप्रकाश जी आदाब ,
हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया
क्यों कि ये मेरी पहली लघूकथा है इस लिए ज़रूर कुछ
कमी बैशी रही होगी आपने जिस पाईंट पर ध्यान दिलाया हे उस पर ज़रूर
तवज्जो दूंगा बहुत शुक्रिया मोहतरम
उम्मीद जिन्दा है और हमेशा रहेगी, बहुत सुंदर रचना विषय पर. बहुत बहुत बधाई इस सटीक रचना के लिए आ मिर्ज़ा जावेद बेग साहब
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब विनय कुमार साहिब,
आपकी हौसला अफ़ज़ाई ओर बहतर करने की प्रेरणा देगी
बहुत सही लिखा,साक्षरता का प्रतिशत लगातार बढ़ रहा हैं, इंसानियत का स्तर गिरता जा रहा हैं,ऐसे परिवेश में विशाल और शशिकांत के आचरण को देखकर बुझी हुई उम्मीद में रौशनी दिखती कविता।बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय मिर्जा सरजी।
बहुत शुक्रिया मोहतरमा बबीता गुप्ता जी,
आपकी बहतरीन दाद मेरे हौसलों को परवाज़ अता करेगी शुक्रिया
लगता है,आपकी ये पहली कथा है।ओ बी ओ परिवार में आपका स्वागत है।संदेशप्रद कथा के लिये बधाई आद० मिर्ज़ा जावेद बेग जी ।
मोहतरमा नीता जी आदाब,
जी सही कहा आपने ये मेरी पहली कौशिश है इस विधा में
हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया
वाह-वाह लाजवाब कर दिया। हमें आपने अपनी बचपन की उन बाखलों में पहुंचा दिया जहां इस तहजीब और तमीज को देखकर सीखकर हम बड़े हुए। उम्मीद विषय पर इससे अच्छी लघु कथा नहीं हो सकती। ऐसा मुझे आपको पढ़कर लगा और ये भी लगा कि आप स्वयं भी एक लेखक के रूप में इंसानियत को तरजीह देने के लिए हमारे लिए एक उम्मीद की किरण है। हम उम्मीद करते हैं कि आपकी लेखनी से इसी तरह आपसी एकता, सद्भाव और महब्बत की रचनाएं निकलती रहेंगी और हम उन्हें पढ़कर नई उम्मीद के साथ अपने आपको आश्वस्त करते रहेंगे कि अभी जिंदा है मॉ मेरी मुझे कुछ नहीं होगा, मैं जब घर से निकलता हूं तो दुआएं साथ होती हैं। आदाब के साथ मुबारकवाद
मोहतरम जनाब आशीश साहिब आदाब,
इस भरपूर हौसला अफ़ज़ाई के लिए बेहद
शुक्रगुज़ार हूं आपकी टिप्पणी ने मुझे मेरा एक शैर याद दिला दिया देखें
हम सुख़नवर हैं, सारी दुनिया में!
दफ़ हमैं इश़्क़ की बजानी है!
बढ़िया रचना आदरणीय जावेद जी ,बधाई आपको ,सादर
मोहतरमा बरखा जी आदाब ,
मेरी रचना को अपनी दादो तहसीन से नवाज़ने के लिए
बहुत बहुत शुक्रिया
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