आदरणीय साथिओ,
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वाह वाह बहुत सुन्दर , नार्मल सहज आदमी सच में फ़रिश्ते ही हो गए हैं क्यों कि बड़ी मुश्किलसे मिलते हैं ,,प्रतीकों में आपने क्या ही गूढ़ बात कह दी है वाह हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीय डॉ विजय शंकर जी
मशीनरी और डिजिटल युग में चिंतनपरक लघुकथा के लिए बधाई श्री विजय शंकर जी | सादर नमन
आज का डिजिटलाइज्ड युग और इंसान बहुत सुंदर सार्थक बेहतरीन सामयिक लघु कथा .दिल से बधाई लीजिये आद० डॉ० विजय शंकर जी
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ विजय शंकर जी ।आपकी कल्पना शीलता को नमन ।बेहतरीन लघुकथा।
कथा पर विस्तार से बात तो बाद में करूंगा, लेकिन यह बताएं कि उन कैदियों की बात चलते चलते ये अब्बू और रहमान बीच में कहाँ से आ गए? और ये दोनों हैं कौन?
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