आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
पिछले 76 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-77 (होली विशेषांक)
विषय - "होली के रंग"
आयोजन की अवधि- 10 मार्च 2017, दिन शुक्रवार से 11 मार्च 2017, दिन शनिवार की समाप्ति तक
(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)
अति आवश्यक सूचना :-
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 10 मार्च 2017, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.
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सुरेन्दर नाथ कुलक्षत्रप हुई बौछार होली में
मगर वो बाटली बतला किधर तैयार होली में
बुझेगी आग बिरहन की गुलाबी रंग तो डालो
ये अवसर बात में करना नहीं बेकार होली में
अगर दिलकश नज़ारें देखना है गाँव के तुमको
चलो पनघट पे दिखला दें खिली कचनार होली में
कली या फूल ख़ुद पीछे तुम्हारे आ पड़े भाई
रसायन प्रेम का ऐसा करो तैयार होली में
बुरा माना नहीं तो इक निवेदन है ख़ुमारी में
निभाते जाइए बस भंग का व्यवहार होली में
बधाई लीजिये उम्दा ग़ज़ल की, ध्यान ये रखिये
बिना बोतल बधाई भी अजी बेकार होली में
हा हा हा....
दिखायी है मुहब्बत भी गजब सरकार होली में,
कहें हैं खूब ही दमदार ये अशआर होली में
मिटेगी दूरियाँ सम्मान भी कायम रहेगा सच
अगर लांघे न मर्यादा की हम दीवार होली में
सभी अशआर एक से बढकर एक हुए हैं आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह जी. होली पर्व की हार्दिक बधाइयां स्वीकारें. सादर.
मुबारक हो दिली सबको हमारी ओर से होली |
झमाझम प्यार की हो हर तरफ बौछार होली में || -- अति सुंदर युग्मों से साईं अनुम्प्म भाव रचित प्रस्तुति के लिय बधाई
लगे इस बार की होली भरकर लाइ खुशियों की झोली
हुई जागरूक अब जनता उसे नेता दे न सके गोली |
होली के रंग
नित्यनिवृत्ता प्रकृति प्रेरित,
असंख्य तरंगों से उमंगित
मन की क्रिया प्रतिक्रिया से होते हैं नित्य संचित,
संस्कार ।
सभी कहते हैं उन्हें ‘रंग‘
मूलतः रंगहीन हम, ने रच डाली है अलग
अपने अपने इन रंगों की दुनिया ।
इन्हें फेकते हैं,
इन्हें पोतते हैं,
थोपते हैं अन्यों पर ।
बनाने लगते हैं, अपनी तरह सबको,
मनाते हैं खुशियाॅं,
करते हुए बदरंग दुनिया।
दूरदर्शी पुरखों ने,
निर्धारित किया था यह दिन,
आत्मशुद्धि के लिए।
पर, हो रहा है सब उल्टा,
हम,
गंदगी से रंग रहे हैं दुनिया।
जिससे लिये हैं ये सभी वर्ण
उस प्रकृति को ही ,
क्यों न वर्णार्घ्य दे दें हम ?
और,
मनाएं यह दिवस आज बिलकुल नए ढंग से।
निर्मल स्वस्वरूप में स्थापित कर अपने को,
वर्णहीन बना दें यह दुनिया।
(मौलिक और अप्रकाशित)
होली अपने आप में अनूठा त्यौहार है , त्योहारों को गलत ढंग से मनाने वाले ,उन्हें बदरंग करने वाले हर देश हर संस्कृति में होते है पर उन मुट्ठी भर लोगों से त्योहारों का महत्व व् खुशबू ख़त्म नहीं हो जाती .... रचना के लिए बधाई व् होली की ढेरों शुभकामनाएँ आपको आदरणीय डॉ टी आर सुकुल जी सादर
विनम्र आभार आदरणीया प्रतिभाजी। परंपरागत आधार पर आपका कहना उचित लगता है। उत्सवधर्मिता मानव जीवन का अभिन्न अंग है ,परन्तु मेरे विचार से उत्स विहीन उत्सव मनाना केवल थोथी परम्पराओं का निर्वहन करना ही है। मलय सुगंध घुले रंगों के साथ वर्णपर्व पर असीम मंगलकामनाएं। सादर।
हार्दिक आभार , आदरणीय सुरेंद्र जी। वर्णपर्व पर असीम मंगलकामनाएं। सादर स्वागत।
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