For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय काव्य-रसिको,

सादर अभिवादन !

 

चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार उन्हत्तरवाँ आयोजन है.

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  

20 जनवरी 2017 दिन शुक्रवार से 21 जनवरी 2017 दिन शनिवार तक


इस बार उल्लाला छन्द तो है ही, इसके साथ रोला छन्द को रखा गया है. - 

उल्लाला छन्द, रोला छन्द

 

यह जानना रोचक होगा, रोला छन्द दोहा छन्द के कितने निकट और कितने दूर है ! 

हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं.

इन छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना करनी है. 

प्रदत्त छन्दों को आधार बनाते हुए नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.  

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो दोनों छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.   

 

[प्रस्तुत चित्र अंतरजाल से प्राप्त हुआ है]

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

उल्लाला छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें 

रोला छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

 

********************************************************

आयोजन सम्बन्धी नोट :

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 20 जनवरी 2017 दिन शुक्रवार से 21 जनवरी 2017 दिन शनिवार तक यानी दो दिनों केलिए रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  5. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  6. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  7. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

विशेष :

यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com  परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

 

मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 13909

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

//आसमान में तैरती भीतर की इक आँच सी

अंतर्मन से तप रही, काया कच्चे काँच सी  

तृष्णा पल-पल बालती, एक-एक उच्छ्वास है|//

वाह वाह वाह !! उल्लाला छंद पर इस सधी और कसी हुई प्रस्तुति ने मन मोह लिया, हार्दिक बधाई प्रेषित हैI

मुहतर्मा सीमा            साहिबा   , चित्र के अनुरूप सुंदर उल्लाला    छन्द गीत   के लिए मुबारकबाक़ुबूल फरमाएँ --- 
 ----

 .

मोहतरमा सीमा मिश्रा जी आदाब,प्रदत्त चित्र पर उल्लाला छन्द आधारित बढ़िया रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीया सीमा जी उल्लाला छ्न्द पर आधारित उम्दा सृजनके लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें!

मन की इच्छा है प्रबल, निर्झरणी की धार सी  

मन पंखों की कामना, नील-गगन विस्तार सी

अन्धकार में मुक्ति पथ, बस पाने की आस है|..........वाह !

आदरणीया सीमा मिश्रा जी सादर, प्रदत्त चित्र पर बहुत ही सुन्दर गीत रचा है आपने. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

रोला छंद
...........
अग्नि वायु व्योम है ,जल है और मैं माटी
पंचतत्व सदृश्य है ,रंग रंगीली घाटी
इक छलांग भर सिंधु ,अम्बर को छूने चली
मैं जननी तम छोड़ , नव प्रभात में मैं ढली

.
तोड़ू हर प्रतिबन्ध , न हद हो अरमानो की
उड़ूं धरा को छोड़, झड़ी हो फरमानों की
बाँधूँ दामन संग ,हदें इस नील गगन की
महासागर लांघूँ , चाह है मेरे मन की
.
मैं नाही विद्धान, न चाहूँ पूजन मेरा
पाखी जैसी शान, न हो बन्दिश का घेरा
घुलती मेरी देह , छुअन है मेरी ऐसी
माटी जल का नेह , हवा में खुशबू जैसी

.

मौलिक एवं अप्रकाशित    

आदरणीया अलका ललित जी, आपने रोला छंद में बढ़िया पद लिखे हैं किन्तु आरंभिक छंदों में विधान अनुसार निर्वाह नहीं हुआ है -

अग्नि वायु व्योम है ,जल है और मैं माटी 
पंचतत्व सदृश्य है ,रंग रंगीली घाटी 
इक छलांग भर सिंधु ,अम्बर को छूने चली 
मैं जननी तम छोड़ , नव प्रभात में मैं ढली 

रोला छंद विधान अनुसार रोला के विषम चरण का विन्यास दोहा के सम चरण की तरह ही होता है, यानि 4, 4, 3 या 3, 3, 2, 3 तथा चरणांत गुरु लघु या ऽ। या 21 होता है. इसी प्रकार रोला के सम चरण का संयोजन 3, 2, 4, 4 या 3, 2, 3, 3, 2 होता है. रोला के सम चरण का अंत दो गुरुओं (ऽऽ या 22) से या दो लघुओं और एक गुरु (।।ऽ या 112) से या एक गुरु और दो लघुओं (ऽ।। या 211) से होता है. यह भी ध्यान देने योग्य है कि रोला का सम चरण ऐसे शब्द या शब्द-समूह से प्रारम्भ हो जो त्रिकल का निर्माण करें. इससे छंद में गेयता भी आती है. जैसे //अम्बर को छूने चली // के स्थान पर  //चली छूने को अम्बर// करना होगा.

विधान अनुसार संशोधन का प्रयास किया है-

अग्नि वायु है व्योम, नीर है औ मैं माटी 
पंचतत्व सादृश्य, कई रंगों की घाटी 
इक छलांग भर सिंधु, चली छूने को अम्बर
मैं जननी तम छोड़, ढली मैं नव प्रभात वर

तोड़ू हर प्रतिबन्ध , न हद हो अरमानो की 
उड़ूं धरा को छोड़, झड़ी हो फरमानों की 
बाँधूँ दामन संग ,हदें इस नील गगन की
सागर लांघूँ आज, चाह है मेरे मन की .......................... बहुत बढ़िया छंद पद लिखे हैं 
.
मैं नाही विद्धान, न चाहूँ पूजन मेरा 
पाखी जैसी शान, न हो बन्दिश का घेरा 
घुलती मेरी देह, छुअन है मेरी ऐसी
माटी जल का नेह, हवा में खुशबू जैसी........................ बहुत सुन्दर छंद 

इस प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत बधाई. सादर 

आदरणीय मिथिलेश जी , छंदों पर प्रशंसा व मार्गदर्शन के लिए बहुत आभार आपका। विधान अनुसार  पहले छंद में  सुधार का प्रयास किया है.... यदि गलत हो तो कृपया मार्गदर्शन करें। सादर

पावक गगन समीर ,नीर है औ मैं माटी
पंचो संग शुचिता, भरी रंगों की घाटी
पंचतत्व तल्लीन , चली छूने को अम्बर
मैं जननी तम छोड़, ढली मैं नव प्रभात वर

11 वीं मात्रा लघु अनिवार्य है अतः //पंचो संग शुचिता, भरी रंगों की घाटी // को //पाँचों से सम्पूर्ण, हुई रंगों की घाटी // कर सकते है, क्योकि शुचिता का 'ता' लघु मात्रिक नहीं है, सादर 

आदरणीय मिथिलेश जी , आभारी हूँ जो आपने रचना को समय देकर संशोधन कराया ।

..

पावक गगन समीर ,नीर है औ मैं माटी
पाँचों से सम्पूर्ण, हुई रंगों की घाटी
पंचतत्व तल्लीन , चली छूने को अम्बर
मैं जननी तम छोड़, ढली मैं नव प्रभात वर
.
तोड़ू हर प्रतिबन्ध , न हद हो अरमानो की
उड़ूं धरा को छोड़, झड़ी हो फरमानों की
बाँधूँ दामन संग ,हदें इस नील गगन की
सागर लांघूँ आज , चाह है मेरे मन की
.
मैं नाही विद्धान, न चाहूँ पूजन मेरा
पाखी जैसी शान, न हो बन्दिश का घेरा
घुलती मेरी देह , छुअन है मेरी ऐसी
माटी जल का नेह , हवा में खुशबू जैसी

..

आदरणीय , कृपया संकलन में संशोधित रचना को स्वीकार किया जाये। सादर धन्यवाद।

आदरणीया अलका ललित जी सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।

आदरणीय सुरेश कुमार जी. रचना आपको पसंद आई बहुत बहुत धन्यवाद आपका। सादर।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय गुणीजनो की इस्लाह से और निखर जायेगी"
32 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय methani जी से ज़र्रा नवाज़ी का"
33 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय सुरेन्द्र जी, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है। शेष तिलकराज जी ने विस्तृत तौर पर बता दिया है। मेरी…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय सुरेन्द्र जी, पोस्ट पर आने व सुझाव देने के लिए हार्दिक आभार।"
1 hour ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय आज़ी भाई जी हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी।। सादर जी।"
1 hour ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलकराज जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल पर आने के लिए और ग़ज़ल को इतना समय देने के लिए आपका बहुत बहुत…"
1 hour ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल के प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें जी। तक़रार इस्त्रिलिंग है…"
4 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीया रिचा यादव जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा हुआ बधाई स्वीकार करें जी। दिल में…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय रिचा यादव जी, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है बधाई स्वीकार करें।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय निलेश "नूर" जी, आप लाजवाब ग़ज़ल लिखते है। बधाई स्वीकार करें।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है। बधाई स्वीकार करें।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तमाम आज़ी जी, उम्दा ग़ज़ल है आपकी। बधाई स्वीकार करें। आदरणीय तिलकराज जी के सुझावों से ये और…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service