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आदरणीय सीमा जी, बहुत ही खूबसूरती से आपने 'बुनियाद' विषय को परिभाषित किया । शुभकामनाएं ।
आदरणीय योगराज जी से सहमत हूँ कि यह रचना लघुकथा की श्रेणी में नहीं आती। किन्तु प्रयास बहुत शानदार है। दाद कुबूल कीजिए आदरणीया सीमा जी
प्रदत्त विषय पर अच्छी प्रस्तुति आदरणीया सीमा सिंह जी , लेकिन अलग अलग काल खण्डों में विभाजित हो गयी रचना | आजकल माता पिता बच्चों को आगे बढ़ने के लिए अनावश्यक दबाव डालते हैं और उसके लिए अनुचित रास्तों पर भी डाल देते हैं उन्हें | बधाई इस रचना के लिए..
जब परीक्षा में ले जाने वाली चीजों पर नाम लिखा है तो याद क्या करना | नक़ल की बुनियाद तो यही पड़ गई | वाह ! बहुत सुंदर लघु कथा रची है आ सीमा सिंह जी
आदरणीया सीमा जी, बात बेशक छोटी सी है पर इसका प्रभाव बहुत ही दूर तक जाएगा, सोचना होगा कि हम बच्चों को कैसी शिक्षा दे रहें हैं. अच्छी लघुकथा हुयी है, बहुत बहुत बधाई.
बुनियाद
सारा घर चिंतित था।नेहा कल कॉलेज से आई ही नही।माँ का रो रो कर बुरा हाल था। जहा जहा तलाश की एक ही जवाब ..."नही देखा उसे"।
"और पढ़ाओ उसे..कलेक्टर बनाओ .. अब बिरादरी में क्या जवाब दोगे..अरे बिरादरी की छोडो..पड़ोसियों को और रिश्तेदारो को भी मुँह दिखाने के काबिल नही रहे हम।"
"नेहा की माँ धीरज रखो।सब ठीक होगा। सब जगह तलाश जारी है।"
फोन की घंटी बजते ही शुक्लाजी ने लपक कर फोन उठाया।
"पापा"
"तुम कहा हो नेहा"
"पापा मैंने कोर्ट मैरेज कर ली है..लड़का इंजीनियर है पर हिन्दू नही है।मैं जहा भी हु कुशल हु।मम्मी का ख्याल रखना।हम दोनों जल्द ही आएंगे आप सब का आशीर्वाद लेने"।
पापा कुछ बोले उसके पहले फोन की लाइन कट चुकी थी..परिवार की बुनियाद हिल चुकी थी।
(मौलिक व अप्रकाशित)
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