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ओ.बी.ओ. के पुरोधाओं
आधी रात को यह तीसरी ग़ज़ल तो ऐसी ठेल रहा हूँ की पढ़ कर आपके दिमाग का दही होना तय है, बस इस गज़ल के किसी शेर का अर्थ मत पूछियेगा
क्या पता था इस तरह का हादसा हो जाएगा
इतने सारे बेवडों से राबिता हो जाएगा
मृग नयन साकी का चक्कर अब न छोडेगा अगर
खंडहर हो जाएगा, भस्का किला हो जाएगा
चाँद-सूरज, फूल-तितली, जाम-मय, गर छोड़ दें
शायरों की डायरी से सब सफा हो जाएगा
फाइलातुन, फ़ाइलुन, मुस्तफ्यलुन में फँस गए
सोचते थे शाईरी से फ़ायदा हो जाएगा
"दोस्ती" के साथ तूने "दुश्मनी" तो लिख दिया
क्या तुझे मालूम है "छोटी इता" हो जाएगा ?
अब मुझे क्या कह रहा, दो बार तो समझाया था
"रोज़ पव्वा पी लिया तो पीलिया हो जायेगा"
दो ही मिसरों में तू अपनी बात "वीनस" खत्म कर
चार मिसरों में लिखेगा तो "कतआ" हो जाएगा
हो गया न दिमाग का दही :)
सिर्फ सर होता दही तो नाश्ता करता वही
इस हज़ल से तो बदन ही रायता हो जायेगा।
फाइलातुन, फ़ाइलुन, मुस्तफ्यलुन में फँस गए
सोचते थे शाईरी से फ़ायदा हो जाएगा
भाई वाह वेनस जी आभार भी स्वीकारें मेरे दर्द को बयान करने के लिये |
बहुत खूब भाई वीनस, अच्छी ग़ज़ल कही है, पर यह क्या यार दिमाग का दही और रायता बना रहे हो आप सब , होली में दिमाग साथ कहा रहता , उसे तो घर पर छोड़ दिया जाता है |
तीसरी टेंशन हेतु तगमा तलाश रहा हूँ , जल्द ही आपके गले में टांग दूंगा |
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