परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 43 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का तरही मिसरा साहिर लुधियानवी की ग़ज़ल से लिया गया है| मिसरे के अंत में "जाउंगा" आया है यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि महिलाओं अर्थात शायराओं को "जाऊंगी" करने की छूट है है| पेश है मिसरा-ए -तरह
"ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊंगा/जाऊंगी"
2122 1122 1122 22
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन
( बहरे रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ )
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 जनवरी दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 26 जनवरी दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आपका साथ मिला तो मै निकल जाउंगा
खोटा सिक्का सही बाज़ार में चल जाउंगा
आपने ख़्वाहिशों को आग दिखाई है, मगर
मै भी पत्थर हूँ ,न सोचो कि पिधल जाउंगा
मै ख़ुदा वाला हूँ ,जीता हूँ करम पर उनके
“ ठोकरें खाके मुहब्बत मे सँभल जाउंगा “
हसरतें क़ैद में रखने से न पूरी होंगी
मै हवा बन के कहीं से भी निकल जाउंगा
आग अंदर की लिये फिरता हूँ खामोशी से
दूर से आग दिखाये भी तो जल जाउंगा
खूब इनकार सुना हूँ ,मुझे ग़म क्या होगा
तुम जो इक़रार सुनादो तो उछल जाउंगा
मेरे माजी से बहुत सीख ली है, मैने भी
ये न समझो, कि मै वादों से बहल जाउंगा
तू मेरी माँ है, कहीं और सतायेगी मुझे
मै भी बेटा हूँ तेरा और मचल जाउंगा
मौलिक एवँ अप्रकाशित
संशोधित
हसरतें क़ैद में रखने की न पूरी होंगी
मै हवा बन के कहीं से भी निकल जाउंगा
बहुत सुन्दर आदरणीय गिरिराज सर
आदरणीया वन्दना जी , आपका बहुत शुक्रिया ॥
आदरणीय गिरिराज sir हार्दिक बधाई खुबसूरत गजल के लिए
आदरणीया सरिता जी , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ
हसरतें क़ैद में रखने की न पूरी होंगी
मै हवा बन के कहीं से भी निकल जाउंगा...बहुत सुन्दर
आग अंदर की लिये फिरता हूँ खामोशी से
दूर से आग दिखाये भी तो जल जाउंगा..umda...
मेरे माजी से बहुत सीख ली है, मैने भी
ये न समझो, कि मै वादों से बहल जाउंगा..wah..गिरिराज भंडारी सर
आदरणीय अविनाश भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ॥
मै ख़ुदा वाला हूँ ,जीता हूँ करम पर उसकी
“ ठोकरें खाके मुहब्बत मे सँभल जाउंगा “
हसरतें क़ैद में रखने की न पूरी होंगी
मै हवा बन के कहीं से भी निकल जाउंगा....बहुत बहुत सुंदर !
आदरणीय गिरिराज जी हार्दिक बधाई आपको
आदरणीया कल्पना जी , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिलसे शुक्रिया ॥
//मै ख़ुदा वाला हूँ ,जीता हूँ करम पर उसकी//
आ० भंडारी साहिब शब्द "करम" का सही लिंग निर्धारण हो जाये तो आगे बात करूँ।
आदरणीय योग राज भाई , शर्मिन्दा हूँ , हज़ार बार उपयोग किये शब्द मे लिंग मे गलती किया हूँ , क्षमा चाहता हूँ ।
निम्न लिखित परिवर्तन के लिये आपसे प्रार्थना करता हूँ
1- मतले मे -मिसरा ए उला मे ------ सँभल जाउंगा के स्थान पर -- निकल जाउंगा
2- मै खुदा वाला हूँ जीता हूँ करम पर उनके
3-हसरतें क़ैद में रखने की न पूरी होंगी ------ को -- - रखने से न पूरी होंगी -- ॥ सादर ॥
यथा संशोधित
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