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//गुलों की घनी लाल क्यारी मुहब्बत
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत |1|//
"गुलों" के साथ "घनी" शब्द कुछ जाच नहीं रहा भाई जी ! और "लाल क्यारी" वाली बात भी कुछ पल्ले नहीं पडी !
जहाँ में सभी लोग हारे इसीसे
सदा ही खुदी से है हारी मुहब्बत |2|
क्या कहने हैं इस शेअर के और आपकी सादा बयानी के !
//इसी दम पे गम को सहे जा रहे हैं
की होगी कभी तो हमारी मुहब्बत |3|//
वाह वाह !
//जहाँ में हुए हैं कई लोग जिनकी
रही है अभी तक उधारी मुहब्बत |4|//
उधारी मोहब्बत ? ये मोहब्बत में नगद और उधार कब से आया मेरी सरकार ?
//वो लैला वो मजनू वो फरहाद शीरी
रहेगी सदा इनपे वारी मुहब्बत |6|//
बिलकुल सही फ़रमाया, ये सभी लफ्ज़-ए-मोहब्बत के पर्यायवाची हैं !
//चलो देख लें आज माज़ी इन्ही की
हमें हो अता राजदारी मुहब्बत |7| //
माज़ी शब्द को स्त्रीलिंग कि तरह इस्तेमाल करने की बात समझ नहीं आई ! वैसे इस इस शेअर के तात्पर्य का खुलासा करेंगे आप, सच में बात समझ नही आई ?
वो सीमा पे सैनिक खड़े तान सीना
लहू माँग में जिनका धारी मुहब्बत |12|
जवाब नहीं इस शेअर का शेषधर भाई जी - वाह !
सुहागन बनी है ये धरती अभी तक
जो माँ बाप ने आप वारी मुहब्बत |13|
अर्थात ?
इन्ही से सलामत हमारी मुहब्बत
चलो दें इन्हें ढेर सारी मुहब्बत |15|
ये तो मतला-ए-सानी यानी हुस्न-ए-मतला है, इसका क्रम बदल कर मतले के नीचे लिखें भाई जी !
मोहब्बत कहानी लगे दिलजलों को
हमें तो पियारी हमारी मुहब्बत |16|
भाई जी "कहानी" की जुगलबंदी "पियारी" के साथ ??
योग राज जी .. ये हुयी न उस्तादों वाली बात ... मज़ा आ गया आपकी टिपण्णी पढ़ कर ... ऐसे ही सीखने को मिलेगा ...
आदरणीय दिगंबर साहिब, मैंने जो महसूस किया वो दिल खोल कर कह दिया ! और ओबीओ का तो मकसद ही ये है कि एक दूसरे के अनुभव से सीखा जाए ! सादर !
Sach kaha ...
शेषधर सर, यही है OBO का मकसद,
सीखे और सिखाये,
मिलकर ख़ुशी मनाये,
क्या बात है शेषधर जी !
कमाल की ग़ज़ल
इन्ही से सलामत हमारी मुहब्बत
चलो दें इन्हें ढेर सारी मुहब्बत
क्या खूब कहा आपने शेष जी..
बहुत अच्छी ग़ज़ल..
लिखने के लिए धन्यवाद
manmohak khubsurat
इसी दम पे गम को सहे जा रहे हैं
की होगी कभी तो हमारी मुहब्बत |3|
वो लैला वो मजनू वो फरहाद शीरी
रहेगी सदा इनपे वारी मुहब्बत |6|
वो सीमा पे सैनिक खड़े तान सीना
लहू माँग में जिनका धारी मुहब्बत |12|
इन्ही से सलामत हमारी मुहब्बत
चलो दें इन्हें ढेर सारी मुहब्बत |15|
शानदार, गजब के शेर हैं, बहुत बहुत बधाई.......
जहाँ में हुए हैं कई लोग जिनकी
रही है अभी तक उधारी मुहब्बत |
वाह सर वाह , कमाल कर गये है, बहुत खूब,
मुहब्बत क़े पहलू अभी और भी हैं
कहाँ हमने देखी संवारी मुहब्बत
vah Shasi Dhar Ji bhaut khub kahi hai aapne
रखे शेष धर जो कलम वह हमेशा
लगती सलिल को दुधारी मुहब्बत.
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