For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता एवम अन्य साहित्यिक विधाओं का उद्देश्य क्या है ?

कविता एवम अन्य साहित्यिक विधाओं का उद्देश्य क्या है? क्या आत्म संतुष्टि अथवा सुखानुभूति या प्रेरणा या सन्देश या जागृति ? क्या इनमे से एक या सभी?  साहित्य से अब व्यक्ति का जुडाव क्योँ कम होता जा रहा है....

 

मित्रों,

           आज साहित्य से व्यक्ति क्योँ कटता जा रहा है ? क्या हमारी संवेदना इस उपभोक्तावाद की आँधी में कहीं खो गयी है, अथवा अधमरी हो गयी है अथवा मरने जा रही है ! क्या साहित्य मौजूदा चुनौतियों का उत्तर देने में अक्षम हो गया है? क्या साहित्य में कबीर और प्रेमचंद जैसी गुणवत्ता न होने के कारण , यह प्रभावशील और ग्राह्य नहीं रहा ?क्या उपभोक्तावाद में व्यक्ति भटकाव के कारण साहित्य भी ऐसा भटक गया है कि यह प्रभावविहीन और शक्तिविहीन हो गया है ! क्या साहित्य अपने उद्देश्यों उपरोक्त रसानुभूति,प्रेरणा, सन्देश ,जागृति आदि सशक्त पहलूओं की सशक्त अभिव्यक्ति के बिना अपना स्थान और प्रभाव खोता जा रहा है _----आज जो लिख रहा है ,वह इन प्रश्नों के घेरे में है--यानि लिखा जाए तो पाठक न के बराबर होने पर किसके लिए लिखा जाए ? और फ़िर कैसा लिखा जाए ? क्या कबीर और प्रेमचंद आज का लेखक हो सकता है! यदि हाँ तो कैसे ? यदि नहीं तो क्योँ ?

मित्रों यह सब ऐसे ज्वलंत प्रश्न हैं, जो हर लेखक को सोचने पर विवश कर रहें हैं ! इन पर आपका क्या विचार है ?

Views: 2129

Reply to This

Replies to This Discussion

आदरणीय अश्विनी जी,

पहली बार सुन रहा हूँ कि दूसरों के विचार जानने से दायरा सीमित हो जाता है और ओबीओ पर मौजूद विद्वज्जन कुछ लोगों के विश्लेषण को पढ़कर पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो जाएँगे। आपसे सविनय असहमत हूँ।

धर्मेन्द्र जी,

नतमस्तक हूँ, आभारी भी

 

जिन्हें  पत्रिका सुलभ नहीं है वो भी अब पढ़ लेंगे,, अब तो वहाँ कमेन्ट भी किया जा सकता हैं

पुनः आभार 

लेख पढ़ने वालों से निवेदन है कि वहाँ कमेन्ट को भी ध्यानपूर्वक पढ़े,, शायद कुछ और सच सामने आ जाए

आपकी बातों को गंभीरतापूर्वक सुन/पढ़ रहा हूँ.  बस इसमें से संप्रेषण के तत्व न खारिज हो जायँ. सोलिलोकाई का विशद उदाहरण सापेक्ष है. चूँकि सभी विन्दु घोषित हैं, सो, मान्य हैं.

व्यक्ति साहित्य से कटा नहीं है. सच तो यह है कि जितना साहित्य इस युग में रचा या पढ़ा जा रहा है इससे पहले कभी रचा या पढ़ा नहीं गया.

संवेदना न तो पायी जाती है, न खोती है. संवेदना जीवित ही नहीं अजीवित वस्तुओं पेड़, पौधों पत्थरों आदि में भी होती है, अंतर स्तर का है. हम जिन्दा रहें और संवेदना मर जाये ऐसा संभव नहीं.संवेदना सुप्त अथवा जाग्रत हो सकती है.  

साहित्य का कार्य चुनौती देना या लेना नहीं है. साहित्य सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय रचा जाता है... इस सर्व में निस्संदेह आत्म भी समाहित होता है.

जब बहुत कम लोग शिक्षित थे, तब बहुत कम लोग लिख-पढ़ या रच पते थे.बहुतांश केवल सुनाता, गुनता और सिर धुनता था. अब इतना लिखा जा रहा है कि जीवन का हर पल पढ़ने में लगा दें तो भी सब नहीं पढ़ सकते. 

एक अन्य कारण जीवन में गतिविधियों का बढ़ना है. हमसे पहले की पीढ़ियों के जीवन में इतनी व्यस्तता नहीं थी. अब जीवन में गतिविधियाँ, हलचलें, मनोरंजन पहले की तुलना में बहुत अधिक है. फलतः, सीमित और चयनित पढ़ने की प्रवृत्ति है.

कुछ नाम हर युग में अन्यों से अधिक पढ़े-समझे जाते हैं. अतीत हमेशा वर्तमान से अधिक मोहक प्रतीत होता है. हर युग की अपनी आवश्यकता होती है. तदनुसार साहित्य सर्जन होता है. कोई साहित्यकार कितना भी श्रेष्ठ क्यों न हो साहित्य सृजन वहाँ आकर रुक नहीं जाता. साहित्य तो निरंतर रचा जाता है...

अपनी-अपनी पसंद के रचनाकार को सर्वश्रेष्ठ समझना-लिखना स्वाभाविक है. किसी को तुलसी श्रेष्ठ लगते हैं किसी को कबीर, कोई प्रेमचंद को शिखर पर मानता है कोई नागार्जुन को... यह स्वाभाविक है. अधिक अच्छा और कम अच्छा हर देश-काल में रचा जाता है.

जो अधिक पढ़ा जाता है वह हमेशा श्रेष्ठ नहीं होता. सामान्यतः जो सहज-सरल-सरस होता है वह अधिक लोगों तक पहुँचता है. जैसे बाल्मीकी कृत रामायण की तुलना में रामचरित मानस... कबीर अपवाद है जो एक साथ अति सरल और अति क्लिष्ट हैं.

रचनाकार को युग-धर्मका निर्वाह करते हुए निरंतर 'जो था','जो है', 'जो हो सकता है' और 'जो होना चाहिए' के चार स्तंभों पर सर्व कल्याणकारी दृष्टि से साहित्य की सृष्टि का गुम्बद बनाना चाहिए जहाँ 'सत्य', 'शिव' और 'सुंदर' का सम्नावत 'सत', 'चित', 'आनंद' की प्रतीति करा सके.

अदरणीय अश्विनीजी,

आपसे सादर अपेक्षा है कि ऐडमिन के सुझवों को गंभीरता से लें. 

हम पाठकधर्म या रचनाकर्म निभाने के क्रम में निर्णायक बन जायँ, यह उतना उचित न होकर हम जागरुक बनें यह अधिक आवश्यक है.  ..  कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम्

हमारे विचार सटीक हों और मान्य लक्ष्य तक सुसंप्रेषित हो सकें इसकी अधिक आवश्यकता है. व्यक्तिगत मूल्यांकन अनावश्यक स्तुति अथवा आक्षेप की कैटेगरी में आता है, जिसका अधिकार हमारे में से किसी को नहीं है जबतक कि कोई लेखक एक स्तर से एकदम नीचे अथवा एकदम से ऊपर न दीखने लगे. 

सादर.

//इस साईट पर निर्णय अधिकार जिस संपादक मंडल का है, मुझे जब तक इस साईट पर रहना है ,स्वीकार करने के लिए ,मैं बाध्य हूँ और जिस दिन मुझे यह लगेगा कि इस साईट के निर्णायकों का निर्णय न्याय की उपेक्षा कर रहा है,उस दिन मैं भी इस साईट से हटने के लिए स्वतंत्र हूँ !//

 

आदरणीय, मैं आपकी बातों से सहमत हूँ.

ओबीओ की प्रस्तुत साइट कई मायनों में अन्यान्य ब्लॉग्स या सोशल नेटवर्किंग साइट्स से थोड़े अलग ढंग की है. अभी यह साइट कुछ और प्रक्रियाओं और नियमावलियों से हो कर गुजरनी है जिसके लिये यथोचित प्रबन्धन और प्रबुद्ध कार्यकारिणी समितियाँ गठित की गई हैं. जो अगले महीने की प्रथम तिथि से प्रभावी हो जायेंगीं. सारी व्यवस्था परस्पर विश्वास, नम्रता और आदरयुक्त निरन्तरता के अन्तर्गत साधने की कोशिश हो रही है और, आशा है कि, ऐसी उन्नत परिपाटी विकसित हो जो साहित्य-सेवा के साथ-साथ व्यावहारिक ऊँचाइयों को अपनाते हुए ’सीखने-सिखाने’ को उद्येश्य को संतुष्ट कर सके ताकि संभावनायुक्त नये  तथा सशक्त पुराने सभी हस्ताक्षर एक मंच पर आपस के सभी को समुचित आकाश और विस्तार को यथोचित मान देते हुए पल्लवित हों.    

 

ऐसी वैचारिकता में ऐडमिन का रोल बहुमुखी है, जो हमारे संसार में आभासी ब्रह्म का परिचायक होगा.

ऐसी दशा में ऐडमिन के दिशासूचक सुझावों और उनकी सलाहों को नकारना चित्त-वृत्ति के निरोध को नकारने के बराबर होगा.

(अभी समयाभाव बहुत कुछ कहने से रोक रहा है. किन्तु, आदरणीय, आप मेरे आशय को समझ रहे हैं इसका मुझे पूरा भान है)

 

अब प्रस्तुत थ्रेड के शीर्षक के अन्तर्गत ही परिचर्चा आगे बढ़े,  इस अपेक्षा के साथ सादर धन्यवाद. 

 

:))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))

जी, सही है. धन्यवाद.

मैं ज्ञान अर्जित कर रहा हूँ, चर्चा वाकई रोचक चल रही है |

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service