मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २९ जुलाई दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३१ जुलाई रविवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन से जुड़े सभी सदस्यों ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक १३ जो तीन दिनों तक चलेगा , जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |
नोट :- यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश "OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक-१३ के दौरान अपनी ग़ज़ल पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी ग़ज़ल एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके इ- मेल admin@openbooksonline.com पर २९ जुलाई से पहले भी भेज सकते है, योग्य ग़ज़ल को आपके नाम से ही "OBO लाइव तरही मुशायरा" प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा, ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है |
फिलहाल Reply बॉक्स बंद रहेगा, मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ किया जा सकता है |
"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
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धन्यवाद रविभाई.
//दुआएँ अग़र अपनी फ़ितरत निभा दें
सुराही व पत्थर की सुहबत करा दें ॥//
बहुत खूब मेरे भाई ......................
//अभी तक दीवारों में जीता रहा है
उसे खिड़कियों की भी आदत लगा दें ॥//
आ हा हा ...................क्या बात कही है ......खुली खिड़कियाँ हैं हमेशा ही बेहतर, इनकी आदत तो होनी ही चाहिए...............
//उसी पे मुहब्बत लुटाए मिला जो
चलो बावरे को तिज़ारत सिखा दें ॥//
सच कहा मित्र मोहब्बत अब तिजारत ही तो बन गयी है ............
//खुदाया गये दिन पलट के न आयें
न आएँ, न सोयी वो चाहत जगा दें ॥//
वाह वाह वाह ........बहुत खूब भाई ..........
//नहीं ये कि बहती बग़ावत लहू में
मग़र जब भी चाहें हुक़ूमत गिरा दें ॥//
क्या बात है मित्र ! बहुत सही व सामयिक संदेश ! ......
//नमो ब्रह्मऽविष्णु नमः हैं सदाशिव
सधी धड़कनों में अनाहत गुँजा दें ॥//
बहुत ही सधा हुआ शेर! इसे अपनाने से तो सम्पूर्ण विश्व का कल्याण ही है............
//रची थी कहानी कभी कृष्ण ने, वो -
निभाएँ, महज़ ना भगवत करा दें ॥//
क्या गज़ब शेर कहा है मित्र ......
//हमारी कहानी व चर्चे हमारे
अभी तक हैं ज़िन्दा, बग़ावत करा दें ॥//
यही तो है दमदार शेर .................
बयाँ ना हुई अपनी चाहत तो क्या है |
चलो ज़िन्दग़ी को मुहब्बत बना दें ॥
आ हा हा मेरे भाई क्या गिरह लगाई है ....
//रहा दिल सदा से ग़ुलाबोरुमानी |
हमें तितलियाँ क्यूँ न ज़हमत, अदा दें ॥//
अय हय हय! यह दिल तो अब भी ग़ुलाबोरुमानी ही लग रहा है ......
गुलिस्ताँ सजे यूँ कि ’सौरभ’ बसर हो |
कहो क्यारियों में वो उल्फ़त उगा दें ॥
बहुत खूब भाई ! जरूर उगाइये ...जम कर उगाइये .........यह गुलिस्तां जरूर सजेगा !!!
शानदार शेरों से सजी हुई इस जानदार गज़ल के लिए दिली मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं .....:-)
आदरणीय अम्बरीषजी, आपकी उदार स्वीकृति को हमने हृदय की गहराइयों में महसूस किया. अशार-दर-अशार आपने जो हौसलाअफ़ज़ाई की है उसका तहे दिल से शुक्रिया.
स्वागत है मित्र !
अभी तक दीवारों में जीता रहा है
उसे खिड़कियों की भी आदत लगा दें ॥
वाह सौरभ जी दिल जीत लिया इस शेर के ज़रिये !!
हमारी कहानी व चर्चे हमारे
अभी तक हैं ज़िन्दा, बग़ावत करा दें ॥
क्या जिंदाबाद बात कही जय हो !!
भाई अभिनव अरुणजी, आपका हार्दिक धन्यवाद. जय होऽऽऽऽऽ
हर शेर लाजवाब
जिंदाबाद कहन, गिरह भी बहुत सुन्दर लगाई है
हार्दिक बधाई
वीनस भाई, दिल से शुक्रिया कह रहा हूँ..
आपसब की मुसाहिबी जो न करा दे.. :-))
मग़र जो यहाँ करा रही है ये सबसे करा दे.. हा हाह हा
सुन्दर गज़ल मतला बहुत ही ख़ूब सुरत है।
आपकी ज़र्रानवाज़ी डा.संजय साहब.. आपने हमेशा उत्साह बढ़ाया है.
बहुत-बहुत धन्यवाद.
कि, फिर आ गये हम लिये बात अपनी.. सुधारो हमें आप, हम भी मजा दें
yeh sambodhan jhakaas hai.
शुक्रिया मोइनभाई..
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