आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पैंतालिसवाँ आयोजन है.
इस बार के आयोजन के लिए दो छंद लिये गये हैं - दोहा छंद या / और कुकुभ छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
20 मई 2023 दिन शनिवार से 21 मई 2023 दिन रविवार तक
हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
दोहा छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
कुकुभ छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
20 मई 2023 दिन शनिवार से 21 मई 2023 दिन रविवार तक रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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बेहतरीन दोहे प्रेषित किए हैं आपने डॉ. अशोक गोयल जी। बधाई स्वीकारें आदरणीय।
आदरणीय सर बहुत अच्छे दोहे हुए हैं, सादर बधाई!
बहुत बढ़िया दोहे हुए हैं आदरणीय अशोक जी।
आदरणीय अशोक गोयल जी, आपका आयोजन में स्वागत है।
आपने प्रदत्त चित्र में उद्धृत मरुभूमि के यायावर और उसकी तरास को परिलक्षित कर मात्र दो दोहा छंदों की प्रस्तुति कर हम पाठकों के लिए मरु में अनुपलब्ध जल से गोया उपजी तरास को और बढ़ा दिया है।
आपसे हमें और-और की अपेक्षा बनी है।
निस्संदेह, दोनों दोहे में चित्र का मर्म उतर आया है। आपकी उपस्थिति तथा प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
शुभ-शुभ
आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। चित्र को परिभाषित करते हुए सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।
जनाब अशोक गोयल साहिब आदाब, आपके दोनों दोहे बहुत उम्द: हुए हैं , बधाई स्वीकार करें I
हार्दिक बधाई आदरणीय अशोक भाई इस प्रस्तुति पर
कुकुभ छंदः
रेगिस्तान बसर बहुत कठिन, सैलानी डग भरता है ।
खाली.. खाली ही दिखता है, पेट न भूखा भरता है ।।
व्यर्थता जीवन की रुपायित, हड़बोंग निरर्थक सारा ।
मानो मानव.. की गरदन पर, क्रूरता चला है आरा ।।
आकर्षण बस.. मृगमरीचिका, वह भी थोखा.. पानी का ।
अन्यथा सहरा मौत.. पक्की, कौन जाने.. बार किसका।।
कभी अकेलापन मत चुनना, मनुज हो, नहीं तुम योगी ।
बुद्ध नहीं तुम, ऊबे दुनिया, न| तुम हो रमता जोगी ।।
चमकता जो सोना न होता, आगे फिर अँथियारा है ।
सहरा तो सहरा है, यारा, अंधकूप ..गलियारा.. है ।।
दिल गुरु का शिष्य हेतु घड़के, सो उसने मार्ग सुझाया ।
कर्म ..कर, यही पूजा तेरी, इस हेतु.. धरा तू.. आया ।।
मौलिक व अप्रकाशित
कुकुभ छंद में उम्दा प्रस्तुति आदरणीय, बहुत बहुत बधाई
आदरणीय चेतन प्रकाश जी, इस प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत बधाई। सादर।
आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और कुकुभ छंद प्रस्तुति का हार्दिक धन्यवाद।
चित्र को शाब्दिक करने का आपका प्रयास श्लाघनीय है।
यह अवश्य है कि प्रस्तुति की संप्रेषणीयता तनिक और मुखर होनी थी।
साथ ही, अन्यथा सहरा मौत.. पक्की, कौन जाने.. बार किसका ... यह पंक्ति कुकुभ छंद में निबद्ध नहीं है। कारण कि, पदांत दो गुरुओं से न हो कर एक गुरु से हो रहा है।
बहरहाल, आपकी प्रस्तुति का सादर आभार.
शुभातिशुभ
आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। चित्र को परिभाषित करने का सुंदर प्रयास हुआ है। हार्दिक बधाई।
आ. भाई सौरभ जी की बात काबिलेगौर है।
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