For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-97 "विषय: "साधना''

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-97 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय 'साधना', तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
:  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-97
"विषय: "साधना" 
अवधि : 29-04-2023 से 30-04-2023 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सकें है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

Views: 945

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

स्वागतम 

प्रिविलेज


"गुरुदेव उसने तो पूरी निष्ठा से साधना की थी फिर भी ....?" शिष्य ने प्रश्न किया।
"साधना-साधना में अंतर होता है शिष्य। एक ने गुरु की अनुमति से उनके सानिध्य में साधना की थी वहीँ दूसरे ने गुरु की अनुमति बिना।"
"किन्तु गुरुदेव अपने ही साधक के साथ ऐसा व्यवहार..." शिष्य अपना प्रश्न पूरा भी नहीं कर सका।
"कैसा व्यवहार...? गुरु ने तो केवल गुरु दक्षिणा ही ली थी।" स्वर गुरुतर था।
"किन्तु उसने तो केवल गुरु की प्रतिमा को ही गुरु मानकर साधना की थी। वास्तव में तो उसका आत्मबल ही था जिसने उसे निपुण बनाया।"
"वह आत्मबल भी तो उसे गुरु की माटी की प्रतिमा के कारण ही आया था शिष्य।" गुरुदेव का स्वर विश्वास से भर आया।
"फिर तो अंगूठा भी मिट्टी का माँगा जा सकता था।" शिष्य गुरुदेव के विश्वास से संतुष्ट नहीं था।
"शिष्य उसकी साधना का आधार अंततः गुरु का आश्रय था और साधना में आश्रय का महत्त्व सर्वाधिक है। शास्त्र यही कहते हैं।" गुरुदेव विजयपथ की ओर अग्रसर हो गए।
"क्या शास्त्रों में तर्क या मानवीयता का कोई महत्त्व नहीं है गुरुदेव?" शिष्य के प्रश्न पर क्षणिक ही सही लेकिन एक मौन वातावरण में पसरने को ही था कि गुरुदेव ने अपना निर्णय सुना दिया-
" यही विधि का विधान था। यही नियति थी। नियति बहुत बलवती होती है शिष्य। सब शास्त्र सम्मत था और यही शास्त्र सम्मत है।"

(मौलिक व अप्रकाशित)

आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।

हार्दिक बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। 

एक पौराणिक घटना के प्रसंग को वर्णित करते हुए आपने एक बेहतरीन एवं उच्च स्तरीय लघुकथा द्वारा आज की गोष्ठी का आगाज किया। 

एक कहावत है -

"समर्थ को नहिं दोष गुसाँई

आदिकाल से यही होता रहा है। सत्तापक्ष सदैव ही सही ठहराया जाता रहा है। उनके द्वारा किये गये कृत्य या निर्णय, नीतियों को तोड़ मरोड़ कर उचित सिद्ध कर दिये जाते रहे हैं। 

बहुत समय बाद आपकी लेखनी का कमाल देखने को मिला। 

पुनः हार्दिक बधाई।

आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद, सादर 

आदरणीय  TEJ VEER SINGH  जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद, सादर

साधना में सहमति,एक बड़ा सवाल।लघुकथा के लिए बधाइयां,आ.मिथिलेश जी।

आदरणीय Manan Kumar singh जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद, सादर

सादर नमस्कार। आपकी सधी लेखनी और लघुकथा विधा के लिये सतत साधना का एक और उदाहरण है विषयांतर्गत यह सार्थक लघुकथा। हार्दिक बधाई आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहब। बेहतरीन शीर्षक के साथ प्रवाहमय संवादों के साथ संवाद संग अनकहा बयाँ करते वाक्यांश और रचना का समापन सब कुछ प्रभावोत्पादक। समापन इसके विपरीत वाली मारक क्षमता वाला भी हो सकता था मेरे विचार से नवीनतम पंचपंक्ति हेतु।

आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani  जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद, सादर

//समापन इसके विपरीत वाली मारक क्षमता वाला भी हो सकता था मेरे विचार से नवीनतम पंचपंक्ति हेतु।// इस पर आप कुछ सुझाएँ. सादर 

तपस्या - लघुकथा - 

सुबह के लगभग नौ बजे सुधा सोकर उठी और सीधे रसोईघर में पहुंची।

लेकिन तुरंत कमरे में वापस लौटी,”सुधीर, ये रसोई में कौन महिला है?" 

"वे सीमा जी हैं।

"वे हमारे किचन में क्या कर रही हैं?”

"वे पिताजी के लिये दलिया बना रही हैं।

अरे वाह, ये काम तो बहुत बढ़िया किया आपने। अब हम दोनों भी एक साथ खा पी सकेंगे।

"नहीं सुधा, यह संभव नहीं होगा। वे केवल पिताजी के खान पान के लिये ही रखी गई हैं।

"अरे, ये क्या बात हुई? जब किसी को रसोई के काम काज के लिये रखा ही है तो सभी के लिए क्यों नहीं?”

"उसकी दो वजह हैं। पहली तो यह कि तुम पिताजी के पसंद के खाने बनाने में आनाकानी करती हो।कभी भी समय से उन्हें खाना नहीं दे पातीं। सुबह की चाय तो वे हमेशा खुद ही बनाते हैं।क्योंकि तुम सुबह नौ बजे तक बिस्तर ही नहीं छोड़ती हो।

दूसरी वजह यह कि मैं सबके लिये रसोइया रखने का खर्चा नहीं उठा सकता।

"तो फिर ये खर्चा भी क्यों कर रहे हो? मैं जैसे तैसे कर तो रही हूँ। धीरे धीरे पिताजी भी आदी होते जा रहे हैं।

"नहीं सुधा, ये परिस्थिति मेरे लिए असहनीय है। मैं तुम्हें समझा कर थक गया। तुम इस उम्र में अपने आचरण को नहीं बदल सकती तो मैं अपने सत्तर वर्षीय पिता को किस मुँह से बदलने के लिये बोलूं?”

"सुधीर, मैं कोशिश तो कर रही हूँ ना?”

"सुधा, मैं जब दो साल का था, मेरी माँ चल बसी थी। मेरे पिता चाहते तो दूसरी शादी कर सकते थे।शादी के लिये उनके ऊपर परिवार का भी बहुत दवाब था। लेकिन उस वक्त उनके समक्ष केवल मेरा जीवन, मेरा लालन पालन और मेरा भविष्य था।उन्होंने  कितना संघर्ष किया जीवन भर। मेरे लिए एक तपस्वी की भाँति जीवन बिताया। मेरे पिता मेरे लिए भगवान है। मेरे रक्त की एक एक बूंद उनकी ऋणी है।"     

 मौलिक एवं अप्रकाशित

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन।बहुत सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"अच्छी रचना हुई है ब्रजेश भाई। बधाई। अन्य सभी की तरह मुझे भी “आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा”…"
3 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"बेहतरीन अशआर हुए हैं आदरणीय रवि जी। सभी एक से बढ़कर एक।"
3 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश नूर भाई। बहुत बधाई "
3 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आभार रक्षितासिंह जी    "
7 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"अच्छे दोहे हुए हैं भाई लक्ष्मण धामी जी। एक ही भाव को आपने इतने रूप में प्रकट किया है जो दोहे में…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. रक्षिता जी, दोहों पर उपस्थिति, और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
8 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सधन्यवाद आदरणीय !"
9 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"बहुत खूब आदरणीय,  "करो नहीं विश्वास पर, भूले से भी चोट।  देता है …"
9 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सधन्यवाद आदरणीय,  सत्य कहा आपने । निरंतर मनुष्य जाति की संवेदनशीलता कम होती जा रही है, आज के…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. रक्षिता जी, एक सार्वभौमिक और मार्मिक रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सादर प्रणाम,  आदरणीय"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service