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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-136

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 136वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा जनाब निदा फ़ाज़ली साहब की गजल से लिया गया है|

"एक ज़रा सी ज़िद ने आख़िर दोनों को बरबाद किया "

  22   22    22    22    22   22   22   2 (कुल जमा 30 मात्राएं)

 

 फ़ेलुन     फ़ेलुन     फ़ेलुन     फ़ेलुन     फ़ेलुन     फ़ेलुन     फ़ेलुन     फ़ा

बह्र:  मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ महज़ूफ़ (बह्रे मीर)

 

रदीफ़ :-  किया
काफिया :- आद( आबाद, शाद, इजाद, उस्ताद, आज़ाद, फरियाद, ईजाद, फौलाद आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 अक्टूबर दिन गुरुवार  को हो जाएगी और दिनांक 29 अक्टूबर  दिन शुक्रवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आ अमीर जी अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें

गुणीजनों की इस्लाह सर आँखों पर

आदरणीय आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।  सादर।

22 22 22 22 22 22 22 2

रहे सलामत दुनिया में तू यह ही बस फरियाद किया
ख्वाहिश एक तेरी ही रहती तुझसे ही दिल शाद किया/1

जिसकी खातिर दुनिया छोड़ी छोड़ दिये नाते रिश्ते
"एक ज़रा सी जिद ने आखिर दोनों को बर्बाद किया"/2

खोया खोया रहता हूं मैं धड़कन में तू ही बसता
तेरी यादों के मंज़र से कब तूने आजाद किया/3

सोच रहा मैं अपनी ग़ल्ती मुझको बहुत सताती है
खुद बन गई प्यारी सी मैना और मुझे सय्याद किया/4

रूठ के हमसे छिप जाते हो देखो ऐसा ठीक नहीं
मुझे सताने का तुम ने ये ढोंग नया ईजाद किया/5

पाला पोसा बड़ा किया था वो ही हमको भूत गए
अपने खून से सींचा हमने जिनको था आबाद किया/6

सबसे ज्यादा जिसको चाहा जिसकी हम कसमें खाते
"दीप" जिसे रब सा माना था उसने ही बर्बाद किया/7

स्वरचित एवं अप्रकाशित

आ. दीपांजलि जी,

आपको मैं पहली बार पढ़ रहा हूँ. आयोजन में सहभागिता के लिए बधाई एवं आभार. 
 फरियाद किया.. फरियाद स्त्रीलिंगी शब्द है.. इसके साथ किया का संयोजन बेमेल है.
//तेरी यादों के मंज़र से कब तूने आजाद किया/3// इस मिसरे में मात्राएँ कम हैं.
खुद बन गई प्यारी सी मैना और मुझे सय्याद किया/4... यह मिसरा में बहर से बाहर है .
.

रूठ के हमसे छिप जाते हो देखो ऐसा ठीक नहीं
मुझे सताने का तुम ने ये ढोंग नया ईजाद किया/5 यहाँ ऊला में हम और सानी में मुझे आने से शुतुर्गुरबा दोष हो रहा है ..

.
पाला पोसा बड़ा किया था वो ही हमको भूत गए  (भूल) 
अपने खून से सींचा हमने जिनको था आबाद किया/6.. ऐसा लग रहा है जैसे आपने जिन्हें पाला वो नहीं अपितु आप को पालने पोसने वाले आपको भूल गये.. वाक्य विन्यास पर गौर करें.
.
आयोजन में उपस्थिति हेतु पुन: बधाई..
सादर 

//तेरी यादों के मंज़र से कब तूने आजाद किया/3// इस मिसरे में मात्राएँ कम हैं.//

मात्राएँ तो दुरुस्त हैं:-

तेरी--22

यादों-22

के मं--22

ज़र से--22

कब तू--22

ने आ--22

ज़ा दक--22

या-2

आ. समर सर,
पता नहीं मैं शायद भूलवश लिख गया ..शायद यादों के को याद के पढ़ रहा था उस वक़्त..
क्षमा सहित 

कोई बात नहीं, हो जाता है ।

आदरणीय नीलेश जी सादर प्रणाम स्वीकार करें।आप की बेहतरीन समीक्षा के लिए हार्दिक धन्यवाद। तेरी यादों के मंज़र से कब तूने आजाद किया । इसमें मुझे समझ में नहीं आया कहां कमी है कृपया मार्गदर्शन करें।

आ. दीपान्जली जी,
मैं भूल वश याद के पढ़ रहा था जिससे मुझे भ्रम हुआ.
क्षमा चाहता हूँ.
सादर 

आदरणीय Nilash Shevgaonkar जी सादर प्रणाम आदरणीय। क्षमा की कोई बात नहीं है आप बड़े हैं। आप सभी से सीखने की कोशिश रहती है,कभी कभी ऐसा हो जाता है। यही ख्वाहिश है सर आप हमेशा मेरा मार्गदर्शन करते रहें सादर अभिवादन आदरणीय।

दीपांजली जी.अगर आप ऊपर की टिप्पणियाँ पढ़ लेतीं तो आपको ये सवाल करने की ज़रूरत नहीं पडती I 

अगर आप यहाँ कुछ सीखना चाहती हैं तो आपको चाहिए कि आयोजन की हर टिप्पणी ध्यान से पढ़ें I 

आदरणीय समर कबीर सर जी सादर प्रणाम।परसो रात से ही मेरी काफी तबियत खराब है मैंने ग़ज़ल डालने के बाद कल सभी को रिप्लाई किया तो बहुत सी टिप्पणी देख नहीं पाई इसके लिए क्षमा चाहती हूं सर जी।और शायद अभी भी ठीक से मुझे चलाना आ नहीं पाया है तो सभी की ग़ज़ल भी नहीं दिख पाईं हैं सर जी पुनः क्षमा चाहती हूं।

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